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पाक सरकार, विपक्ष व सेना की जंग

पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें इतनी कमजोर हैं कि हर तीन-चार साल बाद इस पर कोई न कोई कुठाराघात हो जाता है. वहां का प्रधानमंत्री सबसे कमजोर कड़ी है.

पुरानी कहावत है कि आप मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं. पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है, इसलिए न चाहते हुए भी वहां का घटनाक्रम हमें प्रभावित करता है. इन दिनों पाकिस्तान में घात-प्रतिघात का दौर चल रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान शहबाज शरीफ सरकार और सेना से टकराव की राह पर बढ़ते नजर आ रहे हैं. पाकिस्तान में सेना का इतना खौफ रहा है कि राजनेता सेना पर सवाल उठाने से डरते हैं. लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इमरान खान खुलेआम सेना को चुनौती देते नजर आ रहे हैं.

एक रैली के दौरान उन पर जानलेवा हमला हो चुका है, जिसे सेना को चुनौती देने से जोड़ कर देखा जा रहा है. अब इमरान ने एलान किया है कि उनकी पार्टी के सदस्य सभी विधानसभाओं से इस्तीफा दे देंगे. पाकिस्तान की राजनीति में सेना का हस्तक्षेप किसी से छुपा हुआ नहीं है. शरीफ सरकार ने जनरल आसिम मुनीर को नया सेनाध्यक्ष नियुक्ति किया है, जिनसे इमरान खान का छत्तीस का आंकड़ा है. जब मुनीर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख थे, तो उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने हटवा दिया था.

जब सेना प्रमुख पद के दावेदारों में मुनीर का नाम आया, तो इमरान खान और उनकी पार्टी ने इसका भारी विरोध किया. दूसरी ओर जाते जाते पुराने सेनाध्यक्ष जनरल कमर बाजवा की संपत्ति की खबर मीडिया में लीक कर दी गयी. एक पाकिस्तानी खोजी वेबसाइट की खबर के मुताबिक, जनरल बाजवा के परिजन और रिश्तेदार ने उनके कार्यकाल में अरबपति बन गये. दूसरी ओर पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है. उस पर 130 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है और महंगाई चरम पर है. जनरल बाजवा 29 नवंबर को पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष पद से रिटायर हो रहे हैं.

पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें इतनी कमजोर हैं कि हर तीन-चार साल बाद इस पर कोई न कोई कुठाराघात हो जाता है. वहां का प्रधानमंत्री सबसे कमजोर कड़ी है. चाहे वह भारी जनादेश वाली नवाज शरीफ की सरकार हो या साधारण बहुमत वाली इमरान खान की सरकार, सेना को उसे गिराते देर नहीं लगती है. स्थापना के बाद से ही पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास उथल-पुथल भरा व रक्तरंजित रहा है. वहां चार बार चुनी हुई सरकारों को सैन्य तानाशाहों ने गिराया है.

दो प्रधानमंत्रियों को न्यायपालिका ने बर्खास्त किया है, जबकि एक पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गयी और एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गयी थी. मौजूदा घटनाक्रम ऐसे ही उथल-पुथल का दोहराव है. सेना के हाथ खींच लेने के बाद कई सहयोगियों ने भी इमरान खान का साथ छोड़ दिया. यह सभी जानते हैं कि इमरान सरकार इलेक्टेड नहीं, बल्कि सेना द्वारा सेलेक्टेड प्रधानमंत्री थे. कुछ विश्लेषक तो उन्हें कठपुतली, तो कुछ मुखौटा प्रधानमंत्री ही बताते थे.

हालांकि पाकिस्तान के लिए ऐसी परिस्थिति नयी नहीं है. वहां प्रधानमंत्री आते-जाते रहते हैं और सेना तख्तापलट करती आयी है. दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले आम चुनाव में पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत लगा कर इमरान खान को जिताया था. इसके लिए चुनावों में हेराफेरी भी की गयी थी. जो भी पत्रकार, चैनल अथवा अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आया, खुफिया एजेंसियां ने उन्हें निशाना बनाया था. चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल की सजा सुना दी गयी थी, ताकि इमरान खान सत्ता के मजबूत दावेदार बन कर उभर सकें.

