‘परीक्षा पे चर्चा’ परिवर्तनकारी कदम, पढ़ें धर्मेंद्र प्रधान का खास लेख
Pariksha-Pe-Charcha : एक बच्चे की प्राकृतिक प्रतिभा को निखारना और उसे उसकी पसंद के शैक्षणिक और पाठ्येतर गतिविधियों में रचनात्मक रूप से शामिल करना हमारे शैक्षणिक संस्थानों के सामने कठिन चुनौतियां रही हैं.
Pariksha-Pe-Charcha :प्रकृति ने अपनी असीम बुद्धि से प्रत्येक मनुष्य को एक अलग पहचान दी है- हमारी उंगलियों के निशान से लेकर आंखों की पुतलियों तक, हमारे अनुभव से लेकर विचारों तक, हमारी प्रतिभाओं से लेकर उपलब्धियों तक. मानवीय विशिष्टता के बारे में यह गहन सत्य हमारे समाज की विशेषता रही है और हमारी शिक्षा प्रणाली को इस विशेषता को प्रतिबिंबित करना चाहिए. प्रत्येक बच्चे में कुछ जन्मजात प्रतिभा होती है. कुछ शैक्षिक प्रतिभा से चमकते हैं, अन्य रचनात्मकता के लिए तत्पर होते हैं, कई अन्य एथलेटिक और पेशेवर कौशल से युक्त होते हैं. इस विशिष्टता को दर्शाते हुए स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘शिक्षा मनुष्य में पहले से मौजूद पूर्णता की अभिव्यक्ति है.’
एक बच्चे की प्राकृतिक प्रतिभा को निखारना और उसे उसकी पसंद के शैक्षणिक और पाठ्येतर गतिविधियों में रचनात्मक रूप से शामिल करना हमारे शैक्षणिक संस्थानों के सामने कठिन चुनौतियां रही हैं. शिक्षकों और नीति निर्माताओं के रूप में हमारी भूमिका एक बच्चे की अनूठी प्रतिभा को विकसित करना है, जिससे वह चुने हुए लक्ष्य में श्रेष्ठता प्राप्त कर सके. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 ने प्रतिभा को परिभाषित करने और उसको विकसित करने के तरीके में एक विलक्षण बदलाव किया है. यह एक दार्शनिक ढांचा है, जो वास्तव में हमारे प्रत्येक बच्चे में मौजूद विशिष्टता की सूक्ष्म रूपरेखा का वर्णन कर सकता है और जो हमारे देश की उन्नति में योगदान देता है.
हमारे प्रधानमंत्री के दूरदर्शी नेतृत्व में हम शिक्षा में संपूर्ण सुधार लागू कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे की शैक्षिक यात्रा हमेशा रोमांचकारी और यादगार बनी रहे, बच्चे पढ़ाई व परीक्षा के दौरान किसी भी तरह के तनाव और दबाव से मुक्त रहें. यह दृष्टिकोण हमारे शैक्षिक सुधारों का केंद्र है, बुनियादी शिक्षा से लेकर शिक्षा और अनुसंधान के उच्चतम स्तरों तक. कुछ साल पहले हमारे युवा शिक्षार्थियों के लिए बाल वाटिका या खिलौना-आधारित शिक्षा ने व्यापक संदेह को आमंत्रित किया होगा. आज एनईपी की बदौलत ये अभिनव दृष्टिकोण प्रारंभिक शिक्षा में आमूल परिवर्तन ला रहे हैं, जिससे सीखना कष्टदायक होने के बजाय एक आनंददायक कार्य बन गया है. हमारी नयी शिक्षा प्रणाली यह मानती है कि प्रत्येक बच्चा अपनी प्राकृतिक प्रतिभा के अनुसार विकास करता है.
