भारतीय बजट से लोगों की उम्मीद

अगर प्रस्तावित वित्तीय घाटे की सीमा से अर्थव्यवस्था ऊपर निकल जाती है, तो भी इससे आर्थिक विकास के स्तर में कोई घबराहट नहीं होगी. क्योंकि पिछले काफी वर्षों से भारत एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो चुका है

By डॉ पीएस | December 27, 2022 8:04 AM

फरवरी में आने वाले आगामी वित्त वर्ष 2023-24 के बजट का इंतजार शुरू हो गया है. उत्सुकता का माहौल है, क्योंकि कोरोना के वित्तीय दुष्परिणामों के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हुआ है तथा चालू वित्त वर्ष में सफलता के कुछ बड़े पैमाने भी हमने हासिल किये हैं, जिनमें विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार होना सबसे अहम है. अभी भारतीय अर्थव्यवस्था का आर्थिक स्तर चार ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा कम है, लेकिन सकारात्मक बात यह भी है कि जर्मनी व जापान इससे थोड़ा ही ऊपर हैं.

लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक नीतियों में दूरगामी सोच आवश्यक है. वित्तीय बजट आर्थिक नीतियों का ऐसा सम्मिश्रण होता है, जो वर्तमान के साथ आने वाली पीढ़ियों के आर्थिक विकास की आधारशिला रखता है. चिंता का एक सबब यह है कि चालू वित्त वर्ष के अंतर्गत तय हुए वित्तीय घाटे का स्तर शायद ऊपर निकल जाए. वर्ष 2022-23 के बजट में 6.4 प्रतिशत का वित्तीय घाटा प्रस्तावित था, पर शीतकालीन सत्र में सरकार ने तीन लाख करोड़ से अधिक के वित्तीय अनुदान की पूरक मांगों को पारित कराया है. इसके पीछे कच्चा तेल, उर्वरक तथा ग्रामीण विकास की योजनाओं पर सब्सिडी का बढ़ जाना है.

अगर प्रस्तावित वित्तीय घाटे की सीमा से अर्थव्यवस्था ऊपर निकल जाती है, तो भी इससे आर्थिक विकास के स्तर में कोई घबराहट नहीं होगी क्योंकि पिछले काफी वर्षों से भारत एक ऐसी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो चुका है, जिस पर वैश्विक संकट का तुरंत दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है. भारत के मध्यमवर्गीय समाज की क्रय शक्ति तथा बैंकिंग नीतियों का लगातार पर्यवेक्षण बहुत मजबूत है.

भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के आंकड़े ये बताते हैं कि प्रत्यक्ष कर संग्रह का आंकड़ा बहुत सकारात्मक है तथा पिछले वित्त वर्ष की तुलना में यह लगभग 25 प्रतिशत अधिक है. सरकार द्वारा पूंजीगत खर्चों के लिए प्रस्तावित रकम का करीब 55 प्रतिशत हिस्सा अक्तूबर तक विभिन्न योजनाओं पर पहले से लग चुका है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है. यह आंकड़ा थोड़ा अचंभित करता है क्योंकि चालू वर्ष में कोरोना का संकट वैक्सीनेशन के कारण लगभग नहीं था, तो पूंजीगत खर्चों का प्रतिशत अब तक तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक होना चाहिए था. इससे रोजगार के अवसर बढ़ सकते थे.

अगर प्रस्तावित वित्तीय घाटे से अर्थव्यवस्था ऊपर निकल जाती है, तो नतीजतन वित्तीय ऋण व वित्तीय उधारियों की तरफ की तरफ जाना पड़ेगा. इसका प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव पूंजीगत खर्चों में कमी के तौर पर होगा. वित्तीय कर्ज के कारण ब्याज का खर्चा बढ़ जाता है जो निश्चित रूप से बजट में प्रस्तावित नहीं होता है तथा उसकी मार पूंजीगत खर्चों पर पड़ती है.

इसके अलावा सरकारों को जनता के माध्यम से विभिन्न प्रकार के बॉन्ड से मिलने वाली रकम के लिए ब्याज दरों को तुलनात्मक रूप से अधिक रखना पड़ता है ताकि जनता अधिक से अधिक आकर्षित हो. ऐसी परिस्थिति में निजी वित्तीय निवेश भी संकुचित होने लगता है. इसके परिणामस्वरूप आर्थिक नीतियों पर दोहरी मार पड़ती है तथा जिसका सीधा दुष्प्रभाव महंगाई तथा बेरोजगारी बढ़ने के रूप में देखा जाता है. इसलिए आवश्यक है कि वित्तीय घाटे को दूरदर्शिता के साथ प्रस्तावित किया जाए.

हर बजट के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति की कुछ आशाएं सरकार से रहती हैं. पर यह भी हकीकत है कि सरकार दूरगामी आर्थिक सोच के साथ बजट को प्रस्तावित करती है, पर लोकलुभावन राजनीति का भी असर होता है. आर्थिक विश्लेषण के आधार पर अगर आगामी बजट के संदर्भ में कुछ प्राथमिकताओं को निश्चित किया जाए, तो पहली प्राथमिकता में आयकर की न्यूनतम सीमा बढ़े, ताकि छोटे आयकरदाता कुछ बचत कर सकें.

यह इसलिए भी सापेक्षिक है क्योंकि जीएसटी ने जहां कर संग्रहण बढ़ाया है, वहीं इसका प्रत्यक्ष बोझ आम उपभोक्ता पर पड़ रहा है. दूसरी प्राथमिकता में ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी लाना अत्यंत आवश्यक है तथा इस हेतु निर्माण क्षेत्र में पूंजीगत खर्चों का प्रतिशत अधिक रखना होगा. तीसरी प्राथमिकता मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को गुणवत्ता तथा लागत में अधिक से अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना हो, ताकि वैश्विक स्तर पर नयी साख बन सके. इस संदर्भ में बैंकिंग नीतियों में परिवर्तन भी आवश्यक है तथा पीएलआई स्कीम के अंतर्गत ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता देना होगा, जहां पूंजीगत आवश्यकताएं तुलनात्मक रूप से अधिक रहती हैं.

इसके अलावा मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को अधिक रोजगार सृजन के लिए भी वित्तीय लाभों के माध्यम से प्रोत्साहित करना भी आर्थिक नीतियों में सम्मिलित रहना चाहिए. एक अन्य प्राथमिकता में वित्तीय निवेश की विभिन्न योजनाओं में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नये प्रकार के बॉन्ड सम्मिलित किये जाने चाहिए ताकि करदाता अपने कर की रकम को बचाने के लिए उनमें निवेश कर सके.

इसका प्रत्यक्ष फायदा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट हेतु जरूरी वित्तीय निवेश के रूप में घरेलू जमाओं के रूप में मिलेगा. इससे सरकार का आर्थिक बोझ कम होगा, क्योंकि वित्तीय निवेश के लिए सरकार एकमात्र इंजन नहीं है, निजी क्षेत्र की भागीदारी भी अधिक से अधिक होनी जरूरी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version