घातक हो सकती है महामारी
कोरोना की वजह से वाहन, मोबाइल और दवा उद्योग पर तो सीधा असर पड़ा है, क्योंकि इनमें अधिकतम उत्पादन चीन में होता है. इस स्थिति में भारत के लिए इन क्षेत्रों में अपने को स्थापित करने का अच्छा मौका था.
संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
sandeep.bamzai@gmail.com
शेयर बाजार किसी तरह की अनिश्चितता नहीं चाहता है. यह बाजार तीन चीजों पर निर्भर करता है- आय, लाभ एवं निवेश. कोरोना के कहर ने उसके सामने एक बड़ी अनिश्चितता पैदा कर दी है. चीन में कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यवस्था पर गहराया संकट अब वैश्विक स्तर पर अमेरिका और यूरोप और एशिया के कई देशों तक पहुंच गया है. इसके कारण उत्पादन शृंखला में बहुत सारी रुकावटें आयी हैं और वाहन, दवा और मोबाइल फोन समेत लगभग सभी उद्योग प्रभावित हुए हैं. अमेरिका में तकनीकी कंपनियों के केंद्र सिएटल में कुछ दिन पहले तक कोरोना से जुड़े 27 मामले सामने आये थे और उनमें से नौ लोगों के मरने की खबर है.
इसे ध्यान में रखते हुए माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को घर से काम करने की सलाह दे रही हैं. सैन फ्रांसिस्को और कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली के आसपास हालात बहुत गंभीर हैं. हवाई यात्राओं में भी कमी आयी है तथा अनेक कंपनियां अपनी उड़ानें रद्द कर रही हैं. लुफ्थांसा एयरलाइन ने अपनी आधी से ज्यादा उड़ानें रोक दी हैं. हिल्टन समूह ने चीन में 150 से भी ज्यादा होटल बंद कर दिये हैं. इससे पहले ऐसी स्थिति कभी नहीं पैदा हुई थी. इस स्तर का संत्रास इससे पहले कभी नहीं देखा गया था.
कोरोना वायरस की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका एंटीडोट उपलब्ध नहीं है. आप 14 दिनों तक तो संशय में ही रहते हैं कि आप कोविड-19 से पीड़ित हैं या नहीं. जब तक इसका कोई एंटीडोट नहीं बनाया जाता है, तब तक चारों तरफ ऐसे ही माहौल की संभावना है. अमेरिका और भारत के शेयर बाजारों में भारी गिरावट आयी है. साल 2008 में जब वैश्विक बाजार में मंदी आयी थी, तब भी इतना नुकसान देखने को नहीं मिला था.
हालांकि, वह एक आर्थिक मंदी थी और आज का संकट एक स्वास्थ्यजनित समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इसे विश्वव्यापी महामारी घोषित किये जाने के बाद यह तय है कि दुनिया में कोई भी इससे सुरक्षित नहीं है. पहले जितनी भी ऐसी महामारियां फैली हैं, जैसे- सार्स, स्वाइन फ्लू आदि, उनका गर्म प्रदेशों में प्रभाव कम हो जाता था, लेकिन इस वायरस के साथ अभी तक ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला है, क्योंकि सिंगापुर और केरल जैसी जगहों पर भी कोरोना से जुड़े मामले सामने आये हैं.
यह एक आयातित बीमारी है. उदाहरण के लिए, अमेरिका के टेक्सास से एक भारतीय मूल का निवासी जब भारत वापस आया, तो हवाई यात्रा और पूरे सफर के दौरान उसके संपर्क में आने से दो हजार से अधिक लोग संक्रमित हुए. हमारे देश में जितने भी मामले आये हैं, वे सभी बाहर से आये लोगों से जुड़े हुए हैं. लद्दाख में संक्रमित रोगी ईरान से वापस आया है, केरल में संक्रमित नर्स चीन से लौटी थी और नोएडा में जो रोगी पाया गया, वह इटली से आया था.
