फंसे हुए कर्ज की बढ़ती मात्रा कई सालों से हमारे बैंकिंग प्रणाली के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. कोरोना महामारी से मंदी की मार झेलती हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाकर उसे गतिशील बनाने के लिए इस चुनौती का समुचित समाधान करना बहुत जरूरी है. भारतीय रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी है कि अगर बैंकों ने गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के निपटारे और वसूली में मुस्तैदी नहीं दिखायी, तो आगामी सितंबर में एनपीए का अनुपात 13.5 फीसदी हो जायेगा, तो सालभर पहले 7.5 फीसदी के स्तर पर था.
अपनी अर्द्धवार्षिक वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में केंद्रीय बैंक ने यह आशंका भी जतायी है कि यदि एनपीए बढ़त का यह आंकड़ा मार्च, 2022 तक बरकरार रहा, तो 1999 के बाद से यह सबसे खराब स्थिति होगी. महामारी से पैदा हुईं समस्याओं के समाधान के लिए सरकार द्वारा उद्योगों और उद्यमों को विभिन्न प्रकार के राहत मुहैया कराये गये हैं. सरकार की कोशिश है कि बाजार में मांग बढ़े, ताकि उत्पादन में तेजी आये.
इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. उत्पादन और निर्माण के लिए आवश्यक निवेश के लिए बैंकों से धन लेने के लिए भी कारोबारियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. लेकिन एनपीए के दबाव और भावी कर्जों की वसूली को लेकर अनिश्चितता की वजह से बैंकों द्वारा कर्ज देने में हिचकिचाहट देखी जा सकती है. कुछ दिन पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को यह कहना पड़ गया था कि बैंक ग्राहकों को ऋण उपलब्ध कराने में कोताही न बरतें.
उल्लेखनीय है कि बीते कुछ समय से सरकार ने बैंकों को अतिरिक्त पूंजी भी मुहैया करायी है और भविष्य के लिए भी आश्वासन दिया है. ऐसा इसलिए किया गया है कि बैंकों के पास कारोबार के जरूरी पूंजी की कमी न हो. एक प्रकार से यह सरकार के लिए आसान फैसला नहीं है क्योंकि राजस्व में कमी की स्थिति में विभिन्न योजनाओं के लिए इस धन का इस्तेमाल किया जा सकता था.
लेकिन अर्थव्यवस्था में बैंकिंग तंत्र की स्थिति रीढ़ की हड्डी की तरह होती है, इसलिए उनके वित्तीय स्वास्थ्य को ठीक रखना भी जरूरी है. एनपीए बढ़ने की आशंकाएं इसलिए भी मजबूत हुई हैं क्योंकि कोरोना काल के संकट से उद्योग जगत से लेकर छोटे कारोबारियों तक को नुकसान हुआ है.
इससे उनकी चुकौती पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. सितंबर, 2020 में बैंकों का पूंजी अनुपात घटकर 15.6 फीसदी रहा था, जो इस साल सितंबर में 14 फीसदी रहने का अनुमान है. खराब वित्तीय स्थिति में यह आंकड़ा 12.5 फीसदी भी हो सकता है.
वैसी स्थिति में नौ बैंक कम से कम नौ फीसदी पूंजी अनुपात रखने की शर्त से नीचे चले जायेंगे. ऐसा होना बैंकिंग सेक्टर के लिए भारी संकट होगा. अर्थव्यवस्था में सुधार से उम्मीदें जरूर बढ़ी हैं, लेकिन शेयर बाजार की लगातार बड़ी उछाल ने भी रिजर्व बैंक को चिंतित कर दिया है क्योंकि यह वास्तविक आर्थिक व वित्तीय स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करता है.
Posted By : Sameer Oraon