भारतीय संसद की सुरक्षा व्यवस्था में जो बहुत बड़ी चूक बुधवार को हुई, वह बेहद चिंताजनक है. जिस प्रकार दो युवा रंगीन धुएं के कैनिस्टर लेकर लोकसभा के भीतर पहुंचने में कामयाब हुए, उससे स्पष्ट है कि सुरक्षाकर्मियों ने जांच में लापरवाही बरती. जैसा कि सरकार, लोकसभा स्पीकर और दिल्ली पुलिस द्वारा बताया गया है कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर समीक्षा की जा रही है और सुरक्षाकर्मियों के व्यवहार की जांच हो रही है. ऐसा किया जाना जरूरी भी है. खबरों में बताया गया है कि आठ सुरक्षाकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है. जांच के बाद और कार्रवाई की उम्मीद है. संसद जैसी अहम जगहों की सुरक्षा की विशिष्ट व्यवस्था की जाती है, उसका एक प्रोटोकॉल होता है. यह देखना होगा कि उसका ठीक से पालन क्यों नहीं हुआ. यह भी ध्यान देने की बात है कि जब संसद का सत्र चल रहा होता है, तो अतिरिक्त पुलिसकर्मी भी तैनात किये जाते हैं. तेरह दिसंबर के ही दिन 2001 में पुराने संसद भवन में बड़ा आतंकी हमला हुआ था. उल्लेखनीय है कि अमेरिका में रहकर भारत में अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने की कोशिश में लगे एक खालिस्तानी अतिवादी ने खुलेआम धमकी दी थी कि वह संसद पर हमला करा सकता है. इसके बावजूद ऐसी चूक होना चिंताजनक है.
जहां तक सुरक्षाकर्मियों की बात है, तो उन पर निश्चित रूप से कार्रवाई होनी चाहिए और हो भी रही है, लेकिन जिन सांसद ने उन युवाओं को पास जारी करवाया था, उनकी भी कम गलती नहीं है. दर्शक दीर्घा में बैठने के लिए पास बनाने के स्पष्ट नियम हैं. सांसद को यह लिखित घोषणा करनी पड़ती है कि जिसके लिए वह पास जारी करवाना चाहता है, वह व्यक्ति उसका परिजन, संबंधी या अच्छी तरह से परिचित है. उसे उस व्यक्ति के कृत्य और व्यवहार की भी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है. रिपोर्टों के अनुसार, उक्त सांसद ने कहा है कि वे लोकसभा में घुसे एक लड़के के पिता को जानते हैं, जो उनके क्षेत्र के हैं. फिर भी उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि वे लड़के को ठीक से जानें. खबरों में पुलिस के हवाले से बताया गया है कि इन लड़कों का समूह जुलाई में भी संसद भवन गया था. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि उस समय किस सांसद के कहने पर पास जारी हुआ था. इस संदर्भ में यह भी याद किया जाना चाहिए कि 2001 में हुए हमले में इस्तेमाल कार में गृह मंत्रालय का पुराना या फर्जी स्टिकर लगा हुआ था, जिससे सुरक्षाकर्मी धोखा खा गये थे. अब तो यह भी नियम है कि सांसद की उसी कार को विशेष द्वारा से जाने की अनुमति होती है, जिस कार पर संसद द्वारा जारी स्टिकर लगा होता है.
