भारत में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद पाकिस्तान पहुंचे चीन के विदेश मंत्री किन गांग और पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के साझा वक्तव्य में जो चीन की ओर से कश्मीर पर कहा गया है, उसमें कोई नयी बात नहीं है. यह चीन बीते दो दशकों से कहता रहा है. उस बयान को अगर हम किसी चीज के साथ जोड़कर देखेंगे, तो मेरे ख्याल से हम गलती करेंगे. चीन की कश्मीर पर जो नीति है, उसमें कोई बदलाव नहीं आया है.
अक्सर हम देखते हैं कि जब पाकिस्तान और चीन के बीच में बातचीत होती है और बयान जारी होता है, तो उसमें यही कहा जाता है कि पाकिस्तान ने चीन को कश्मीर की स्थिति से अवगत कराया और फिर चीन ने कहा कि यह इतिहास की एक समस्या है और इसे दोनों देशों को आपस में बैठकर संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव और अन्य द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर सुलझाना चाहिए. जहां तक एससीओ की बैठक में बिलावल भुट्टो के बयानों का मामला है, तो उनसे ऐसी उम्मीद भी नहीं थी कि वे इससे अलग हटकर कुछ करेंगे. उन्होंने जो अनर्गल बातें कही हैं, उसको लेकर हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
बिलावल भुट्टो ने जो भी कहा है, वही उनकी कूटनीति भी है और राजनीति भी. एक लिहाज से वे वही सब कर रहे हैं, जो कभी उनके नाना जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी माता बेनजीर भुट्टो द्वारा किया जाता था कि भारत में आकर भड़काऊ बातें करो और अपनी राजनीति चमकाओ. बिलावल भुट्टो का लहजा जरूर कुछ अलग है, पर बातें पुरानी ही हैं.
उन्होंने भारत में आकर भारत को धमकी दी है कि अगर आप जम्मू-कश्मीर में जी-20 समूह की बैठक करेंगे, तो उनका जवाब ऐसा होगा, जो आप कभी भूलेंगे नहीं. इस तरह का बातों का भारत की ओर से जवाब देना लाजिमी था. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने संवाददाता सम्मेलन में जवाब भी दे दिया और यह भी बता दिया कि भारत इनके बारे में क्या सोचता है.
एससीओ बैठक के मेजबान होने के नाते भारत की जो औपचारिकताएं थीं, उसे बहुत अच्छी तरह पूरा किया गया. पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत का व्यवहार बिल्कुल उचित था और कूटनीतिक मर्यादाओं के पूरी तरह अनुकूल था. लेकिन बिलावल भुट्टो के बयान पर जयशंकर को कहना पड़ा कि अगर आप मेरे यहां मेहमान बनकर आये हैं और आप अच्छे मेहमान नहीं है, तो फिर ठीक से मेहमाननवाजी करने का हमारा भी फर्ज नहीं बनता है. फिर उसी भाषा में जवाब दिया जायेगा, जिस भाषा में उन्होंने बातें कीं.
बयानों के अलावा भारत ने पहले से यह फैसला कर लिया था कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री के साथ द्विपक्षीय स्तर पर कोई बातचीत नहीं होगी. तो इस पर भी किसी को अचरज नहीं होना चाहिए. दोनों देशों के बीच जो मौजूदा माहौल है, वह सबके सामने है. ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिख रहा है, जिससे संवाद हो पाने की कोई उम्मीद जगे.
मेरी राय में पाकिस्तान के पास मजबूरी भी है कि वे बहुत कमजोर हो चुके हैं, लेकिन वे भारत और दुनिया के सामने यह संकेत भी नहीं देना चाहते हैं कि पाकिस्तान झुक गया है. यही बिलावल भुट्टो ने किया है. अगर वे चाहते, तो दूसरे तरीके से भी बातों को रख सकते थे. वे बहुत सी ऐसी बातें कह सकते है, जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच माहौल सुधारने में मदद मिलती. दो माह बाद एससीओ का शिखर सम्मेलन होने वाला है.
वह भी भारत में ही होना है. उस आयोजन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के शामिल होने की उम्मीद है. अब बिलावल भुट्टो ने जो जमीन तैयार की है, उससे लगता है कि या तो शरीफ आयेंगे नहीं या फिर आयेंगे भी तो, दोनों देशों के बीच कटुता अधिक बढ़ चुकी है. इस प्रकार, बिलावल भुट्टो ने भविष्य के लिए भी माहौल को बद से बदतर कर दिया है.
पाकिस्तान के भीतर वैसे ही उथल-पुथल चल रही है और चुनाव को लेकर भी आशंकाएं हैं. अगर इस साल अक्टूबर में चुनाव भी होते हैं, तो यह देखना होगा कि नयी सरकार क्या है और उसका रवैया क्या है. अगर चुनाव नहीं होते हैं, तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वहां सेना सत्ता में काबिज होगी. उसके कुछ महीनों बाद भारत में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. इस बीच अगर पाकिस्तान कुछ ऐसा करे, जिसे भारत सरकार अपनी उपलब्धि माने और उसे लेकर चुनाव में जाए. ऐसा होना मेरे ख्याल से असंभव सा लगता है.
अगर ऐसा नहीं होता है, तो भारत सरकार की ओर से कोई पहल नहीं होगी. यदि आगामी चुनाव के बाद फिर केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आती है, तो उसके पास पाकिस्तान से बातचीत करने का और भी कम इंसेंटिव होगा. दूसरी तरफ, चीन की ओर से अच्छे बर्ताव की उम्मीद का जो सवाल है, तो अभी तक तो उनकी ओर से इस संबंध में कोई पहल नहीं हुई है और इस बारे में अधिक उम्मीद रखना भी ठीक नहीं है.
आगामी एससीओ शिखर सम्मेलन और जी-20 समूह के नेताओं की बैठक में चीनी नेतृत्व की भागीदारी होगी. हो सकता है कि पहले चीन के प्रधानमंत्री भारत आयें और बाद में राष्ट्रपति का आगमन हो. इन नेताओं के दौरे से भी भारत और चीन के आपसी संबंधों में बेहतरी की अपेक्षा रखने का आधार नहीं है. पहले जो जी-20 समूह के शिखर सम्मेलन हुए, उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से द्विपक्षीय बातचीत नहीं की.
आज जो स्थिति है, उसमें भी ऐसी किसी मुलाकात की संभावना न के बराबर है. अगर सचमुच में चीन बातचीत के लिए गंभीर है, तो रिश्ते बेहतर करने के लिए उसे कुछ ब्रेकथ्रू करना होगा, अन्यथा ऐसे मिलने और बात करने का बहुत मतलब नहीं रह जाता है. और, भारत की ओर से ऐसी किसी द्विपक्षीय बैठक को लेकर खास उत्साह भी नहीं है.
एससीओ समूह के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों की बैठकों का अगर कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका है, तो हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसे किसी नतीजे को लेकर कोई उम्मीद भी नहीं थी. इसलिए इसे लेकर निराश होने की जरूरत भी नहीं है. कुल मिलाकर, यह चीन और पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वे भारत के साथ किस तरह के संबंध रखना चाहते हैं. जैसा भी उनका रवैया होगा, भारत की प्रतिक्रिया भी वैसी ही होगी. ऐसा स्पष्ट संकेत भारत ने अपने पड़ोसियों को दे िदया है.