जब 2018 में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आयी, तो इमरान खान ने अपनी सरकार को रियासते मदीना यानी मदीने की सरकार की तरह चलाने का ऐलान किया था. पाश्चात्य जीवनशैली वाले इमरान सत्ता में आने के बाद एकदम कट्टर धार्मिक हो गये. वे 2018 में बड़ी-बड़ी बातें कर सत्ता में आये थे, पर हर मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम रहे. उनके कार्यकाल में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गयी. ऐसी विषम परिस्थितियों में इमरान खान से पीछा छुड़ाना ही सेना को बेहतर लगा.

आइएसआइ के पूर्व प्रमुख फैज हमीद को हटाने में देरी की कोशिश ने सेना को उनसे और नाराज कर दिया. उसके बाद तो सेना से उनकी लगातार दूरियां बढ़ती गयीं. आइएसआइ अधिकारी फैज हमीद इमरान खान के बेहद करीबी थे और वे राजनीतिक साजिशों का हिस्सा रहे थे. पाकिस्तान में सेना का सत्ता पर नियंत्रण कोई नयी बात नहीं है. वहां सेना का साम्राज्य चलता है. वह उद्योग-धंधे चलाती है. प्रॉपर्टी के धंधे में उसकी खासी दिलचस्पी है.

उसकी अपनी अलग अदालतें हैं. खास बात यह है कि सेना के सारे काम-धंधे को जांच-पड़ताल के दायरे से बाहर रखा गया है. कोई उन पर सवाल नहीं उठा सकता है. उसके पास लगभग हर शहर में जमीनें हैं. कराची और लाहौर में तो डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी के पास लंबी-चौड़ी जमीनें हैं. गोल्फ क्लब से लेकर शॉपिंग माल और बिजनेस पार्क तक सेना ने तैयार किये हैं. मीडिया में छपी खबरों को सही मानें, तो पाकिस्तानी सेना के पास लगभग 120 अरब डॉलर की संपत्ति है.

पाकिस्तान में सेना कितनी ताकतवर है, उसका आम भारतीयों को अंदाजा नहीं है, क्योंकि अपने देश में सेना की राजनीति में कोई भूमिका कभी नहीं रही है. वहां अदालतें सेना के इशारे पर फैसले सुनाती हैं, अन्यथा जजों को ही विदा कर दिया जाता है. यही वजह है कि अब तक पाकिस्तान में जितने भी तख्ता पलट हुए हैं, उन सभी को सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया है.

इधर, इमरान खान ने पिछले कुछ दिनों से लगातार भारत की विदेश नीति की तारीफ की है. इसका कोई विशेष अर्थ न निकालें. ऐसा वे पाकिस्तानी सेना को चिढ़ाने के लिए कह रहे हैं क्योंकि पाक विदेश नीति का नियंत्रण सेना के हाथ में है और सेना ने उन्हें सत्ता से हटाया है. इसके माध्यम से इमरान खान पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे हैं, जिसने उन्हें दूध की मक्खी की तरह फेंक दिया है. ठीक यूक्रेन युद्ध से पहले रूस की यात्रा कर उन्होंने अमेरिका और पाक सेना दोनों को नाराज कर दिया था.

उन्होंने अमेरिका पर आरोप लगाया था कि वह उनको हटाने की साजिश में शामिल है. इमरान खान ने यह भी कहा था कि अमेरिका ने सेना से कहा था कि आप अगर इमरान खान को हटायेंगे, तो हमारे ताल्लुकात आपसे अच्छे होंगे. उन्होंने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप भी मढ़ा था. पाकिस्तान का मौजूदा घटनाक्रम चिंतित करने वाला है.

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