एक मतदाता सूची
वैधानिक व्यवस्था के अनुसार हमारे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव का मुख्य दायित्व केंद्रीय निर्वाचन आयोग का होता है
वैधानिक व्यवस्था के अनुसार हमारे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव का मुख्य दायित्व केंद्रीय निर्वाचन आयोग का होता है, जबकि स्थानीय निकायों में यह जिम्मेदारी राज्य चुनाव आयोग निभाता है. इस वजह से दोनों स्तरों पर अलग-अलग मतदाता सूचियां बनायी जाती हैं.
ऐसे में श्रम भी लगता है और व्यय भी होता है तथा सूचियों में विसंगतियां भी होती हैं. इस प्रक्रिया को ठीक करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों और केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने सराहनीय पहल करते हुए राज्यों के मुख्य सचिवों से स्थानीय निकायों के चुनाव से संबंधित कानूनों में बदलाव के लिए विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया है.
इस प्रयास में विशेष अड़चन नहीं आनी चाहिए क्योंकि मौजूदा प्रावधानों के तहत लगभग 22 राज्य केंद्रीय मतदाता सूची का उपयोग स्थानीय चुनावों के लिए कर सकते हैं. रिपोर्टों की मानें, तो ये राज्य पहले से ही केंद्रीय सूची के आधार पर मतदाताओं का निर्धारण करते हैं. जब कोई भारतीय नागरिक एक चुनाव में मतदान कर सकता है, तो उसे दूसरे चुनाव में मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
इसके लिए दो अलग-अलग सूचियों का औचित्य नहीं है. केंद्रीय आयोग हो या राज्य के चुनाव आयोग हों, उनके द्वारा समय-समय पर सूचियों की समीक्षा होती रहती है. आज तकनीक की उपलब्धता की वजह से सूची की गड़बड़ियों में सुधार या मतदाता का पता या उसके मतदान केंद्र को बदलने जैसे अनेक काम बहुत आसानी से हो जाते हैं.
इसी तरह से नये मतदाताओं के पंजीकरण की प्रक्रिया भी बहुत सरल हो चुकी है. आयोगों के वेबसाइटों से मतदाता कोई सूचना कभी भी हासिल कर सकते हैं. एक मतदाता सूची होने से एक से अधिक क्षेत्र में एक ही मतदाता के पंजीकृत होने जैसी गड़बड़ी से भी बचा जा सकेगा तथा सूची से अकारण नाम हटाने की शिकायतों की गुंजाइश भी न के बराबर रह जायेगी.
केंद्र सरकार और आयोग की इस कोशिश को लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सरकार की मंशा से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन इस बात में दम नजर नहीं आता है. केंद्रीय आयोग तो पहले से ही इन दो चुनाव के लिए मतदाता सूची बनाता आ रहा है. भारत जैसे बड़े देश में स्थानीय निकायों की बहुत बड़ी संख्या को देखते हुए उनके चुनाव साथ कराना बहुत मुश्किल काम होगा, जैसा कि विधि आयोग ने एक साथ चुनाव के बारे में अपनी रिपोर्ट में रेखांकित किया है.
यह भी उल्लेखनीय है कि विधि आयोग, संसद की स्थायी समिति और नीति आयोग की रिपोर्टों में केवल दो शीर्ष चुनाव साथ कराने पर ही विचार किया गया है. इस संबंध में कोई भी अंतिम निर्णय केंद्र व राज्य सरकारों तथा राजनीतिक दलों की आपसी सहमति से लिया जा सकेगा. एक मतदाता सूची के मामले को इससे नहीं जोड़ा जाना चाहिए और इसे एक सुधार के रूप में देखा जाना चाहिए.
posted by : sameer oraon