दमन के विरुद्ध लड़ने वाले गुरुओं और योद्धाओं की गाथाओं से सिख इतिहास भरा पड़ा है. गुरु अर्जन देव और गुरु तेग बहादुर, जिनकी हत्या मुगल बादशाहों ने की, शहीद बंदा सिंह बहादुर, जिन्होंने पहले सिख शासन की स्थापना की और महाराजा रणजीत सिंह, जिन्होंने महान सिख साम्राज्य को स्थापित किया- ये सब संत थे, जो मुगलों से लड़े. ये अपने धर्म की पवित्रता तथा विदेशियों से भारत की आजादी के लिए लड़े. इनमें से किसी ने कभी ‘खालिस्तान’ शब्द का उच्चारण नहीं किया था.
सदियों बाद आइएसआइ और पाकिस्तान द्वारा पूरी तरह प्रायोजित भिंडरावाले उनकी राह पर चलने का दावा करता हुआ प्रकट हुआ. लेकिन वह एक आतंकवादी था, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार से मारे जाने तक पंजाब में मौत और बर्बादी की वजह बना रहा. उस ऑपरेशन के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जान गयी और जनसंहार हुआ. वह दर्दनाक याद सिख समुदाय के जेहन में है, पर इससे उनकी देशभक्ति का लोप नहीं हुआ. अब अमृतपाल सिंह नामक बहुरूपिया साक्षात्कारों में कह रहा है कि उसे खालिस्तान के लिए हथियार उठाने से गुरेज नहीं होगा.
इतिहास साक्षी है कि झूठे धार्मिक आख्यान मानवता को तबाह कर सकते हैं. कुछ सप्ताह से गलत वजहों से भारत में बड़ी चर्चा चल रही है. उपदेशक बनने की चाह रखने वाला यह युवा अपने समुदाय और देश को खतरे में डाल रहा है. उसे आइएसआइ नशीले पदार्थों से होने वाली कमाई से मदद दे रही है, जबकि आम पाकिस्तानी भूख से मर रहे हैं. कनाडा और ब्रिटेन में सुरक्षित बैठे कायरों से मिलने वाला अलगाववादी दान अमृतपाल के राष्ट्रविरोधी उत्पात की संजीवनी है.
पाकिस्तान जैसे असफल देश आगे बढ़ते एकजुट भारत से ईर्ष्या करते हैं. आप सरकार की अनुभवहीनता और अक्षमता का लाभ उठाते हुए अमृतपाल और उसके संगी पंजाब में हिंदू-सिख विभाजन के लिए जहरीला अभियान चला रहे हैं. दुर्भाग्य से चक्कर काटते सियासी गिद्ध अमृतपाल को नये भिंडरावाले के रूप में वैधता दे रहे हैं. यह स्पष्ट है कि सिख अतिवादी के छोटे गुटों के बीच की तनातनी को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत और सिख समुदाय के बीच के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है. खालिस्तानियों ने विदेशों में भारतीय दूतावासों में तोड़-फोड़ की है.
चूंकि अकालियों और कांग्रेस ने अपना पारंपरिक सिख जनाधार खो दिया है, वे खालिस्तानियों पर अंगुली न उठाकर राज्य सरकार को निशाना बनाते रहते हैं. उनके लिए अमृतपाल से कहीं अधिक खराब भगवंत मान सरकार है, जिस पर आरोप है कि अलगाववादियों को उसने खुला मंच लेने दिया. ‘अमृतधारी’ सिख के रूप में अमृतपाल के अचानक सामने आने की परिघटना बेहद नाटकीय है. कभी बिना दाढ़ी-मूंछों वाला और बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाला व्यक्ति, जो दुबई में ट्रक चलाता था,
अचानक भिंडरावाले का अवतार कैसे बन गया? उसके पीछे कौन से लोग हैं? निश्चित रूप से यह सब कुछ सुनियोजित मामला है. वह सशस्त्र अंगरक्षकों के साथ खुलेआम राजद्रोह के लिए उकसाता रहा और अभी भी वह फरार है. ‘वारिस पंजाब दे’ के संस्थापक किसान कार्यकर्ता दीप सिद्धू की मौत के तीन सप्ताह के भीतर अमृतपाल का उसका प्रमुख बन जाना रहस्यपूर्ण है. एजेंसियों को संदेह है कि इस समूह के फेसबुक पेज को हैक कर अमृतपाल को लाया गया है ताकि उसे विश्वसनीय बनाया जा सके. सिद्धू के परिवार ने जांच की मांग की थी, पर पंजाब सरकार ने उसे अनदेखा कर दिया था.
चार माह बाद अमृतपाल ने खालिस्तान आंदोलन को पुनर्जीवित करने का अभियान छेड़ दिया. वह राज्य में घूम-घूम कर हथियार और पैसे जुटाता रहा. वह मीडिया में सनसनी बन गया. एक उकसाऊ भाषण में उसने कहा, ‘खालिस्तान के हमारे लक्ष्य को खराब और वर्जित नहीं माना जाना चाहिए. इसे बौद्धिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि इसके क्या भू-राजनीतिक लाभ हो सकते हैं. यह एक विचारधारा है और विचारधारा कभी मरती नहीं.
हम इसे दिल्ली से नहीं मांग रहे हैं.’ उसने गृह मंत्री अमित शाह को भी धमकी दी कि उनकी नियति इंदिरा गांधी जैसी हो सकती है. फिर भी पंजाब की कानूनी एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहीं. लेकिन अजनाला थाने पर हमले के बाद उसने जन-समर्थन खो दिया. भाजपा, अकाली दल और कांग्रेस ने तुरंत कार्रवाई की मांग की, पर आप सरकार ने, केंद्र के संकेत के बावजूद, देर से कार्रवाई की. पंजाब पुलिस ने उसके सैकड़ों करीबियों को पकड़ा है, पर लाखों सीसीटीवी कैमरों के बाद भी यह अलगाववादी पकड़ से बाहर है. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमृतपाल को पकड़ने की योजना में खामियां थीं. उसके घर पर आधी रात को छापा नहीं मारा गया, जिससे उसे भागने का पूरा मौका मिल गया.
अब एजेंसियां उसके बारे में जानकारियां बाहर ला रही हैं. संदेहास्पद स्रोतों से उसके 30 करोड़ रुपये पाने की खबर मीडिया में लीक की गयी है. लेकिन केंद्रीय एजेंसियां इस पैसे का पता क्यों नहीं कर सकीं? निर्दोष युवाओं की गिरफ्तारी के बाद पहले हुई पुलिस ज्यादतियों की यादें ताजा करायी जा रही हैं. राजनीतिक दल मान सरकार के विरुद्ध हो गये हैं.
अकाली दल ने आप को चले गये सिख वोटों को फिर से पाने के लिए हिरासत में लिए गये अमृतपाल के प्रति सहानुभूति रखने वालों को कानूनी सहायता देने की घोषणा की है. कुछ लोगों को भाजपा-शासित असम भेजकर पंजाब सरकार ने ऐसा संकेत दिया है कि उसकी कार्रवाई दिल्ली की सहमति से हो रही है. अमृतपाल भारत के लिए खतरा है और बना रहेगा.
भारतीय दूतावासों पर विरोध से इंगित होता है कि ‘वारिस पंजाब दे’ और बाहर के खालिस्तानी तत्वों के बीच अच्छी सांठ-गांठ है. विभिन्न देशों में एक दर्जन से अधिक सिख सांसद पुलिस कार्रवाई की निंदा कर चुके हैं. पंजाब में इंटरनेट सेवाओं पर बेमतलब पाबंदी से बाहर के सिख परेशान हुए क्योंकि उन्हें घर की सूचनाएं मिलने में मुश्किल आयी. इस पाबंदी से खतरनाक अफवाहों को भी बल मिला. कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के अधिकतर कूटनीतिकों ने अपने कार्यक्रम रद्द किये.
ऐसे समय में जब दुनिया भारत को एशियाई शेर के रूप में देख रही है, विदेशी समर्थन से राष्ट्रविरोधी उभार देश की कहानी को अस्थिर कर सकता है. अमृतपाल जैसे क्षणिक अपवाद को ऐसा नहीं करने दिया जा सकता है. केंद्र और राज्य को राजनीतिक मतभेद परे रखकर एवं सिख समुदाय को साथ लेकर गद्दारों काे दबाना चाहिए. सिखों की गौरवपूर्ण विरासत, उनका परिश्रम और राष्ट्रवाद राजनीति तथा विभाजन से प्रभावित नहीं हो सकता.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)