सुशांत सरीन, सामरिक विशेषज्ञ
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गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र पर पाकिस्तान के हालिया फैसले के दो-तीन पहलू हैं. पहला ये कि वहां पर 15 तारीख को चुनाव होनेवाले हैं और इमरान अपनी पार्टी का सिक्का जमाने की कोशिश कर रहे हैं. इसीलिए, उन्होंने इस मुद्दे को दोबारा से उठाया है. साल 2013 के आसपास चीन ने पाकिस्तान पर यह दबाव बनाना शुरू किया था कि हम इस इलाके में जो निवेश कर रहे हैं, उसमें आगे बाधा आयेगी. इस एरिया की संवैधानिक स्थिति विवादास्पद है. यह त्रिशंकु की तरह अटका हुआ है. क्योंकि, पाकिस्तान न तो उसे अपना क्षेत्र मानता रहा है और न ही वह भारत के पास है. लेकिन, उस क्षेत्र पर पाकिस्तान का नियंत्रण है.
वहां पर ऐसी तमाम पेचीदगियां हैं. पाकिस्तान में इस बात को लेकर दबाव बन रहा था कि इसका कोई हल निकाला जाये. एक पक्ष का मानना था कि इसे प्रांत का दर्जा दिया जाये, लेकिन एक दरवाजा ऐसा रखें कि अगर संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव होता है, तो इस पर कोई असर न पड़े. हालांकि, कई लोग वर्तमान फैसले के खिलाफ हैं. वे मानते हैं कि इससे उनकी स्थिति कमजोर पड़ जायेगी. क्योंकि, पाकिस्तान पिछले 70 सालों से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की दुहाई दे रहा है.
लेकिन, जिस तरह से वहां हालात बन रहे हैं, उससे पाकिस्तान के सामने मुश्किल है कि वे वहां इसे लागू कैसे करेंगे. अगर आप किसी एरिया में राजनीतिक सुधार या कुछ अधिकार देना चाहते हैं, तो आप उसे एक सरकारी आदेश के तहत भी कर सकते हैं. लेकिन, अगर आप उस एरिया को प्रांत का दर्जा देते हैं, तो आपको अपना संविधान बदलना पड़ेगा. वित्त आयोग में उसके लिए धन आवंटन करना पड़ेगा. संसद में उसके लिए आपको सीटें रखनी पड़ेंगी. सीनेट (पाकिस्तान की राज्यसभा) में भी प्रतिनिधित्व देना होगा. ऐसी तमाम चीजों में उनका हिस्सा डालना होगा. इसके लिए संविधान को बदलने की जरूरत है.
लेकिन, इसके लिए आपको दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो इमरान सरकार के पास नहीं है. विपक्ष ने एक हद तक यह साफ कर दिया है कि वे इसके पक्ष में नहीं हैं. विपक्ष के विरोध के बीच आप कैसे दो तिहाई बहुमत लेकर आयेंगे, यह बड़ा सवालिया निशान है. भारत के खिलाफ आपने वर्षों से जो ढिंढोरा पीटा था, उसका क्या होगा. आप एकतरफा फैसला ले रहे हैं. इस प्रकार तो यूएन रिजोल्यूशन खत्म हो जाते हैं.
दूसरा यह कि मीरपुर और मुजफ्फराबाद वाले इलाके में विरोध का सामना करना पड़ेगा. इसे वे आजाद कश्मीर कहते हैं, जो न आजाद है और न ही वर्तमान में कश्मीर है. लेकिन, वह पुरानी कश्मीर रियासत का हिस्सा है, वहां पर इसका ज्यादा विरोध है. वे कहते हैं कि 1949 में आपने प्रशासनिक कारणों से इस एरिया को हमसे अलग कर दिया था. अब आप उसे मिला रहे हैं, तो हमारी संप्रभुता के साथ समझौता कर रहे हैं. विपक्ष का भी आरोप है कि इसे शामिल करके आप नियंत्रण रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा बना रहे हैं. इस तरह तो आप भारत के पक्ष में खेल रहे हैं.
