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पाकिस्तान बना रहा फौजियों को आतंकी

मुठभेड़ों से संकेत मिलता है कि घुसपैठियों को सैनिक प्रशिक्षण मिला है. आम तौर पर आतंकियों के पास इस तरह का प्रशिक्षण नहीं होता और न ही उनमें ऐसा अनुशासन होता है.

भारतीय सेना का यह कहना एक वास्तविकता है कि जम्मू-कश्मीर को अशांत करने के लिए पाकिस्तान अपने सैनिकों को आतंकी बनाकर भेज रहा है तथा विदेशी आतंकियों की घुसपैठ कराने का षड्यंत्र भी रच रहा है. साल 2019 से देखा जाये, तो कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के लिए स्थानीय युवाओं की भर्ती का सिलसिला बहुत तेजी से कम हुआ है. उससे पहले भी कई सालों से सौ-डेढ़ सौ से अधिक स्थानीय भर्तियों की खबरें नहीं आ रही हैं. इस कारण आतंकी गतिविधियों में भी बड़ी कमी आयी है. इसकी एक वजह यह भी है कि घाटी में प्रशिक्षण करा पाना मुश्किल होता गया है. कड़ी सुरक्षा व्यवस्था भी उनके लिए परेशानी बन गयी है. ऐसी स्थिति में आतंकी कार्रवाइयों के क्षेत्र भी बदले हैं.

घाटी से अधिक घटनाएं राजौरी क्षेत्र में होने लगी हैं. डोडा में भी यह हालत बन सकती है. यह कोई नयी बात नहीं है कि पाकिस्तान अपने सैनिकों को आतंकी हमलों के लिए कश्मीर भेज रहा है. नब्बे के दशक में भी ऐसी घटनाएं हुई थीं. होता यह है कि भारतीय सुरक्षा व्यवस्था एक इलाके में आतंकियों का सफाया करती है, जिससे वहां शांति स्थापित हो जाती है. फिर वहां एक खालीपन बन जाता है, इसे आप चूक कहें या और कुछ, उसका फायदा उठाकर पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान समर्थित आतंकी गिरोह सक्रिय हो जाते हैं.

भले ही घाटी में आतंकी गतिविधियों के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं, पर पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दे को छोड़ने के लिए राजी नहीं है. ऐसे में उसे अपने सैनिकों को या विदेशी आतंकियों को इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ रही है. जहां तक विदेशी आतंकियों की बात है, तो यह भी नब्बे के दशक में हो चुका है, जब अरबी, अफगानी, सूडानी आदि कश्मीर आते थे. उनकी तादाद कम हुआ करती थी, पर वे आतंकी वारदातों में शामिल होते थे. ये सभी पाकिस्तानी सेना की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा संचालित होते थे. पाकिस्तान की नीति और व्यवहार में दोहरा मानदंड हमेशा से रहा है. भारत में कुछ लोग ऐसे हैं, जिनकी सोच है कि अगर पाकिस्तान में नवाज शरीफ के नेतृत्व में अगली सरकार बनती है, तो दोनों देशों के संबंधों में सुधार होने की उम्मीद की जा सकती है.

ऐसी सोच में कोई समझदारी नहीं है. लेकिन असलियत यह है कि पाकिस्तानी सेना की कमान जिन लोगों के हाथों में है, वे खुलेआम कहते रहे हैं कि वे कश्मीर के मुद्दे से पीछे नहीं हटेंगे. नवाज शरीफ और उनकी पार्टी भी कहती रही है कि कश्मीर को उनका समर्थन जारी रहेगा. भले कश्मीरियों को उनके समर्थन की आवश्यकता न हो, पर वे इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं. इसका सीधा मतलब है कि वे घाटी में अलगाववाद और आतंकवाद की आग को भड़काये रखना चाहते हैं. पर भारत में एक खेमा है, जो पाकिस्तान के प्यार में इस तरह पड़ा हुआ है कि उसे यह समझ ही नहीं आ रहा है कि पाकिस्तान के रवैये में कोई अंतर नहीं आया है.

