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पड़ोसियों की शिरकत

बदलती वैश्विक राजनीति तथा भू-राजनीतिक हलचलों में क्षेत्रीय स्तर पर निकटता का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है.

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का लगातार तीसरी बार शपथ लेना देश के लिए महत्वपूर्ण तो है ही, इसकी वैश्विक अहमियत भी है. सरकार की निरंतरता से नीतियों को स्थायित्व मिलता है और उनके दीर्घकालिक क्रियान्वयन में सुविधा होती है. शपथ ग्रहण समारोह में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू, सेशेल्स के उपराष्ट्रपति अहमद अफीफ के साथ-साथ बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ, नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड और भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे की शिरकत बेहद अहम है. 
ये देश हमारे पड़ोसी देश हैं, जिनमें कुछ दक्षिण एशिया में हैं और कुछ हिंद महासागर में. इन देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से महत्व तो है ही, इनके साथ हमारा बड़ा गहरा सांस्कृतिक नाता रहा है. बदलती वैश्विक राजनीति तथा भू-राजनीतिक हलचलों में क्षेत्रीय स्तर पर निकटता का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है. कुछ समय पहले हमने देखा कि किस तरह भारत और मालदीव के रिश्तों में बड़ी खटास आ गयी थी, पर प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता से टकराव टल गया. 
उन्होंने दुबई जलवायु सम्मेलन के दौरान मालदीव के राष्ट्रपति मुइजू से भेंट की और दोनों नेताओं ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. उसके बाद मालदीव के रवैये में भी अंतर आया और भारत ने भी आर्थिक सहयोग मुहैया कराया. हिंद महासागर में स्वतंत्र और सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए भारत अनेक देशों के साथ मिलकर सक्रिय है. इस प्रयास में द्वीपीय देश बड़े मददगार साबित हो सकते हैं. ऐसा ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के द्वीपीय देशों के बारे में कहा जा सकता है. 
दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव बढ़ता गया है, जो निश्चित रूप से भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है. लेकिन, दक्षिण एशियाई देशों की सोच भी बदली है और वे चीन के साथ-साथ भारत से भी अच्छे संबंध रखना चाहते हैं तथा भारत की आर्थिक प्रगति से लाभान्वित होना चाहते हैं. वे इस तथ्य को समझते हैं कि चीन के क्षेत्रीय परिदृश्य में आने से पहले से भारत के साथ उनका नाता रहा है.
 वे चीन पर अत्यधिक निर्भरता के नुकसान को भी समझते हैं. क्षेत्रीय सहयोग की यह भावना भारत के लिए भी सकारात्मक है. हाल में भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह का प्रबंधन अपने हाथ में लिया है. इससे दक्षिण एशिया के देशों को भी फायदा होगा. भूटान भी भारत के लिए अहम है. सीमा निर्धारण के साथ-साथ विकास परियोजनाओं को साकार करने में भारत का योगदान उल्लेखनीय होगा. आशा है कि यह अवसर भारत और पड़ोस के लिए नया मोड़ साबित होगा. 

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