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा है. दूसरा, भारत में जो अलगाववादी तत्व हैं, वे इस कदम के खिलाफ होंगे, क्योंकि वे जनमत की बात करते आये हैं, इससे उनकी स्थिति कमजोर होगी. अगर पाकिस्तान इसे अपने में शामिल कर लेता है, तो यह जनमत कैसे होगा. यूएन प्रस्ताव की पहली शर्त है कि पाकिस्तान उस इलाके से अपनी फौज हटाये और वहां बाहर से आकर बसे लोगों को निकाले. उसका कब्जा भारत को देना पड़ेगा. कानून-व्यवस्था बनाने के लिए भारत वहां अपनी फौजें तैनात करेगा.
दूसरी बात, अंदरखाने वहां पाकिस्तान को कड़े विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है. एक पक्ष पाकिस्तान का समर्थन करता है, वहीं एक पक्ष अपनी स्वायत्तता की मांग करता है. एक पक्ष भारत के साथ मिलना चाहता है और वह पाकिस्तान के खिलाफ है. वहां समुचित कानून-व्यवस्था नहीं है और लोगों के पास नागरिक अधिकार नहीं हैं. इससे वहां मानवाधिकारों का हनन होता है.
अन्य जगहों पर नागरिकों के लिए जो सुरक्षा के प्रावधान होते हैं, वहां पर वह नहीं है. पाकिस्तान के जुल्म के खिलाफ लोग आक्रोशित भी हो रहे हैं. उनके प्रदर्शनों को दबाया भी जाता है. अशांति की यह स्थिति पिछले 75 वर्षों से बनी हुई है. अब सबसे अहम है कि पाकिस्तान के इस फैसले से कूटनीति और सामरिक नीति पर क्या असर होता है.
भारत ने पाकिस्तान के इस फैसले का विरोध किया है. हम मुददा तो उठा देते हैं, लेकिन उसका प्रभाव सीमित रहता है. हमें पूरी संजीदगी के साथ विरोध करना होगा, जिससे दुनिया को यह संदेश जाये कि भारत इस मामले को लेकर अधिक गंभीर है. हमें अपने स्तर पर कार्रवाई करनी होगी. उदाहरण के तौर पर वहां काम करनेवाली कंपनियों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं. उन देशों और संगठनों को प्रतिबंधित कर सकते हैं, जो वहां सक्रिय हैं. वहां निवेश और कारोबार करनेवाली चीनी कंपनियों को भारत ब्लैक लिस्ट कर सकता है.
हमने जम्मू-कश्मीर की रियासत के लिए कुछ सीटें आरक्षित की थीं. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सीटें, चुनाव नहीं होने से पूरी नहीं हो पाती थीं. लेकिन, अब केंद्र शासित प्रदेश बन गया है. भारत के संविधान में नामित करने की व्यवस्था है. इस तरह का कोई कानून बनना चाहिए, जिससे अमेरिका और यूरोप में सक्रिय पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को नामित करने की व्यवस्था बन सके. राज्य विधानसभा में उस क्षेत्र के लोगों की नुमाइंदगी होनी चाहिए.
बेशक, दो-चार लोग ही हों, लेकिन जरूर होने चाहिए. हमें निरंतर इस मुद्दे को अलग-अलग फोरम पर उठाना चाहिए और दुनियाभर में अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए. मानवाधिकारों के हनन के मामलों को हमें पुख्ता प्रमाण के तौर पर पेश करना चाहिए. मौखिक के बजाय इस मामले को लेकर तथ्यों के साथ पेश आना चाहिए, ताकि अन्य देशों को भी ये बातें समझ में आयें. बयानों तक सीमित न रहते हुए हमें अधिक सक्रियता के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.) (बातचीत पर आधारित)
Posted by: Pritish Sahay