हमारी क्रेडिट ट्रांसफर नीति, जो एक अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट स्थापित करती है, एक और उन्नतिशील कदम आगे बढ़ाती है. यह माना जाता है कि जीवन का मार्ग हमेशा सीधा नहीं हो सकता, बल्कि इसमें उतार-चढ़ाव भी हो सकते हैं और सीखना विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न गति से हो सकता है. शिक्षार्थी औपचारिक शिक्षा को रोक सकते हैं, क्योंकि वे अपनी रुचि के अनुसार काम करते हैं, व्यवहारिक अनुभव प्राप्त करते हैं तथा अपने परिवार का समर्थन करते हैं. जब वे औपचारिक शिक्षा में वापस लौटते हैं, तब उनके अपने अनुभव और उपलब्धियां काम आती हैं और इन्हें महत्व दिया जाता है, जो उनके क्रेडिट अकादमिक रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है. यह अनुकूलता इस बात को जोर देती है कि सीखने के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं, जो लोगों को उनके जीवन के किसी भी मोड़ पर सीखने के पारिस्थितिकी तंत्र में वापस लाते हैं. सरकार ऐसी संस्कृति विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां परीक्षा में सफलता कभी भी संपूर्ण विकास पर हावी न हो, जिससे हमारे युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान न हो. इस महत्वपूर्ण चुनौती को पहचानते हुए हमारी सरकार ने परीक्षा से संबंधित तनाव दूर करने में मदद करने को एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बना दिया है.
प्रधानमंत्री की अभूतपूर्व ‘परीक्षा पे चर्चा’ पहल छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के मूल्यांकन के तरीके को बदलने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है.छात्रों और अभिभावकों के साथ प्रधानमंत्री की बातचीत ने परीक्षा की चिंता को राष्ट्रीय संवाद में बदल दिया है. उन्होंने पिछले कई वर्षों से परीक्षाओं को लेकर होने वाली चिंता दूर करने का प्रयास किया है, जो संवेदनशील दिमाग पर अनावश्यक दबाव डालती है.
प्रधानमंत्री के अपने जीवन और अनुभवों से लिए गये व्यवहारिक सुझावों को परीक्षार्थियों ने खूब सराहा है, जिससे उनका परीक्षा में तनाव मुक्त प्रदर्शन आश्वस्त हुआ है. सच्चे नेतृत्व के एक उदाहरण में हम भारतीयों की भावी पीढ़ी को बढ़ावा देने के लिए एक दूरदर्शी नेता के समर्पण को देख रहे हैं, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान देता है और राष्ट्र की प्रगति की ओर निरंतर अग्रसर होना सुनिश्चित करता है. माता-पिता और समाज तथा नागरिक पर यह परिवर्तन केंद्रित है. ‘परीक्षा पे चर्चा’ मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षण सहायक वातावरण के महत्व को उजागर करने में परिवर्तनकारी रही है. यह एक ऐसी मानसिकता है, जिसे केवल 10वीं और 12वीं के छात्रों की बोर्ड की कक्षाओं के अलावा सभी कक्षाओं और सभी उम्र के छात्रों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, ‘बच्चे को अपनी शिक्षा तक सीमित न रखें, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है.’ शैक्षिक परिवर्तन के प्रति हमारा दृष्टिकोण इसी ज्ञान से निर्देशित है. जब समुदाय, शिक्षक और परिवार मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं, जहां छात्र का विकास हो सके, तो सफलता अवश्य मिलती है. कक्षा से लेकर खेल के मैदान तक, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों से लेकर अनुसंधान प्रयोगशालाओं तक हमें ऐसे स्थान बनाने चाहिए, जहां अलग-अलग प्रतिभायें अपनी चमक पा सकें और विकास कर सकें.
जैसे-जैसे हम विकासित भारत की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, हमारी शिक्षा प्रणाली राष्ट्रीय परिवर्तन की एक प्रमुख आधारशिला के रूप में खड़ी है. हम मानते हैं कि हर कौशल में योग्यता होती है, हर यात्रा का मूल्य होता है, और हर बच्चे को उत्कृष्टता के लिए अपना अनूठा मार्ग खोजने का अधिकार है. जब हम विविध प्रतिभाओं का पोषण करते हैं, तब अपने समाज के ताने-बाने को मजबूत करते हैं और सभी क्षेत्रों में अपने राष्ट्र की क्षमताओं को बढ़ाते हैं. आज मैं अपने महान राष्ट्र के प्रत्येक माता-पिता, शिक्षक और नागरिक का आह्वान करता हूं. शिक्षा का परिवर्तन केवल एक सरकारी पहल नहीं है-यह एक राष्ट्रीय मिशन है, जो हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता और साझा दृष्टिकोण की मांग करता है.ि प्रत्येक बच्चे की अद्वितीयता में भारत के भविष्य की विलक्षणता निहित है. तनाव मुक्त शिक्षा हमारे बेहद प्रतिभाशाली छात्रों के अनुपम योगदान को निखारने की कुंजी होगी.