यह संतोष की बात है कि इस चूक से जान-माल का नुकसान नहीं हुआ, पर इससे मामले की गंभीरता कतई कम नहीं हो जाती. हवाई अड्डों और कई संवेदनशील स्थानों पर जूते उतार कर तलाशी ली जाती है. ऐसा संसद में नहीं होना अचरज की बात है. दूसरी महत्वपूर्ण चूक यह है कि लड़के दर्शक दीर्घा से सदन में कैसे कूद गये. संसद की नयी इमारत अभी बनी है. उसमें ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि लोगों और सांसदों के बीच समुचित दूरी हो. दर्शक दीर्घा में ऐसा पुख्ता इंतजाम होना चाहिए कि कोई कूद न सके. खबरों में बताया जा रहा है कि उच्च स्तरीय जांच के साथ-साथ तात्कालिक तौर पर अनेक कदम उठाये जा रहे हैं. मीडिया से बातचीत के लिए एक विशेष स्थान निर्धारित किया गया है. सांसदों को स्मार्ट पहचान पत्र और फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम के बारे में निर्देश दिये गये हैं. सुरक्षाकर्मियों की संख्या भी बढ़ायी जा रही है. आशा करनी चाहिए कि जांच रिपोर्ट आने के बाद और भी कदम उठाये जायेंगे.
अभी तक हुई जांच की खबरों के अनुसार, सदन में कूदने और धुआं फैलाने वाले युवाओं के किसी आतंकी संगठन से संबंध नहीं है. अभी तक पांच लोगों को पकड़ा गया है, जबकि इस घटना का षड्यंत्र रचने वाला फरार है. गहन पूछताछ के बाद ही सच्चाई सामने आ सकेगी. चूंकि यह बहुत बड़ी घटना है, तो पुलिस कोई कसर बाकी नहीं रखेगी. पर यह सवाल तो है कि अगर संसद के भीतर कैनिस्टर ले जाया जा सकता है, तो कोई खतरनाक रसायन या हथियार भी जा सकता है, अगर सुरक्षा के इंतजामों में कोई कमी रही. कोई ढाई दशक पहले एक व्यक्ति लोकसभा में घुस गया था, पर उसे संसद के कर्मियों ने तुरंत पकड़ लिया था. उस के बाद यह पहली बार हुआ है, जब दो युवा सदन में घुस गये. इसके अलावा दर्शक दीर्घा से कागज फेंकने और नारे लगाने के कुछ मामले हुए हैं. पर धुएं वाला कैनिस्टर ले जाना अपनी तरह की पहली घटना है. विरोध जताने या सरकार का ध्यान खींचने के ऐसे तरीकों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. विरोध के स्थापित तौर-तरीके हैं. संसद की सुरक्षा बेहतर करने के साथ-साथ विधानसभाओं, अदालतों, मुख्यालयों, संस्थानों आदि की सुरक्षा पर भी ठीक से ध्यान देने की आवश्यकता है.
भारत कई आतंकी हमलों और घटनाओं का भुक्तभोगी रहा है. देश को अस्थिर करने और हिंसक घटनाओं को अंजाम देने की ताक में भारत में और विदेशों में कई समूह हैं. उन पर ठीक से निगरानी करने के साथ-साथ सुरक्षा को हमेशा मुस्तैद रखना चाहिए. इसके लिए हमें तकनीक की सहायता भी लेनी चाहिए. सुरक्षाकर्मियों की संख्या समुचित हो और उन्हें ठीक से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. किसी भी व्यवस्था में समय-समय पर समीक्षा का प्रावधान होता है. सुरक्षा के मामले में तो इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए. कोई बड़ी वारदात एक दिन होती है, पर हमलावर उसकी तैयारी पहले से करते हैं. वे सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को गंभीरता से रेखांकित करते हैं और उसके हिसाब से अपनी योजना बनाते हैं. कई बार सुरक्षाकर्मियों को लगता है कि इतनी महत्वपूर्ण जगह पर कोई व्यक्ति हरकत करने का दुस्साहस नहीं करेगा. ऐसी सोच लापरवाही का कारण बनती है. जब आपको इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गयी है, तो आपको पूरी मुस्तैदी से उसे निभाना चाहिए. संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है. वह भारतीय लोकतंत्र का केंद्रीय स्थल है. उसकी सुरक्षा का दायित्व उतनी ही गंभीरता से निभाया जाना चाहिए. आशा है कि इस घटना की जांच से अनेक सबक निकलेंगे, जिन्हें मद्देनजर रखते हुए सुरक्षा को और भी कड़ा किया जायेगा.
(बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)