12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वैक्सीन के साथ औषधि भी जरूरी

भविष्य की स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए पूर्वजों से प्राप्त पारंपरिक समृद्ध ज्ञान का उपयोग और प्रयोग करना जरूरी है.

पद्मश्री अशोक भगत

सचिव, विकास भारती, बिशुनपुर

vikasbharti1983@gmail.com

कोरोना महामारी की वैक्सीन आ गयी है, लेकिन कोरोना की एक और लहर धीरे-धीरे जोर पकड़ रही है. कोरोना के कारण भारत में औसत दैनिक मृत्यु फिर से बढ़ गयी है. दुनिया में अब तक 15.6 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं, जिनमें से 6.44 करोड़ लोग ठीक हुए और 36.24 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. भारत में 1.11 करोड़ लोग संक्रमित हुए, 1.08 करोड़ लोग ठीक हुए और 1.57 लाख लोगों की जान गयी. जानकारों की मानें, तो वैक्सीन के आ जाने मात्र से जीवाणु जन्य बीमारियां नहीं भाग जातीं. इनका खतरा बना रहता है, इसलिए हमें लगातार सतर्क रहने की जरूरत है.

जब यह बीमारी चरम पर थी, तो जहां एक ओर विकसित राष्ट्र सभी आधुनिक मेडिकल सुविधाएं होने के बावजूद किंकर्तव्यविमूढ़ थे, वहीं भारत पारंपरिक औषधियों और तरीकों की बदौलत कोविड से लोहा ले रहा था. इन पारंपरिक तरीकों ने बीमारी की मारक क्षमता को सीमित कर दिया और यह आशंका से कम नुकसान पहुंचा सकी. कोरोना की मारक क्षमता पर अध्ययन करनेवालों का मानना है कि ग्रामीण भारत में यह बीमारी अपना व्यापक प्रभाव जमाने में नाकाम रही. इसका कारण पारंपरिक भारतीय ग्रामीण जीवन शैली और परंपरागत औषधीय गुण वाले वनस्पतियों का उपयोग बताया जा रहा है.

ग्रामीण लोग आज भी प्रकृति के निकट हैं और वे बहुत सारे परंपरागत औषधीय गुणवाले पत्तों को साग-सब्जी के रूप में सेवन करते हैं. सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में तो कुछ औषधीय पत्तों को खाकर लोग बहुत सारी बीमारियों का समाधान भी कर लेते हैं. ये वनस्पतियां शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं और रोगों से लड़ने की ताकत देती हैं.

जाने-अनजाने में हमारे ग्रामीण इन वनस्पतियों का उपयोग तो करते रहे हैं, लेकिन उनको यह भरोसा नहीं था कि इतनी प्रतिरोधक क्षमता हमारे पास है. इसलिए इस दिशा में बड़े पैमाने पर जागरूकता की जरूरत है. कोरोना काल में जिन वनस्पतियों ने हमारी जान बचायी है, उनके संरक्षण की भी जरूरत है.

भारत में टीकाकरण का काम 16 जनवरी, 2021 से शुरू हुआ और अब तक बड़ी संख्या में लोगों को टीके की खुराक दी जा चुकी है, लेकिन दूसरी ओर बीमारी के आंकड़ों में हो रही बढ़ोतरी चिंता का विषय बनी हुई है. इसलिए कोरोना काल में जिन अनुशासनों का हमलोगों ने सख्ती से पालन किया है, उन्हें जारी रखने की जरूरत है. इनमें कुछ अनुशासन व्यक्ति, परिवार और समाज के लिए बेहद जरूरी हैं.

पहला, दो गज दूरी, मास्क है जरूरी. दूसरा, पारंपरिक नियमों का पालन. तीसरा, सैनिटाइजर का उपयोग. प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानेवाली वनस्पतियों का अर्क, काढ़ा आदि का नियमित सेवन. सोने से पहले नियमित रूप से हल्दी वाले दूध का उपयोग तथा योग, प्राणायाम, व्यायाम आदि करना. वैक्सीन या डॉक्टर हमारे शरीर की संपूर्ण रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास नहीं कर सकते हैं.

इसलिए हमें भविष्य की स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के लिए पूर्वजों से प्राप्त पारंपरिक समृद्ध ज्ञान का उपयोग और प्रयोग करना जरूरी है. इस ज्ञान को और बढ़ाएं और भावी पीढ़ियों को हस्तानांतरित करें. एलोपैथ का दुष्प्रभाव भी होता है. इस वैक्सीन के दुष्प्रभाव भी चिह्नित हो रहे हैं, परंतु पारंपरिक सतर्कता, पथ्य, आहार-विहार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है.

कोरोना काल में गिलोय का काफी उपयोग किया गया, जिसके अनेक गुणों के कारण हमारी प्रतिरोधक क्षमता बनी रही. तुलसी, अश्वगंधा, हल्दी जैसे परंपरागत औषधीय पौधों ने हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाया. हमें इनका उपयोग वैक्सीन के बाद भी जारी रखना होगा. झारखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो यह प्रदेश प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है. पथरीली एवं उबड़-खाबड़ जमीन होने के कारण खेती कठिन है, लेकिन औषधीय पौधे बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं. सरकार और समाज को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

वन विभाग और स्थानीय प्रशासन वन औषधियों के संरक्षण और संग्रह में स्थानीय वनवासियों का सहयोग करे. वनौषधियों की बड़े पैमाने पर हो रही तस्करी को रोकने की भी जरूरत है. इससे राज्य का स्वास्थ्य और अर्थतंत्र समृद्ध होगा. प्रकृति के पुजारी जनजाति समाज औषधीय पौधों के जानकार भी होते हैं. सामान्य बीमारियों में वे डॉक्टरों के पास नहीं जाते, प्राकृतिक चिकित्सा से खुद ही घरेलू इलाज कर लेते हैं.

इस ज्ञान को भी संरक्षित किया जाना चाहिए. जागरूकता के अभाव में वनौषधियों का संरक्षण नहीं हो पाता है, इसलिए जागरूकता प्रसार की भी जरूरत है. झारखंड में लगभग 600 किस्म के औषधीय पौधे उपलब्ध हैं, जिनमें से 50-100 किस्में ऐसी हैं, जिनकी खेती की जा सकती है. उनका उपयोग हर्बल उत्पादों के निर्माण में किया जाता है और आयुर्वेदिक दवाओं में भी बड़े पैमाने पर इसका उपयोग होता है. कुछ औषधीय पेड़-पौधों की जानकारी यहां देना जरूरी है, जिनका उपयोग आयुर्वेद, यूनानी या होमियोपैथ की दवाओं में किया जाता है.

इनमें एलोवेरा (घृतकुमारी), सफेद मूसली, सदाबहार, काली तुलसी, अश्वगंधा, इसबगोल, शतावर, भृंगराज, नीम, अगस्त्य, जामुन, पलाश, वन तुलसी, मंडूकपर्णी, पुनर्नवा भूमि आंवला, अडूसा (वाकस), हरसिंगार, सहजन, करंज आदि उल्लेखनीय हैं. कुछ गैर सरकारी संस्थाएं झारखंड में इनकी खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित व प्रशिक्षित कर रही हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर करने की जरूरत है. कुल मिला कर कोरोना वैक्सीन आने के बाद भी खतरा टला नहीं है, इसलिए परंपरा, प्रयोग, सतर्कता, आहार-विहार, पथ्य आदि पर ध्यान देना बेहद जरूरी है.

Posted By : Sameer Oraon

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें