16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आगे बढ़ता विपक्ष, पर आसान नहीं है राह

संसद के विशेष सत्र में यदि कोई बड़ा फैसला होता है या उस पर चर्चा भी होती है, तो उससे मुकाबले में बड़ा मोड़ आ सकता है. यदि कुछ ऐसे मुद्दे उठते हैं, जिनका विरोध करना आसान नहीं, तो विपक्ष को मुश्किल होगी.

विपक्षी गठबंधन को लेकर लोगों के मन में कई शंकाएं थीं और कहा जाता था कि इनके नेता फोटो खिंचवाने के लिए तो मिलते हैं, मगर गंभीर मुद्दों पर साथ नहीं होते. जून में पटना में पहली बैठक के समय अरविंद केजरीवाल के नाराज होने की बात आयी, तो कहा गया कि शायद यह पहली बैठक ही आखिरी बैठक होगी या हर बैठक में ऐसा कुछ होता रहेगा, लेकिन जुलाई में बेंगलुरु में दूसरी बैठक हुई और गठबंधन का नाम घोषित हुआ.

अब मुंबई में भी ये दल मिले, जिससे यह उम्मीद जगी है कि विपक्ष एकता की जिस राह पर चला था उस पर वह आगे बढ़ता दिख रहा है, लेकिन मुंबई बैठक से यह लगा कि अब भी कुछ बाधाएं मौजूद हैं. बैठक से पहले गठबंधन का एक समन्वयक, एक साझा झंडा या एक साझा चिह्न आने की चर्चा हो रही थी, मगर इन पर निर्णय नहीं हो पाया. विपक्षी दलों के निर्णय लेने की रफ्तार थोड़ी कम है, जो चुनाव के नियत समय से पहले करवाए जाने की चर्चा के लिहाज से अहम हो जाती है.

खास तौर पर, समन्वयक का नाम सामने नहीं ला पाने से अच्छे संकेत नहीं मिलते. हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस मुद्दे को लेकर कोई कहा-सुनी हुई हो या जबरदस्त मतभेद हैं. यह भी संभव है कि इसे लेकर सहमति भी हो जायेगी. कई नामों की चर्चा होती रही है. नीतीश कुमार का नाम प्रमुखता से उठता रहा है, क्योंकि गठबंधन बनाने की पहल उन्होंने ही की थी.

साथ ही, अन्य नेताओं की तुलना में उनकी छवि भी साफ-सुथरी रही है. पार्टियां बदलने से उनकी लोकप्रियता प्रभावित हुई हो, लेकिन उन पर भ्रष्टाचार जैसे कोई गंभीर आरोप नहीं हैं. समन्वयक के प्रश्न पर संभवतः कांग्रेस की ओर से कोई पहल नहीं होगी, क्योंकि छोटे दलों के मन में यह आशंका रहती है कि कांग्रेस हावी न हो जाए. ऐसे में यदि बड़ी पार्टी होने के नाते वह दावा करती है तो इससे अड़चनें आ सकती हैं.

विपक्ष ने वैसे समन्यवय समिति का गठन जरूर किया है. और, वैसे तो एक से अधिक लोगों को समन्वय का काम सौंपने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन 14 सदस्यों की समिति जरूरत से ज्यादा बड़ी लग रही है. इससे ऐसा लगता है जैसे विभिन्न तबकों की व्यवस्था के लिए ऐसा करना पड़ा हो, मगर इन बातों से कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि गठबंधन के सामने सबसे अहम पड़ाव आयेगा, जब सीटों के बंटवारे का विषय उठेगा.

समिति बड़ी होने से यदि सीटों के बंटवारे में सुविधा होती है, तब तो वह अच्छी ही बात होगी. समिति जितनी भी बड़ी हो, उनकी एक बैठक हो या दस बैठकें हों, लेकिन यदि सीटों के बंटवारे पर सहमति हो जाती है, तो इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. यदि फुटबॉल मैच का उदाहरण दिया जाए, तो चाहे आप जितना भी अच्छा खेलें, लेकिन यदि आप गोल नहीं कर पाते, तो आपके अच्छा खेलने की सराहना भले ही हो, लेकिन वास्तविकता तो यही होगी कि आप मैच नहीं जीत पाये. लेकिन, यदि आप अच्छा नहीं भी खेलें और संयोग या तिकड़म से भी गोल दाग देते हैं, तो आप जीत जाते हैं. अभी इन सारी समितियों या बैठकों का लक्ष्य तो यही है कि टिकट बंटवारे पर सहमति हो जाए.

अगले चुनाव की तुलना यदि वन डे क्रिकेट मैच से की जाए, तो यह मैच एकतरफा तो नहीं रहेगा. विपक्ष ने पारी की शुरुआत अच्छी की है. अब उनके मध्यक्रम को मजबूती से टिके रहना होगा. चुनाव यदि अप्रैल-मई में होते हैं, तो उन्हें निर्णयों में तेजी लानी होगी, लेकिन मैच के आखिरी के ओवर महत्वपूर्ण होंगे, जहां आस्किंग रेट बहुत ज्यादा होगी और शायद बहुत अच्छा खेलने के बावजूद जीतना मुश्किल होगा. इसका अर्थ यह है कि यह बहुत कुछ कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर करेगा.

वह केवल सीटें हारी नहीं है, बल्कि उनकी हार का अंतर भी बहुत बढ़ा है. 15 से 20 प्रतिशत के अंतर को पाट पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. आगामी चुनाव में कुछ क्षेत्रीय दल निश्चित तौर पर अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन जीत हासिल कर पाना तो लगभग असंभव है. हालांकि, संसद के विशेष सत्र में यदि कोई बड़ा फैसला होता है या उस पर चर्चा भी होती है, तो उससे मुकाबले में बड़ा मोड़ आ सकता है. यदि कुछ ऐसे मुद्दे उठते हैं, जिनका विरोध करना आसान नहीं, तो विपक्ष को मुश्किल होगी. विपक्ष उन मुद्दों का समर्थन करता है, तो भी हारता दिखेगा और विरोध करता है, तो पीएम मोदी उसी को मुद्दा बना कर जनता के बीच जा सकते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें