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परवीन शाकिर: शायरी की नजाकत समझने वाली शायरा

Parveen Shakir : परवीन शाकिर की आंखों में जरा गौर से देखिए, उनमें इश्क की नमी भी है, तो वहीं तन्हाई और गहराई भी नजर आती है और वही उनकी शायरी में भी प्रतिबिंबित होती हैं.

Parveen Shakir : सच कहूं, तो मुझे परवीन शाकिर से बेपनाह मोहब्बत है. उनकी शायरी और उनके अंदाज-ए-बयां से मोहब्बत है और हर वो शख्स, जिसे शायरी की लताफत, नजाकत से मोहब्बत है, उसे परवीन शाकिर जैसी शायरा से मोहब्बत होना लाजिमी है. मैं जब भी उनकी शायरी से गुजरता हूं, रूह एक अजीब सी खुशबू से भर उठती है. एक अजीब सी कैफियत से गुजरने का अहसास होता है. लगता है, जैसे पूरी फजा एक खास किस्म की खुशबू से मुअत्तर हो रही है. तो वहीं साथ ही साथ एक मुख्तलिफ अहसास भी होता है कि इन अल्फाज में कहीं गमों के सैलाब भी उमड़ रहे हैं.


परवीन शाकिर की आंखों में जरा गौर से देखिए, उनमें इश्क की नमी भी है, तो वहीं तन्हाई और गहराई भी नजर आती है और वही उनकी शायरी में भी प्रतिबिंबित होती हैं. जी चाहता है, उनके अश‘आर बार-बार पढ़ूं और उन्हें अकीदत से तिलावत करूं. जो कोई भी उनकी गजलों से गुजरेगा, वह उनकी शायरी और उनके अंदाज-ए-बयां से मुतास्सिर होगा ही होगा. ऐसा जादू है उनकी शायरी में. मोहब्ब्त, मिलन, हिज्र व तन्हाई का एक कोलाज है उनकी शायरी. जरा उनके इन अश‘आर पर नजर डालिए और खुद-ब-खुद अंदाजा होगा उनकी शायरी के मिजाज का…


‘कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ तिरा खयाल भी
दिल को खुशी के साथ-साथ होता रहा मलाल भी.’
अब यहां खुशी भी है और तन्हाई भी है. साथ ही खयाल को सर्द हवा के साथ कितनी खूबसूरती से जोड़ा है. शायरा परवीन शाकिर यहीं नहीं ठहरतीं और माजी में भी झांकती हैं और कहती हैं,
‘सबसे नजर बचा के वो मुझको ऐसे देखता
एक दफअ तो रुक गयी गर्दिश-ए-माह-ओ-साल की.’
मोहब्बत होने और उसकी चर्चा होने पर वह यूं कहती हैं-
‘कू-ब-कू फैल गयी बात शनासाई की
उसने खुशबू की तरह मेरी पजीराई की.’
लेकिन जमाने की रुसवाई से बचने के लिए वो कहती हैं-
‘कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उसने
बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की.’
उनके इस गजल को जब मेंहदी हसन ने आवाज दी, तो इसकी खूबसूरती और भी निखर गयी. उनके कुछ शे‘र आप देखें कि वे किस तरह दिल के तहखानों को रफ्ता-रफ्ता खोलती हैं और उन तहखानों से कैसे बाहर निकलती हैं खूबसूरत अलफाज के जीने से…
‘चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया
इश्क के इस सफर ने तो मुझको निढाल कर दिया.’
‘मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाकिफ-ए-हाल कर दिया.’


अब एक बेहद खूबसूरत अंदाज उनके इस नज्म में देखिए, जब बीती रात मौसम की पहली बारिश होती है-
‘मैं क्यूं उसको फोन करूं
उसके भी तो इल्म में होगा
कल शब
मौसम की पहली बारिश थी.’
उनकी इस नज्म को देखिए-
‘जाने कब तक तिरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गयी रात तिरे अक्स को तकते तकते
मैंने फिर तिरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिये आहिस्ता से.’


जमाने के सच-झूठ से भी वह वाकिफ हैं कि कैसे लोग झूठ-फरेब कर आगे बढ़ते हैं. तभी तो वो बेसाख्ता 
कहती हैं-
‘मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी
वे झूठ बोलेगा और ला-जवाब कर देगा.’
चाहे इश्क की बात हो या उसके तासीर की बात हो, या फिर खुशी या रंज-ओ-गम की बात हो, हर जगह वह अपने अंदाज में नजर आती हैं. उनका नजरिया, उनकी सोच और उनके अल्फाज में कुछ ऐसा है कि आप खुद-ब-खुद कहेंगे कि वाह! क्या बात है. परवीन शाकिर को समझने के लिए एक खास नजरिया चाहिए, जैसे हुस्न को समझने के लिए एक उम्र चाहिए.
‘हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानां
दो घड़ी की चाहत में लड़कियां नहीं खुलतीं.’

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