बाजार में हाहाकार
सावधानी बरतने की कोशिशों से भी कामकाज और कारोबार पर असर पड़ रहा है. शेयर बाजारों में सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिखती है.
एक कहावत है कि मुसीबत अकेले नहीं आती. वैश्विक शेयर बाजार आज ऐसी ही हालत का सामना कर रहा है. सोमवार को जहां दुनियाभर के बाजारों में 2008 के वित्तीय संकट के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी, वहीं गुरुवार को मुंबई शेयर बाजार सूचकांक अपने इतिहास में एक दिन में सबसे अधिक गिरकर 2017 के स्तर पर जा पहुंचा. ब्रिटिश शेयर सूचकांक 2016 के ब्रेक्जिट जनमत संग्रह के बाद से सबसे निचले स्तर पर है. यही स्थिति अमेरिकी सूचकांक डाउ जोंस की भी है. हालांकि, हमारे देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक कारकों की वजह से कुछ महीनों से बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर था, लेकिन कोरोना वायरस के कई देशों में फैलने और आर्थिक गतिविधियों पर उसके नकारात्मक असर ने बाजार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
अभी इस महामारी से निपटने तथा अफरातफरी रोकने की कोशिशें भी ठीक से शुरू नहीं हुई थीं कि सऊदी अरब और रूस द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन करने से तेल की कीमतों में भारी कमी हो गयी. अमेरिकी निवेशकों को उम्मीद थी कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना वायरस से पैदा हुई मुश्किलों का सामना करने के लिए ठोस उपायों की घोषणा करेंगे तथा इसके साथ ही आयकर में कटौती और अर्थव्यवस्था को मदद देने की पहल करेंगे. लेकिन एक तो निवेशकों को उनकी योजनाओं से निराशा हुई और दूसरे ब्रिटेन को छोड़कर यूरोप की यात्रा पर पाबंदी ने भी हौसले को पस्त कर दिया. तेल की कीमतों में कमी का सबसे नकारात्मक असर अमेरिकी तेल कंपनियों पर पड़ा है. शेयर बाजारों और निवेशकों के तार परस्पर जुड़े होते हैं, जिसकी वजह से बड़ी गिरावट की चपेट में सभी आ जाते हैं.
हालांकि, कोरोना वायरस को दुनिया ने बीते दिनों में बेहद गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था, पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे औपचारिक तौर पर वैश्विक महामारी करार देने से निराशा बढ़ी ही है. पिछले सालों और दशकों में जब ऐसी बीमारियां फैली थीं, तब संगठन ने उन्हें महामारी घोषित करने से परहेज किया था. बड़ी संख्या में मौतों के बावजूद उन बीमारियों के फैलाव पर काबू भी पा लिया गया था, किंतु इस बार न केवल साढ़े चार हजार से ज्यादा जानें जा चुकी हैं, बल्कि कई देशों में सवा लाख से अधिक मरीजों का इलाज चल रहा है.
सरकारों की पहली जिम्मेदारी उपचार की समुचित व्यवस्था करने और संक्रमण को रोकने की है. ऐसे में औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चला पाना संभव नहीं है. सावधानी बरतने की कोशिशों से भी कामकाज और कारोबार पर असर पड़ रहा है. इस माहौल में शेयर बाजारों में सुधार की गुंजाइश भी नहीं दिखती है, क्योंकि यह कह पाना मुश्किल है कि यह महामारी आगामी महीनों में क्या रूप लेगी. आर्थिक व वित्तीय नुकसान का पूरा हिसाब भी होना है. जानकार निवेशकों को शेयर बाजार से कुछ दिन दूर रहने की सलाह भी दे रहे हैं.