प्रवासी मजदूरों का सवाल भी रहा अहम
प्रवासी मजदूरों का सवाल भी रहा अहम
मनीषा प्रियम
राजनीतिक विश्लेषक
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए यही कहा जा सकता है कि जनता के मन में नेतृत्व को लेकर विचार बदले हैं. जनता दल को मिले मतों को देखकर यही कहा जा सकता है कि लोगों का नीतीश कुमार में विश्वास कम हुआ है, लेकिन बिहार के बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करने के नजरिये से उनका विकल्प कौन होगा, यह कहना बहुत मुश्किल है. जदयू के मत प्रतिशत में काफी कमी आयी है,
जिसका प्रमुख कारण यह माना जा सकता है कि उनका सुशासन का एजेंडा इस विधानसभा चुनाव में असफल साबित हुआ है. बिहार को सुशासन के एजेंडे से ही स्कूल मिले, सड़कें मिलीं, बिजली मिली और अस्पताल मिले. लेकिन जनता को जितनी आशा नीतीश कुमार से थी, जनता को उससे कम सहयोग नीतीश कुमार की तरफ से मिला है.
साल 2015 में दोबारा सत्ता में आने के बाद यह सुशासन का एजेंडा कुछ खास कारगर नहीं रहा. 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश के सुशासन के एजेंडे ने जनता के बीच उनकी पकड़ काफी मजबूत की थी. इस विधानसभा चुनाव में जनता को नीतीश से सुशासन के एजेंडे से ज्यादा की उम्मीद थी, रोजगार की कमी और कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की बदहाल स्थिति का प्रभाव भी उनके मत प्रतिशत पर देखने को मिल रहा है.
अब देखना यह होगा कि यदि बिहार में नीतीश के विकल्प के तौर पर किसी को देखा जाये, तो कौन एक बेहतर प्रभावी नेता के रूप में सामने आ सकता है.
इस विधानसभा चुनाव में राजद और लोजपा दोनों ही एक नये नेतृत्व के साथ इस चुनावी मैदान में उतरे, जिसमें तेजस्वी लालू प्रसाद की अनुपस्थिति में राजद की कमान संभाल रहे हैं और चिराग के सर से पिता का साया उठ जाने के कारण उनपर पर पार्टी के नेतृत्व का दारोमदार है.
इस चुनाव में युवा नेताओं के चर्चा के केंद्र में होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि बिहार देश का इकलौता राज्य है जिसमें सबसे अधिक युवा मतदाता हैं. लेकिन यह कहना कहीं से भी सही नहीं होगा कि बिहार की जनता सिर्फ इस युवा नेतृत्व पर ही भरोसा कर रही है.
युवा नेतृत्व का बिहार की जनता ने स्वागत किया है, लेकिन चुनाव के नतीजों में यह एक निर्णायक भूमिका अदा करेगी, यह कहना उचित नहीं होगा. तेजस्वी के नेतृत्व में राजद ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है, वहीं चिराग के नेतृत्व में लोजपा का प्रदर्शन काफी खराब हुआ है. चिराग इस चुनाव में खुशफहमी का शिकार हुए हैं. इस चुनाव में एनडीए से दूरी बनाना उनको काफी भारी पड़ा है.
इस चुनाव में चिराग की स्थिति को लेकर यही कहा जा सकता है कि उन्होंने प्रचार ज्यादा किया और प्रदर्शन कम. उन्होंने सामने आकर जेडीयू को अपना निशाना बनाया, उन्होंने नीतीश कुमार को चुनावी अभियान में युवा विरोधी कहकर संबोधित किया, उससे तो यही लग रहा था कि वे युवा मतदाताओं के मन में जगह बनाने में कामयाब रहेंगे, लेकिन नतीजे इस पक्ष को दरकिनार करते हैं.
बिहार चुनाव राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करेगा. बिहार विधानसभा से पहले हुए कुछ उपचुनावों और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों की तुलना में भाजपा की स्थिति बिहार में बेहतर हुई है, जिससे जनता के रूख का अंदाजा लगाया जा सकता है. नीतीश का मत प्रतिशत गिरा है और यह उनके राजनीतिक भविष्य को प्रभावित कर सकता है.
posted by : sameer oraon