सो, भारतीय सेना ने जो कहा है, वह मेरी राय में वास्तविकता पर आधारित है. हमें इस ओर भी ध्यान देना होगा कि जिस तरह से हाल में कुछ मुठभेड़ की घटनाएं हुई हैं, जिनमें हमारे कई सैनिक भी शहीद हुए हैं और घायल हुए हैं, उनको देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि घुसपैठ करने वाले मिलिटेंट या आतंकी नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के ही लोग हैं. यह कहना मुश्किल है कि ऐसे लोग पाकिस्तानी सेना से सेवानिवृत हो गये हैं या अभी भी सेना में हैं. मुठभेड़ों से संकेत मिलता है कि घुसपैठियों को सैनिक प्रशिक्षण मिला है. आम तौर पर आतंकियों के पास इस तरह का प्रशिक्षण नहीं होता और न ही उनमें ऐसा अनुशासन होता है. इस संबंध में हमें नशीले पदार्थों की तस्करी के मामले को भी देखना चाहिए, जिसका संचालन भी पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ द्वारा होता है.

पंजाब में नशे की गंभीर समस्या पहले से है और अब यह कश्मीर में भी बड़े पैमाने पर फैल रही है. अभी उतनी चर्चा नहीं हो रही है, पर राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी यह समस्या जड़ें जमा रही हैं. सुनने में आ रहा है कि इस बीमारी के गुजरात में भी फैलने के आसार हैं. जहां भी नशीले पदार्थों का मामला होता है, वहां बहुत पैसा भी होता है. आतंकवाद की आड़ में यह धंधा खूब चलाया जाता है. पंजाब में हाल में जो खालिस्तान का हौवा खड़ा करने की कोशिशें हो रही हैं, उसके लिए पैसा नशीले पदार्थों की तस्करी से ही आ रहा है. पंजाब में इस कारोबार का जो नेटवर्क है, उसमें नेता, अफसर, पुलिस के लोग शामिल हैं. ऐसे आरोप भी लगते रहे हैं और कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं.

यह बहुत गंभीर मसला है, पर दुर्भाग्य से इस पर कोई भी हाथ डालने के लिए तैयार नहीं है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब में चुनाव से पहले बड़े-बड़े दावे किये थे, पर सरकार बनने के बाद किसी तरह की ठोस कार्रवाई का कोई संकेत नहीं है. यही बात कश्मीर में हो रही है. आतंकवाद पर नियंत्रण के प्रयासों में तथा पाकिस्तान के इरादों को असफल करने की कोशिशों में नशीले पदार्थों की तस्करी के पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आबादी के एक अहम हिस्से, खासकर युवाओं, को नशे का आदी बनाकर परिवार और समाज को तबाह करना आतंक की रणनीति का ही एक हिस्सा है. और, यह कारोबार आतंकवादी और अलगाववादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने में भी सहायक होता है.

दुनियाभर में कई शोध हो चुके हैं, जिनमें रेखांकित किया गया है कि नशीले पदार्थों और आतंकवाद के बीच एक नापाक गठजोड़ बनता है. पंजाब और कश्मीर में ऐसा करने से पाकिस्तान का राजनीतिक उद्देश्य भी पूरा हो जाता है और भारत को कमजोर करने के अपने इरादे में भी कामयाब होते रहते हैं. ऐसी स्थिति में हमें एक पुख्ता रणनीति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है. यह संतोषजनक है कि कुछ घटनाओं को छोड़ दें, तो बीते वर्षों में कश्मीर घाटी में शांति की स्थिति बहुत बेहतर हुई है. खालिस्तान समर्थक तत्वों को भी काबू में करने में कामयाबी मिली है. लेकिन आतंकवाद और अलगाववाद को जड़ से मिटाने में अभी समय लगेगा. इसके लिए सीमा पर चौकसी के साथ देश के भीतर भी निगरानी बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. और, हमें ऐसे किसी भी भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि पाकिस्तान में सरकार बनने और बदलने से उसके इरादे और पैंतरे में कोई सकारात्मक बदलाव आयेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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