पिछले कुछ महीनों में अनेक जहाजों में तकनीकी गड़बड़ी और उन्हें आपात स्थिति में उतारने के कारण हवाई उड़ानों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है. स्थिति इस हद तक पहुंच गयी कि हाल ही में देश के उड्डयन नियामक नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने स्पाइस जेट की आधी उड़ानों को रद्द कर दिया. इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. यह नियामक यानी डीजीसीए का भी उत्तरदायित्व है और उड्डयन सेवा दे रहीं कंपनियों का भी. नियामक की ओर से पिछले दिनों में कुछ ठोस कदम उठाये गये हैं.
अब प्रश्न यह है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कंपनियों द्वारा जहाजों के रखरखाव पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है. ऐसा नहीं करने के कुछ कारण हैं. पहला, कोविड महामारी के दौरान उड़ानों पर रोक के चलते कंपनियों के पास कर्मचारियों की कमी हो गयी है. लंबे समय तक जहाज नहीं उड़े, तो कर्मचारियों को हटाना स्वाभाविक था. इन कर्मचारियों में इंजीनियर हैं, टेक्नीशियन हैं, रखरखाव से जुड़े लोग हैं. अब इस इंडस्ट्री में ये सारे स्टाफ वापस तो आ रहे हैं, पर यह प्रक्रिया धीमी गति से चल रही है.
दूसरा अहम कारण है कि उड़ान सेवा देने वाली कंपनियां वित्तीय दबाव के दौर से गुजर रही हैं, जिसके चलते वे समुचित निवेश करने में सक्षम नहीं हैं. कोविड महामारी के दौर में पहले उड़ानें बंद रहीं, फिर धीरे-धीरे शुरू हुईं, पर आमदनी अभी भी महामारी से पहले के स्तर तक नहीं पहुंची है. तीसरी वजह है कि एविएशन टर्बाइन फ्यूल की कीमतें बहुत अधिक हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भिन्न कारणों से तेल के दाम बढ़े हैं. ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हो पा रहा है. लेकिन इन कंपनियों को इन समस्याओं से निकलने का रास्ता निकालना होगा और इसका खामियाजा किसी भी तरह सुरक्षा के मामले में चूक के रूप में सामने नहीं आना चाहिए.
एयरलाइंस इंडस्ट्री में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है और मार्जिन भी कम रहता है. हालांकि टिकटों के दाम बढ़े हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा के चलते वे यात्रियों पर बहुत अधिक भार डालने की स्थिति में नहीं हैं. कोराना से पहले जैसी स्थिति आने में अभी समय लगेगा. जहां तक उड़ानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात है, तो कुछ ठोस उपायों की दरकार है, जिन्हें तुरंत लागू करने की दिशा में पहल की जानी चाहिए.
सबसे पहला उपाय यह है कि नागरिक उड्डयन के नियामक को उड़ान सेवा दे रही कंपनियों पर निगरानी रखनी चाहिए. इसमें सबसे अहम यह होना चाहिए कि सुरक्षा को लेकर किसी तरह की कोताही न बरती जाए और न ही कोई चूक हो. नियामक को कंपनियों की वित्तीय सेहत पर भी नजर रखनी चाहिए. अगर किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है और उसकी उड़ान सेवाएं पहले जैसी चलती रहती हैं, तो इसका नतीजा घाटा बढ़ने के रूप में सामने आता है.
एयर इंडिया और जेट एयरलाइंस के साथ ऐसा होते हुए हम देख चुके हैं. जब घाटा बढ़ता जाता है, तो कंपनियां कर्मचारियों की संख्या घटाने लगती हैं, जिसका सीधा असर रखरखाव पर होता है. इस बात की आवश्यकता है कि नियामक कुछ वित्तीय मानक निर्धारित करे और यह सुनिश्चित करे कि कंपनियां उनका पालन करें. नियामक और इंडस्ट्री के बीच निरंतर संवाद भी चलते रहना चाहिए ताकि एयरलाइंस भी अपनी समस्याओं व सुझावों को सामने रख सकें तथा नियामक को भी वास्तविकताओं की जानकारी रहे.
