अपने मूल स्वरूप में लागू हो पेसा कानून
Pesa Act : यहां प्रश्न उठता है कि क्या पांचवीं सूची के अन्य राज्यों की तरह झारखंड का पेसा कानून भी नख-दंत विहीन होगा, या फिर भारतीय संसद में पारित अधिनियम के अनुरूप और आदिवासी संस्कृति के संरक्षक के रूप में इसे लागू किया जायेगा?
Pesa Act : झारखंड में ही नहीं, पूरे देश में आदिवासियों की संख्या कम हो रही है. इस घटती हुई जनसंख्या को देख कर ही भूरिया समिति की सिफारिश पर वर्ष 1996 में भारतीय संसद ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा) पारित किया था. भारतीय संसद द्वारा पारित इस अधिनियम में साफ तौर पर कहा गया है कि आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार स्थानीय शासन का प्रबंधन करेंगे. बावजूद इसके, झारखंड में आज तक पेसा अधिनियम लागू नहीं किया गया है. इस बात को लेकर गत दिनों माननीय झारखंड उच्च न्यायालय ने भी सरकार को हिदायत दी है और कहा है कि दो महीने के अंदर इस कानून को लागू किया जाए. अब राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह पेसा कानून को लागू करे.
यहां प्रश्न उठता है कि क्या पांचवीं सूची के अन्य राज्यों की तरह झारखंड का पेसा कानून भी नख-दंत विहीन होगा, या फिर भारतीय संसद में पारित अधिनियम के अनुरूप और आदिवासी संस्कृति के संरक्षक के रूप में इसे लागू किया जायेगा? यदि कुछ विसंगतियों को छोड़ दें, तो पंचायती राज प्रणाली भारत में लोकतांत्रिक सत्ता को मजबूत करने और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस प्रयास को और अधिक प्रभावशाली बनाने एवं आदिवासी समुदायों को संरक्षित करने के लिए पेसा कानून को पारित किया गया था.
पेसा कानून में जमीनी स्तर पर नैतिक सशक्तिकरण एवं ग्राम सभाओं को अधिक से अधिक मजबूत करने की बात कही गयी है. पेसा ग्राम सभाओं को अपने पारंपरिक पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से स्वायत्तता का अधिकार देता है. यह उन्हें जमीन, संसाधन और स्थानीय विकास पर निर्णय लेने की शक्ति देता है. इसका अर्थ है कि आदिवासी ग्राम सभा को अपने प्राकृतिक संसाधनों को प्रबंधित करने और भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास से संबंधित योजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार है. इस कानून ने आदिवासी समुदायों के उप-वन उत्पाद जैसे बांस, तेंदू पत्ते, और अन्य गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर उनके हक को मान्यता दिलायी है. विकास परियोजनाओं के लिए आदिवासी समुदायों के विस्थापन व पुनर्वास को लेकर कानून में मुआवजे का प्रावधान भी है. इस कानून के तहत, पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्र में लोकसभा और विधानसभा की शक्ति कम हो जाती है, जबकि ग्राम सभा की शक्ति को यह कानून विस्तार देता है.
पेसा पारंपरिक कानूनों और सामाजिक प्रथाओं को मान्यता देता है और संरक्षित करता है. इसके तहत आदिवासियों की पारंपरिक न्याय प्रणालियों और विवाद सुलझाने की विधियों का सम्मान और संरक्षण किया जाता है. कानून ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासी व्यक्तियों या संगठनों को बेचने से प्रतिबंधित किया है. यही नहीं, कानून में ऋण से संबंधित प्रावधानों को भी समाहित किया गया है. यदि कोई आदिवासी सरकारी या गैर सरकारी ऋण लेता है, तो उसके लिए ग्राम सभा जिम्मेदार हो जाती है. उस आदिवासी को ऋण के लिए ऋण प्रदाता वित्तीय संस्था या व्यक्ति, जमीन नीलाम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. ऐसी स्थिति में ग्राम सभा उस ऋण की जिम्मेदारी लेगी.
संसद में पारित होने के बाद धीरे-धीरे देश के नौ राज्यों ने इसे अपने-अपने तरीके से लागू किया है. पर झारखंड में आज भी यह लागू नहीं हो पाया है. राज्य के 24 में से 13 जिले पूर्ण रूप से और तीन जिलों के कुछ भाग अनुसूचित क्षेत्र हैं. कुल 112 प्रखंड आदिवासी अधिकार क्षेत्र, यानी पांचवीं अनुसूची में शामिल हैं. बावजूद इसके राज्य में पेसा की नियमावली तक नहीं बनायी गयी है. हालांकि गत दिनों झारखंड सरकार ने पेसा पर एक मसौदा प्रस्तुत किया. इस पर लोगों से विचार आमंत्रित किये गये, परंतु सरकार ने फिर से अपने पैर पीछे खींच लिये.
पेसा के प्रभावी प्रावधानों का भी देश के विभिन्न राज्यों में क्रियान्वयन में अंतर देखने को मिल रहा है. कुछ राज्य ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने में पीछे हैं. छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों ने तो पेसा के तहत ग्राम सभाओं को महज एक समान्य परामर्शदात्री समिति बना दिया है. वहां आदिवासियों की ग्राम सभा केवल सुझाव दे सकती है, जबकि मूल पेसा कानून में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं है. पांचवीं अनुसूची आदिवासियों की स्वशासन प्रणाली के संरक्षण और उनके सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विकास के लिए संवैधानिक ढांचा देती है.
कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि आदिवासी समुदाय की समझ एवं परंपरा के अनुसार ‘गांव’ को परिभाषित किया जाना है. ग्राम सभा, जिसमें गांव के सभी मतदाता सदस्य होंगे, ही सामुदायिक संपत्तियों जैसे जल, जंगल, जमीन आदि की मालिक होगी. गांव में किसी प्रकार का भी विकास कार्य ग्राम सभा की अनुमति से ही किया जायेगा. आदिवासियों को यदि संरक्षित करना है, तो पेसा से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं है, शर्त केवल यह है कि पेसा जिस रूप में पारित हुआ है उसी रूप में राज्य सरकार इसे लागू करे. कुल मिलाकर, पेसा आदिवासियों के संपूर्ण स्वायत्त स्थानीय शासन प्रणाली को प्रोत्साहित करने का एक कानूनी अधिकार है. इस अधिकार से आदिवासी वंचित न हो, इसके लिए सरकार प्रयास करे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)