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तेल आयात को चाहिए और विकल्प

पश्चिम एशिया के देशों में राजनीतिक अशांति और अस्थिरता कई बार बाधक बन जाती है. ऐसे में जरूरी है कि हम ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अन्य विकल्पों पर भी विचार करें.

डॉ उत्तम कुमार सिन्हा, फेलो, मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान

uksinha2001@gmail.com

हम तेल के एक बड़े खरीदार हैं. ऐसे में जरूरी है कि हमारे पास खरीद के लिए अधिक से अधिक विकल्प हों. इससे हमें सहूलियत होगी. ईरान, सऊदी अरब, खाड़ी देशों या मध्य एशिया के देशों तक सीमित रहने के बजाय हमें अन्य विकल्पों जैसे- अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों को भी विकल्प के तौर पर देखना चाहिए, विशेषकर वेनेजुएला जैसे देशों के साथ कारोबार बढ़ाने पर विचार करना जरूरी है. ऊर्जा सुरक्षा के मद्देनजर यह जरूरी भी है. तेल और पेट्रोलियम के आयात पर ही निर्भर रहने के बजाय हमें अपने एनर्जी बॉस्केट को बड़ा करने की ओर ध्यान देना होगा. ऊर्जा के अन्य स्रोतों जैसे- नवीकरणीय ऊर्जा, जिसमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल-विद्युत ऊर्जा और भविष्य में नाभिकीय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार पर भी काम करने की आवश्यकता है.

अभी हमारी इंडस्ट्री, विशेषकर परिवहन क्षेत्र, ताप-विद्युत प्लांट मुख्यतः ईंधन आधारित हैं. तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में तेल की अधिक खपत के कारण हमारी तेल की मांग बहुत ज्यादा है. बाहर से तेल आयात पर हमारी लागत अधिक है. तेल आयात पर अधिक निर्भरता राजनीतिक तौर पर भी सही नहीं है. कभी-कभी ईरान जैसे देशों में राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है, जिससे हमारा तेल आयात भी प्रभावित होता है. पश्चिम एशिया के देशों में राजनीतिक अशांति और अस्थिरता कई बार बाधक बन जाती है. ऐसे में जरूरी है कि हम ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अन्य विकल्पों पर भी विचार करें.

खासकर, उन देशों के बारे में, जहां राजनीतिक विश्वसनीयता अधिक है. इसमें वेनेजुएला एक अहम नाम है. हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक देश हैं. जाहिर है कि हमारी तेल पर निर्भरता अन्य देशों से कहीं ज्यादा है और हमारे तेल आयात का बिल लगभग 120 बिलियन डॉलर है. यह आयात की बहुत बड़ी लागत है और आयात पर हमारी निर्भरता करीब 80 फीसदी है. ईरान के प्रति ट्रंप की नीतियां थोड़ी आक्रामक थीं. उन्होंने ईरान पर बहुत ज्यादा आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये थे. उस प्रतिबंध के कारण ईरान के साथ हमारा तेल कारोबार प्रभावित हुआ. बाइडेन के आने से हालात थोड़े बदल गये हैं.

ट्रंप ने वेनेजुएला में भी तेल आयात को प्रतिबंधित किया था. वहां पर थोपे गये प्रतिबंध अब हट जायेंगे. राजनीतिक तौर पर भी अब हालात पहले से बेहतर होंगे. ईरान और वेनेजुएला से जुड़ने के हमारे विकल्प फिर से खुल जायेंगे. वेनेजुएला के तेल की गुणवत्ता सबसे बेहतर मानी जाती है. वहां के तेल की लो सल्फर हाइ वैल्यू क्वालिटी होती है. वह जेट ईंधन के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है. हमारे जो घरेलू तेल शोधक कारखाने हैं, उनमें से कुछ हाइ क्वालिटी क्रूड ऑयल के लिए उपयुक्त नहीं हैं. केवल रिलायंस रिफाइनरी इसके लिए सबसे उपयुक्त है. वेनेजुएला से आयात तेल रिलायंस रिफाइनरी से ही शोधित किये जा सकेंगे.

