पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने दुबई के अल अरबिया चैनल को दिये साक्षात्कार में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ईमानदार व गंभीर वार्ता करने की इच्छा जतायी है. उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि भारत के साथ लड़े गये तीनों युद्धों ने पाकिस्तान में भूख, गरीबी और बेरोजगारी को बढ़ाया है. हालांकि इस बातचीत के कुछ ही समय बाद पाकिस्तानी पीएमओ ने यू-टर्न ले लिया और कहा कि जम्मू-कश्मीर की पुरानी स्थिति बहाल होने के बाद ही भारत के साथ बातचीत होगी.
पाकिस्तान के रवैये को हम दो तरह से देख सकते हैं. पाकिस्तान की माली हालत और सुरक्षा की स्थिति दोनों बहुत खराब हैं. अफगानिस्तान में जितने आतंकी समूह थे, टीटीपी वगैरह, जिसको उसने पाल-पोसकर बड़ा किया था, वे सब पाकिस्तान के खिलाफ हो गये हैं. चीन की आर्थिक स्थिति भी इन दिनों थोड़ी-बहुत खराब है. इस वजह से पाकिस्तान की हालत तो बहुत ज्यादा खराब हो चुकी है, इसीलिए शहबाज शरीफ मदद मांगने के लिए संयुक्त अरब अमीरात भी गये थे. वहां से उन्हें कुछ मदद मिले ताकि वे बेलआउट हो जाएं.
वे यह भी चाहते हैं कि किसी तरह से दूसरे देश भी पाकिस्तान की मदद करें और आइएमएफ से अंतत: उन्हें ऋण मिल जाए. संयुक्त अरब अमीरात यह भी चाहता है कि पाकिस्तान भारत के साथ मिलकर अपने झगड़े खत्म करे, बातचीत करे और रिश्ते सुधारे. नवाज शरीफ की ही तरह शहबाज शरीफ ने भी भारत से संबंध सुधारने की बात कही है. यह भी सच है कि जब शहबाज शरीफ ने बोला कि हम सभी मुद्दों पर नरेंद्र मोदी के साथ फ्री-फ्रैंक डिस्कशन करना चाहते हैं, तब उन्होंने वहां किसी तरह की कोई शर्त नहीं रखी थी.
लेकिन जब वे वापस पाकिस्तान लौटे, तब उन्हें पता चला कि इमरान खान पूरी तरह उनके खिलाफ खड़े हैं और इस बयान को लेकर वे राजनीतिक तौर पर उन्हें ध्वस्त कर देंगे, तब उन्हें अपने बयान से पलटना पड़ा. दूसरे, कुछ दिनों पूर्व ही बिलावल भुट्टो ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ काफी अनाप-शनाप बोला था. ऐसे में शरीफ के बयान इसके एकदम उलट थे. सो, इन सब को देखते हुए ही शहबाज के पीएमओ ने यू-टर्न ले लिया. दरअसल, यह सब राजनीतिक लाभ को देखते हुए उठाया गया कदम है. इसलिए पीएमओ ने बार-बार इस बात को लेकर स्पष्टीकरण दिया कि धारा 370 को हटाये बिना भारत के साथ बातचीत नहीं होगी.
यह भी महत्वपूर्ण है कि शहबाज शरीफ ने जो कुछ भी कहा, उसकी वजह उनके ऊपर संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब का थोड़ा दबाव है कि पाकिस्तान भारत के साथ अपने संबंध सुधारे. क्योंकि भारत के रिश्ते संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब एवं खाड़ी के अन्य देशों के साथ बहुत अच्छे हो गये हैं. पहले इन देशों की हर एक चीज पाकिस्तान पर निर्भर थी, पर अब ऐसा नहीं है.
आज उनके रिश्ते भारत पर निर्भर हो गये हैं. अब खाड़ी के देश भारत के हितों को आगे रखकर बात करते हैं. एक बात और, पाकिस्तानी की राजनीति बहुत ही नाजुक है और वहां की सत्ता पर सेना का नियंत्रण है. यह भी ध्यान देने योग्य है कि शहबाज शरीफ साहब बार-बार बोलते हैं कि हम दोनों परमाणु शक्ति हैं, तो यह कोई शांति वाली बात तो है नहीं. न ही यह कोई डायलॉग डिप्लोमेसी वाली बात है.
