आदिवासियों के संरक्षण के लिए जरूरी है पेसा
पेसा कानून में आदिवासी समुदायों के लिए विकास परियोजनाओं के कारण किसी भी विस्थापन में सख्त पुनर्वास और मुआवजे का प्रावधान है.
पेसा के प्रभावी प्रावधानों के विभिन्न राज्यों में क्रियान्वयन में अंतर देखने को मिल रहा है. कुछ राज्य ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने में पीछे हैं. छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों ने तो ग्राम सभाओं को महज एक समान समिति बना दिया है, जो केवल सुझाव दे सकती हैं. इनके पास कोई विधायी शक्ति नहीं है, जबकि पेसा कानून में ग्राम सभा को अगाध शक्ति दी गयी है.
पंचायती राज प्रणाली लोकतांत्रिक सत्ता को मजबूत करने और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस प्रयास को अधिक प्रभावशाली बनाने एवं कठिन स्थानों पर निवास कर अपनी जीविका एवं संस्कृति की रक्षा करने वाले आदिवासी समुदायों को संरक्षित करने के लिए सांसद दिलीप सिंह भूरिया समिति की सिफारिश पर 1996 में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) कानून पेसा पारित किया गया था. पेसा ग्राम सभाओं को अपने पारंपरिक पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से स्वायत्तता का अधिकार प्रदान करता है. यह उन्हें जमीन, संसाधन और स्थानीय विकास पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है. आदिवासी ग्राम सभा को भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास से संबंधित योजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार है. इस कानून ने आदिवासी समुदायों के उप-वन उत्पाद, जैसे बांस, तेंदू पत्तियां और अन्य गैर-लकड़ी उत्पादों पर उनके हक को मान्यता दिलायी है. उन्हें इन संसाधनों का प्रबंधन और विपणन करने का अधिकार होता है, जिससे उनके आर्थिक सशक्तीकरण को प्रोत्साहित किया जाता है.
पेसा कानून में आदिवासी समुदायों के लिए विकास परियोजनाओं के कारण किसी भी विस्थापन में सख्त पुनर्वास और मुआवजे का प्रावधान है. पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में लोकसभा और विधानसभा की शक्ति कम हो जाती है, जबकि ग्राम सभा की शक्ति को यह कानून विस्तार देता है. पेसा पारंपरिक कानूनों और सामाजिक प्रथाओं को मान्यता देता है तथा संरक्षित करता है. यह कानून आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को बेचने से प्रतिबंधित करता है. पेसा कानून में ऋण से संबंधित प्रावधानों को भी समाहित किया गया है. यदि कोई आदिवासी सरकारी या गैर-सरकारी ऋण लेता है, तो उसके लिए ग्राम सभा जिम्मेदार हो जाती है. उस आदिवासी को ऋण के लिए ऋण प्रदाता वित्तीय संस्था या व्यक्ति जमीन नीलाम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. पेसा को धीरे-धीरे देश के नौ राज्यों ने अपने-अपने तरीके से लागू कर लिया है. विगत दिनों झारखंड सरकार ने भी पेसा पर एक मसौदा प्रस्तुत किया है तथा इस पर लोगों से विचार आमंत्रित किये गये हैं.
पेसा को राज्यों ने अपने-अपने तरीके से लागू किया है, जबकि इसका केंद्रीय प्रावधान एक जैसा है. पेसा के प्रभावी प्रावधानों के विभिन्न राज्यों में क्रियान्वयन में अंतर देखने को मिल रहा है. कुछ राज्य ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने में पीछे हैं. छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों ने तो ग्राम सभाओं को महज एक समान समिति बना दिया है, जो केवल सुझाव दे सकती हैं. इनके पास कोई विधायी शक्ति नहीं है, जबकि पेसा कानून में ग्राम सभा को अगाध शक्ति दी गयी है. झारखंड के मसौदे में ग्राम सभा को पंचायत के अंदर की इकाई बनाया गया है तथा ग्राम सभा को आदिवासी पारंपरिक ग्राम सभा के रूप में मान्यता नहीं दी गयी है. यह आदिवासी समुदाय के लिए सही नहीं है. पेसा कानून पारित होने के लगभग 27 वर्ष बाद भी झारखंड में यह लागू नहीं हो पाया है.
राज्य के 24 में से 13 जिले पूर्ण रूप से और तीन जिलों का कुछ भाग अनुसूचित क्षेत्र हैं. कुल 112 प्रखंड आदिवासी अधिकार क्षेत्र यानी पांचवीं अनुसूची में आते हैं. फिर भी राज्य में पेसा की नियमावली तक नहीं बनायी गयी है. पेसा कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि आदिवासी समुदाय की समझ एवं परंपरा के अनुसार ‘गांव’ को परिभाषित किया जाना है. ग्राम सभा, जिसमें गांव के सभी मतदाता सदस्य होंगे, ही सामुदायिक संपत्तियों, जैसे जल, जंगल, जमीन आदि के मालिक होगी. कोई भी विकास कार्य ग्राम सभा की अनुमति से ही किया जायेगा.
यदि आदिवासियों को संरक्षित करना है, तो पेसा से बेहतर कोई उपाय नहीं, शर्त केवल यह है कि पेसा जिस रूप में पारित हुआ है, उसी रूप में राज्य सरकार इसे लागू करे. झारखंड में ग्रामीण स्थानीय प्रशासनिक निकाय यानी पंचायती राज की स्थिति भी अच्छी नहीं है. साल 2010 में 32 साल बाद पंचायती राज का निर्वाचन हुआ, पर आज भी वे सत्ता के विकेंद्रीकरण के इंतजार में हैं. साल 2014 में विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया था कि उसकी सरकार परंपरागत स्वशासन व्यवस्था को सशक्त करेगी, लेकिन ऐसा नहीं पाया. इसके बाद जो सरकार आयी, उसने भी मूल रूप में पेसा कानून लागू करने का वादा किया था, पर यह भी पूरा नहीं हुआ. गौर करने की बात है कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम में ग्राम सभा, न कि ‘आम सभा’, का प्रावधान है. गैर-अनुसूचित गांवों में भी योजनाओं का चयन ग्राम सभा को करना है तथा ग्रामीण विकास की योजनाओं का कार्यान्वयन ग्राम पंचायतों के हवाले है, पर वास्तव में ऐसा नहीं होता है. अधिकारों का उपयोग राज्य सरकार के अधिकारी और कर्मचारी करते हैं. पंचायती राज विस्तारित अधिनियम यानी पेसा आदिवासियों के संपूर्ण स्वायत्त स्थानीय शासन प्रणाली को प्रोत्साहित करने का एक कानूनी अधिकार है. इस अधिकार से वंचित आदिवासी जनता पेसा कानून लागू होने का इंतजार बेसब्री से कर रही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)