भविष्य को देखते हुए हमें तेल के इस्तेमाल को कम करने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर यह हमारी वैश्विक प्रतिबद्धता भी है. प्रधानमंत्री मोदी ने पेरिस जलवायु समझौते में भी कहा था कि भारत धीरे-धीरे लगातार कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में काम करेगा. इसके लिए ईंधन के इस्तेमाल में कमी लानी होगी. आपको नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की तरफ देखना होगा. यह एक दूरगामी उद्देश्य है. दूसरा, हम थोड़ा-बहुत अपने घरेलू सेक्टर को भी देखें कि कहां-कहां तेल रिजर्व हैं. माना जाता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत दूसरा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल रिजर्व क्षेत्र है.

लेकिन, हमारा उत्पादन बहुत कम क्षेत्रों तक ही सीमित है, इसमें कुछ राजस्थान, खंभात की खाड़ी, मुंबई हाइ, गोदावरी-कृष्णा बेसिन और असम के कुछ हिस्से शामिल हैं. जब हम तेल आयात को कम करने की बात करते हैं, तो हमें थोड़ा-बहुत अपने तेल सेक्टर को बढ़ाने का भी प्रयास करना होगा. देखना होगा कि कहां-कहां हमारे रिजर्व हैं और उसका हम कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. हालांकि, यह काम आसान नहीं है. तेल रिजर्व होना तो एक बात है, लेकिन उसका निष्कर्षण बहुत मुश्किल होता है. पारिस्थितिकी की दृष्टि से कुछ क्षेत्र बहुत संवेदनशील होते हैं. वहां खुदाई नहीं की जा सकती है. आसान तरीका है कि तेल को बाहर से खरीदें. दूसरा, रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को भी विकसित करने की जरूरत है.

राजनीतिक संकट, जैसे मध्य एशिया में कोई युद्ध हो जाये, तो ऐसे में हमारे पास रिजर्व होना जरूरी है, ताकि कुछ दिनों तक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके. चीन या पाकिस्तान के साथ सीमा पर हालात बिगड़ने पर हमारे पास सामरिक तेल भंडार जरूरी हो जाता है. लक्ष्य है कि हमारे पास कम-से-कम 10 दिनों की तेल क्षमता होनी चाहिए. साढ़े पांच मिलियन मीट्रिक टन जरूरी है, लेकिन अभी हम आधा ही पहुंच पाये हैं. हमारे पास तेल भंडार की तीन जगहें हैं और चौथी पर काम हो रहा है. कुल मिलाकर ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से यह बहुत जरूरी है. घरेलू रिजर्व पर भी काम चल रहा है, लेकिन यह थोड़ा मुश्किल कार्य है.

तेल और गैस के क्षेत्र में हमने 100 प्रतिशत एफडीआइ की मंजूरी दी हुई है. उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक आयेंगे. आजकल वैश्विक खिलाड़ी राजनीतिक हालात, पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता जैसे कई बिंदुओं पर विचार करने के बाद फैसले लेते हैं. वे आसानी से निवेश नहीं करते. हमारे पास जितने भी तेल भंडार हैं, वे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में हैं, जैसे- सुंदरबन एरिया मैंग्रोव जंगल, पूर्वी घाट आदि हैं. कुछ भूकंप संभावित क्षेत्र हैं. कुछ क्षेत्रों में उत्खनन बहुत मुश्किल काम है.

छोटा नागपुर, धनबाद एरिया कोयला बेल्ट है. ऊर्जा सुरक्षा नीति का यह अहम हिस्सा है कि हम मीथेन आधारित ईंधन की ओर रुख करें. क्योंकि वह अपेक्षाकृत स्वच्छ ईंधन हैं. मीथेन के लिए क्लीन टेक्नोलॉजी की जरूरत है. इसके लिए बड़ा निवेश चाहिए. कोयला ऊर्जा सुरक्षा का अहम हिस्सा है. इसमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिलता है. लेकिन, जरूरी है कि ईंधन तकनीक के माध्यम से हम कैसे उसे मीथेन आधारित ईंधन में परिवर्तित करें. भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर यह आवश्यक भी है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Posted by : Pritish Sahay

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