हाउसिंग प्रोजेक्ट को मिली नयी जान

सरकार ने इस समझदारीपूर्ण योजना से देश के रियल एस्टेट क्षेत्र को तो गति दी ही है, वित्तीय संस्थाओं को भी इससे प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा.

By डॉ अश्विनी | March 10, 2021 6:45 AM

लंबे समय से भारत का रियल एस्टेट क्षेत्र भारी संकट से गुजर रहा है. एक ओर खरीदार न होने के कारण पूर्व में तैयार आवास खाली पड़े हैं, तो दूसरी ओर हजारों हाउसिंग प्रोजेक्ट बिल्डरों के पास धनाभाव के कारण अधूरे हैं. कुछ समय पूर्व तक इस समस्या का कोई कारगर उपाय भी दिखायी नहीं दे रहा था. केंद्र सरकार द्वारा इन रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को दोबारा शुरू कराने के कई प्रयास हो रहे हैं.

लोगों की पसीने की कमाई इन प्रोजेक्टों में लगी हुई है. लाखों मध्यम वर्गीय परिवारों ने इन हाउसिंग प्रोजेक्टों में बैंकों से ऋण लेकर भुगतान किया हुआ है. इन खरीदारों ने यह सोच कर बुकिंग करायी कि घर मिलने के बाद उन्हें किराया नहीं देना पड़ेगा और उसके स्थान पर वे इएमआइ दे सकेंगे, लेकिन बिल्डरों ने उनके पैसे का गलत इस्तेमाल करके उनके घर के सपने को ही धूमिल नहीं किया, बल्कि उन पर इएमआइ का बोझ भी बढ़ा दिया.

ऐसे बिल्डरों को रास्ते पर लाने के लिए सरकार ने ‘रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी’(रेरा) नाम का कानून बना कर उनकी जिम्मेदारी तय कर दी और उनसे यह वचन लिया गया कि वे निश्चित समय में हाउसिंग प्रोजेक्ट को पूरा करेंगे. यही नहीं, नये हाउसिंग प्रोजेक्टों को भी ‘रेरा’ के दायरे में लाया गया.

इसके बावजूद यह देखा गया कि बिल्डरों ने आवास खरीदारों का धन गलत प्रकार से इस्तेमाल कर लिया है, उस धन को कम समय में वापस उसी प्रोजेक्ट में लाना आसान नहीं होगा. इस वजह से लोगों की मुसीबतें बदस्तूर जारी रहेंगी. ऐसे में सरकार ने रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को वापस पटरी पर लाने हेतु एक अत्यंत सुविचारित योजना के तहत प्रयास प्रारंभ किया.

इस योजना का नाम है ‘स्पेशल विंडो फॉर एफोर्डेबल एंड मिड इनकम हाउसिंग’. इस योजना के तहत 25 हजार करोड़ रुपये का एक निवेश फंड स्थापित किया गया, जिसमें ‘रेरा’ में रजिस्टर्ड सस्ते आवासों एवं मध्यम आयवर्ग की आवासीय परियोजनाओं, जो धन के अभाव में रुकी हुई थीं, को पूरा करने का प्रावधान रखा गया. यह फंड िसक्योरिटी एवं एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी ‘सेबी’ के साथ रजिस्टर्ड किया गया है. एसबीआइ कैप वेंचर्स को इसका संचालक बनाया गया है, जो एसबीआइ कैपिटल मार्केट्स के अंतर्गत आती है और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के स्वामित्व में है.

इस फंड को भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा प्रायोजित किया गया है. अब तक एक लाख से ज्यादा हाउसिंग इकाइयों को पूर्ण करने के उद्देश्य से 165 परियोजनाओं को इस फंड के तहत अनुमति दी जा चुकी है. इनमें से 55 प्रोजेक्टों को अंतिम अनुमति भी मिल गयी है. मार्च, 2022 तक छह हजार हाउसिंग इकाइयों को पूरा करने की तैयारी चल रही है. नयी योजना का उद्देश्य 1500 रुके हुए हाउसिंग प्रोजेक्टों को मदद देना है. इसमें वो प्रोजेक्ट भी शामिल हैं, जिन्हें नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) घोषित किया जा चुका है अथवा जिन पर दिवालिया होने की कार्रवाई भी चल रही है.

इस फंड के 14 निवेशक हैं, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी भारत सरकार की है और एलआइसी तथा स्टेट बैंक की 10-10 प्रतिशत हिस्सेदारी है. अनुमान है कि देश में कुल 4.5 लाख आवासीय इकाइयों वाले 1600 प्रोजेक्ट रुके हुए हैं, जिनमें से अधिकांश मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (41 प्रतिशत) और एनसीआर (24 प्रतिशत) के हैं.

इस योजना के पूर्ण होने पर यदि 4.5 लाख रुकी हुई आवासीय इकाइयों को पूर्ण करने में सफलता मिलती है] तो अनुमानत: दो लाख करोड़ रुपये के मृत निवेश पुनर्जीवित कर अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में लाना संभव हो सकेगा. इसके अतिरिक्त इस योजना का एक अन्य लाभ यह होगा कि इससे निवेश का चक्रीय प्रवाह भी सकारात्मक रूप से प्रभावित होगा. समझना होगा कि जब रुके हुए आवासीय प्रोजेक्टों में काम शुरू होता है]

तो सीधे तौर पर घरों में निवेश करने वाले मध्यम वर्गीय परिवार अपनी बकाया राशि का भी भुगतान करेंगे और उससे निवेश में वृद्धि होगी. यही नहीं, रुके हुए प्रोजेक्टों में काम शुरू होने पर निर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा. कई उद्योगों के साजो-सामान की मांग भी बढ़ेगी. पूर्ण हुई आवासीय परियोजनाओं का उपयोग शुरू होने पर इनकी बिक्री संभव होगी और अन्य लोग जो अभी तक रियल एस्टेट में निवेश से कतरा रहे थे, अब उसमें निवेश करने लगेंगे, जिससे रियल एस्टेट में निवेश भी बढ़ सकेगा.

मध्यम वर्ग को घर मिलने के कारण उनको अब तक जो मकान किराये पर खर्च करना पड़ रहा है, उनका वह खर्च बच सकेगा. बची हुई राशि का उपयोग वे अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने में करेंगे, जिससे देश में मांग में वृद्धि होगी, यानी कहा जा सकता है कि सरकार की इस योजना से न केवल रुके हुए प्रोजेक्टों में निवेश करने वाले मध्यम वर्गीय परिवारों को लाभ होगा, बल्कि अर्थव्यवस्था में आय और निवेश के चक्रीय प्रवाह पर भी इसका अनुकूल असर पड़ेगा.

यह सही है कि भारत सरकार के प्रयास से इस ‘एसडब्ल्यूएएमआइएच’ फंड को शुरू किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि यह कोई सरकारी सब्सिडी योजना है. यह एक निवेश फंड है, जिसमें 50 प्रतिशत भागीदारी केंद्र सरकार की है और शेष में 13 संस्थाओं का योगदान है, जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि भी शामिल हैं. वास्तव में यह इन वित्तीय संस्थाओं के लिए भी लाभकारी योजना है,

क्योंकि इसमें 12 प्रतिशत रेट ऑफ रिटर्न भी तय किया गया है, यानी इस फंड का लाभ भारत सरकार और अन्य वित्तीय संस्थाओं को भी मिलने वाले हैं, यानी कहा जा सकता है कि यह योजना ग्राहकों (मध्यम वर्गीय परिवार), सरकार, वित्तीय संस्थाओं और संपूर्ण अर्थव्यवस्था सभी के लिए लाभकारी है. सरकार ने इस समझदारीपूर्ण योजना से देश के रियल एस्टेट क्षेत्र को तो गति दी ही है, वित्तीय संस्थाओं को भी इससे प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा. यदि रियल एस्टेट क्षेत्र में स्वस्थ विकास संभव होता है तो उसका अप्रत्यक्ष लाभ भी इन वित्तीय संस्थाओं को अवश्य मिलेगा.

Posted By : Sameer Oraon

Next Article

Exit mobile version