ऐसे संवाद से विभिन्न समस्याओं के समाधान निकालने में भी मदद मिलेगी. इससे यह भी संभावना बन सकती है कि वित्तीय कठिनाई की स्थिति में सरकार भी उनकी मदद करे. कंपनियों के वित्तीय स्वास्थ्य के बारे में पारदर्शिता यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज्यादा जरूरी है. जो कंपनियां अच्छी स्थिति में हैं, उन्हें ही इस क्षेत्र में रहने की अनुमति होनी चाहिए.
उड़ानों को आपात स्थिति में उतारने या उड़ान से ठीक पहले उन्हें रद्द करने की घटनाओं के साथ-साथ ऐसी भी घटनाएं हो रही हैं, जिनके होने का कोई तुक नहीं है. अनेक हवाई अड्डों पर जहाज से उतरे यात्रियों को हवाई अड्डे के यात्री क्षेत्र में ले जाने के लिए बसें मुहैया नहीं करायी गयीं. ऐसी भी शिकायतें आयी हैं कि संबंधित एयरलाइन ने इस बारे में यात्रियों को कोई जानकारी भी नहीं दी. ऐसे में यात्रियों को बहुत देर तक हवाई पट्टी पर ही इंतजार करना पड़ा. मामला केवल यात्रियों की सुविधा का ही नहीं है, बल्कि हवाई पट्टी एवं जहाजों की सुरक्षा से भी जुड़ा है. इन बुनियादी सुविधाओं में भी एयरलाइंस इसीलिए कटौती कर रहे हैं ताकि वे कुछ पैसे बचा सकें.
ये बसें वे भाड़े पर लेते हैं. संभव है कि उनका किराया समय से नहीं दिया गया हो. इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कंपनियां आर्थिक रूप से बेहाल हैं. यह जिम्मेदारी उनकी तो है ही कि इस स्थिति में यात्रियों की जान जोखिम में न डालें, पर नियामक संस्था को भी सक्रियता से वस्तुस्थिति का आकलन करना चाहिए. जिस तरह बीते दिनों एक एयरलाइंस की आधी सेवाओं को रोक दिया गया, उसी प्रकार आगे भी कड़े फैसले करने चाहिए. मेरा आकलन है कि हालात सुधरने में अभी कम से कम छह माह लगेंगे.
यात्रियों में एयरलाइंस सेवाओं को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है. उन्हें भरोसा में लेना होगा और यह जिम्मेदारी मुख्य रूप से उड़ान कंपनियों की है, लेकिन नियामक को भी ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे लोग निश्चिंत हो सकें. उड़ानों की सुरक्षा की अहमियत को लेकर एयरलाइंस कर्मचारियों को भी जागरुक करने की जरूरत है. जहां आवश्यक हो, उन्हें समुचित प्रशिक्षण भी देना चाहिए. हर उड़ान से पहले जिस तरह से यात्रियों को सुरक्षा संबंधी निर्देश दिये जाते हैं, उसी तरह उन्हें यह भी बताना चाहिए कि सुरक्षित उड़ान के लिए इंजीनियरों ने किन प्रक्रियाओं का पालन किया है.
ऐसा करने से लोगों को आश्वस्त किया जा सकेगा. किसी तरह की तकनीकी गड़बड़ी के बाद होने वाली जांच को लेकर भी पारदर्शिता होनी चाहिए तथा जांच के नतीजों को समूची इंडस्ट्री के साथ साझा किया जाना चाहिए ताकि सभी सचेत हो सकें. यदि लापरवाही साबित होती है, दोषी व्यक्तियों को दंडित करना भी जरूरी है. उड्डयन उद्योग अच्छी सेवा दे और अर्थव्यवस्था में समुचित योगदान दे, इसके लिए सुरक्षा को अहमियत देनी होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(बातचीत पर आधारित)