राजस्थान में कई रोगी विदेशी पर्यटक हैं. भारत में रह रहे लोगों में स्वजनित कोरोना वायरस के संक्रमण का अभी तक एक भी मामला सामने नहीं आया है. मूडीज एनालिटिक्स के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को यह महामारी 1.9 प्रतिशत तक प्रभावित करेगी. यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था की बढ़त तीन प्रतिशत की दर से हो रही है, तो इसमें से दो प्रतिशत तक का झटका कोरोना दे सकता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के गिरने का असर हर ओर देखने को मिलेगा.
सऊदी अरब में तेल उत्पादन को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म है. ऐसी अपुष्ट खबरें आ रही हैं कि बादशाह सलमान बीमार हैं और उनके दोनों बेटों के बीच मतभेद है. तेल के बाजार को लेकर अभी यही समझा जा सकता है कि सऊदी अरब जो तेल के बाजार में कहीं पिछड़ गया था, वह इस संकट की घड़ी को पूरी तरह भुनाने का प्रयास करेगा. ऐसा माना जा रहा था कि इलेक्ट्रिक वाहनों के आने से तेल की जरूरतें कम हो जायेंगी. लेकिन, सऊदी शहजादे मोहम्मद बिन सलमान और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तेल के दाम इतने गिरा दिये हैं कि उसे छोड़कर लोग महंगे इलेक्ट्रिक साधनों का प्रयोग करें, यह कहीं से भी संभव नहीं लग रहा है.
इतने बड़े वैश्विक आर्थिक संकट को भी सऊदी अरब और रूस ने भुना लिया है. इस संकट की तुलना किसी भी पुराने आर्थिक संकट से नहीं की जा सकती है, क्योंकि इससे मात्र आर्थिक नुकसान नहीं हो रहा है, लोग मौत की चपेट में आ रहे हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में पिछले दो वर्षों में अमेरिका सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश बन गया था, परंतु सऊदी अरब और रूस ने इस संकट की घड़ी का लाभ उठाते हुए फिर से सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों की श्रेणी में शीर्ष पर आ गये हैं.
हम अभी एक आपातकाल जैसी स्थिति में हैं, जहां सब कुछ धुंधला है और किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचा नहीं जा सकता है. भारत ने 15 अप्रैल तक वैध सभी वीजा को स्थगित कर यह साफ कर दिया है कि वह किसी भी तरह से इस संक्रामक रोग का आयात नहीं करना चाहता है. जब तक इस महामारी का एंटीडोट नहीं बनता, तब तक स्थिति और घातक होने के ही आसार हैं. अगले छह महीने से एक साल में इसका कोई एंटीडोट उपलब्ध होगा, इसकी संभावना कम ही है. अमेरिका और इजराइल जैसे देश लगातार इस दिशा में प्रयासरत हैं, पर इस वायरस को अलग कर पाना ही बड़ी समस्या है. आज विज्ञान चाहे कितना भी सक्षम हो गया हो, लेकिन किसी महामारी का एंटीडोट बनाने में बहुत समय लग जाता है.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत गहरा असर पड़ेगा. पहले से ही यह डगमगायी हुई है. ऐसे में इस स्वास्थ्य समस्या से निपटना सरकार के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. कोरोना की वजह से वाहन, मोबाइल और दवाई उद्योग पर तो इसका सीधा असर पड़ा है क्योंकि इनमें अधिकतम उत्पादन चीन में होता है. इस स्थिति में भारत के लिए इन क्षेत्रों में अपने को स्थापित करने का अच्छा मौका था. विश्व के 207 देशों में से मोबाइल निर्माण मात्र दो देशों- चीन और वियतनाम- में होता है. अब जब चीन संकट से जूझ रहा है, तो भारत तीसरा मोबाइल उत्पादक देश बन सकता था. लेकिन हमने यह अवसर खो दिया है. यह विश्व्यापी रोग एक बड़ा संकट है और इसके प्रकोप के जल्द कम होने की संभावना बहुत कम दिख रही है. शायद फिल्मों में दिखाया जानेवाला प्रलय आज यथार्थ में हमारे सामने आकर खड़ा हो गया है.