मुझे लगता है कि उनका मुद्दा रहा होगा, या हो सकता है कि अभी भी इस बात पर चर्चा चल रही हो कि किसी तरह से भारत के साथ व्यापार और मार्ग को खोला जा सके. क्योंकि पाकिस्तान में इन दिनों गेहूं नहीं है, आटा नहीं है. वहां इसके अलावा भी काफी चीजों की समस्या है. मगर, वे भी जानते हैं कि भारत के साथ एकदम से उनके रिश्ते सुधर नहीं सकते, इसलिए वे अपनी तरफ से थोड़ी-बहुत कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनकी तात्कालिक समस्याओं का कुछ हल निकल सके.
लेकिन उनके यहां की अपनी राजनीतिक मजबूरी है, क्योंकि वहां ट्रांजिशनल गवर्नमेंट है, और शरीफ की उस पर कोई मजबूत पकड़ नहीं है? ऐसे में वे जानते हैं कि भारत के साथ बिना शर्त रिश्ते सुधारने के मुद्दे पर इमरान खान की पार्टी उनको खत्म कर देगी.
यह भी सच है कि भारत 75 वर्षों में कहां से कहां पहुंच गया और पाकिस्तान आज कहां है. पाकिस्तान की अभी जो स्थिति है उसे देखते हुए इस यू-टर्न का उनके घरेलू स्थिति पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि ऐसा नहीं है कि वहां के लोग इस बात से परेशान हैं कि पाकिस्तान की भारत के साथ मित्रता नहीं है.
वहां पर काफी हद तक सरकार, सेना, इंटेलिजेंस सब कोशिश करते हैं कि पीटूपी स्तर पर जो बातचीत है, वह भी प्रभावित हो जाए. तभी वे लोग सफल हो सकते हैं. क्योंकि उनकी रुचि है कि भारत के साथ जो समस्याएं चल रही हैं, वे बनी रहें, विवाद चलता रहे. इसके लिए वे अपने देश में भारत के खिलाफ कहानियां गढ़ते रहते हैं. लेकिन वहां के जो ईमानदार बुद्धिजीवी लोग हैं, जो इन बातों को समझते हैं, वे जानते हैं कि वास्तविकता क्या है.
पाकिस्तान के इस कदम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला. चूंकि पाकिस्तान जानता है कि चाहे वह कुछ भी कर ले, भारत पीछे हटने वाला नहीं है, वह कुछ बदलाव नहीं करने वाला चाहे पाकिस्तान बातचीत करे या न करे. भारत इन सबसे काफी आगे बढ़ चुका है. हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.
यह जरूर है कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है और इस नाते हमारी उससे बातचीत होनी चाहिए. भारत ने जरूरत पड़ने पर हर बार पाकिस्तान की मदद की है और आगे भी कर सकता है. लेकिन दोनों देशों के बीच संबंधों का सामान्य होना अभी मुश्किल है. जब तक पाकिस्तान में चुनाव नहीं होते, तब तक तो बिल्कुल भी उम्मीद नहीं है. चुनाव के बाद ही कुछ हो सकता है.
पाकिस्तान में जो परेशानी है, उसके लिए वे भारत से मदद नहीं लेना चाहते, वे संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब आदि से मदद चाहते हैं. जहां तक भारत से मदद की बात है तो ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर कुछ बातचीत हो जाए. मीडिया या खुले संवाद के द्वारा संबंध सामान्य नहीं हो सकते.
वह तभी हो सकता है जब आंतरिक स्तर पर बातचीत होती रहे और एक ऐसा बिंदु आये, जहां पर दोनों नेता सहमत हों, तभी बात बन सकती है. क्योंकि विश्वास की बहुत ज्यादा कमी है. भारत ने जब-जब बातचीत की कोशिश की है, तब-तब आतंकी हमले को अंजाम दिया गया है. पाकिस्तानी सेना और आतंकी नहीं चाहते कि दोनों देशों के संबंध सामान्य हों.