20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पाकिस्तान को अपनी गलती का अहसास

पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने स्वीकार किया है कि करगिल में घुसपैठ कर और लड़ाई छेड़ कर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुए लाहौर समझौते का उल्लंघन किया था.

डॉ धनंजय त्रिपाठी, प्राध्यापक, साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नयी दिल्ली

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने यह स्वीकार किया है कि करगिल में घुसपैठ कर और लड़ाई छेड़ कर 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुए लाहौर समझौते का उल्लंघन किया था. नवाज शरीफ तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे. जब 21 फरवरी, 1999 को दोनों नेता लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर कर रहे थे, तब पाकिस्तानी सेना करगिल में घुसपैठ कर रही थी.

इसका नतीजा लड़ाई के रूप में सामने आया और पाकिस्तानी सेना को पीठ दिखा कर भागना पड़ा था. उस समय परवेज मुशर्रफ पाकिस्तानी सेना के प्रमुख थे और बाद में नवाज शरीफ को तख्तापलट में अपदस्थ कर राष्ट्रपति बने थे. भारत ने गलती मानने के इस बयान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और कहा है पाकिस्तान में करगिल मसले पर सही समझ उभर रही है. नवाज शरीफ पहले भी अनेक बार कह चुके हैं कि पाकिस्तानी सत्ता द्वारा वाजपेयी को धोखा दिया गया था, लेकिन इस बार बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह बात उन्होंने अपनी पार्टी की शीर्ष बैठक में कही है. उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग सत्तारूढ़ दल है और वे इसके अध्यक्ष हैं तथा उनके भाई शहबाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री हैं.

नवाज शरीफ का बयान यह स्वीकार करने का संकेत भी है कि भारत के साथ संबंध खराब रख कर पाकिस्तान की उन्नति नहीं हो सकती है. राजनीतिक निर्वासन से उनकी वापसी के बाद से यह उम्मीद लगायी जा रही थी कि दोनों देशों के संबंधों में सुधार का दौर शुरू होगा. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लंबे समय से खराब स्थिति से गुजर रही है. चुनाव में भी यह प्रमुख मुद्दा था. तब यह समझ उभर रही थी और सेना को भी लगने लगा था कि भारत के साथ आर्थिक संबंध ठीक करना होगा तथा पाकिस्तान को दक्षिण एशिया के साथ जुड़ना होगा. आज सभी पड़ोसी देशों के साथ पाकिस्तान के संबंध खराब हैं. ऐसे में उसे यह भी समझ में आने लगा है कि वैश्विक स्तर पर भी वह महत्वहीन हो गया है और उसका दोहरा चरित्र सबके सामने स्पष्ट हो चुका है.

अगर पाकिस्तान को नये सिरे से कूटनीतिक पहल करनी है, तो यह जरूरी हो जाता है कि वह भारत के साथ रिश्ते बेहतर करे. यदि उसकी ओर से इस दिशा में प्रयास होता है, तो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर इसकी सराहना भी होगी. पाकिस्तान यह भी देख रहा है कि वैश्विक परिदृश्य में भारत का महत्व बढ़ता जा रहा है और अर्थव्यवस्था में भी प्रगति हो रही है.

इस माहौल में अगर उसे नये सिरे से कूटनीतिक पहल करनी है, तो यह जरूरी हो जाता है कि वह भारत के साथ रिश्ते बेहतर करे. यदि पाकिस्तान की ओर से इस दिशा में प्रयास होता है, तो क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर इसकी सराहना भी होगी. पाकिस्तान यह भी देख रहा है कि वैश्विक परिदृश्य में भारत का महत्व बढ़ता जा रहा है और अर्थव्यवस्था में प्रगति हो रही है. उसे यह स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तान किसी भी तरह से भारत के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है. ऐसे दौर में जब तमाम देश भारत के साथ संबंध बेहतर कर रहे हैं, तब पाकिस्तान के पास भारत से निकटता बढ़ाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.

इस संदर्भ में दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव भी एक महत्वपूर्ण आयाम है. दक्षिण एशिया राजनीतिक रूप से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. वह परिवर्तन यह है कि दक्षिण एशियाई देश चीन के साथ-साथ भारत के साथ भी संबंध अच्छा करना चाहते हैं. अभी हमने देखा कि किस तरह मालदीव फिर से भारत के साथ निकटता बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहा है. हमारे पड़ोसी देश यह अच्छी तरह देख रहे हैं कि भारत एशिया में एक उभरती हुई शक्ति है.

इसका असर भी पाकिस्तान पर पड़ा है. चीन पर उसकी अत्यधिक निर्भरता न तो उसके हित में है और न ही पाकिस्तान के पुराने हितैषी अमेरिका को यह भाता है. यह भी है कि नवाज शरीफ की भारत में खास दिलचस्पी रही है. पहले हमने देखा कि दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के बाद भी लाहौर समझौता हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के प्रारंभिक वर्षों में शरीफ भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने के लिए प्रयासरत रहे. तब ऐसा लगने लगा था कि दोनों देश दीर्घकालिक सहयोग की ओर बढ़ रहे हैं.

नवाज शरीफ के बयान को एक सकारात्मक संदेश के रूप में देखा जाना चाहिए. वहां की मौजूदा सरकार को कई दलों का समर्थन प्राप्त है. सेना की ओर से भी रिश्ते बेहतरी के लिए संकेत हैं. मुझे आशा है कि जल्दी ही दोनों देशों के बीच संवाद का दौर शुरू होगा और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के प्रयास होंगे. भारत और पाकिस्तान के संबंध में सबसे बड़ा अवरोध आतंकवाद और अलगाववाद को पाकिस्तान के समर्थन एवं संरक्षण के कारण रहा है. अब पाकिस्तान उस स्थिति में नहीं है कि वह भारत को क्षति पहुंचाये.

असल में आतंक से सबसे अधिक त्रस्त आज पाकिस्तान ही है. वहां के लोगों, नीति-निर्धारकों तथा रणनीतिक विद्वानों को यह अच्छी तरह समझ में आ चुका है कि पड़ोसी देशों में आतंकवाद और अलगाववाद को हवा देने की पाकिस्तान की नीति लंबे समय तक कारगर साबित नहीं हो सकती है, बल्कि उससे देश को ही नुकसान हुआ है तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता बहुत कम हुई है. इसलिए उस नीति को बदलने की जरूरत है और ऐसा होगा भी. भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार से दक्षिण एशिया को ही नहीं, बल्कि समूचे एशिया को लाभ होगा. इस दिशा में बड़े पहलों की आशा और संभावना बन रही है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें