बदल रही है राष्ट्रीय फिल्म समारोह की तस्वीर
फाल्के सम्मान में महिलाओं की स्थिति देखें तो 1969 से 2019 तक के 50 बरसों में सिर्फ छह महिलाओं को ही फाल्के सम्मान से नवाजा गया. लेकिन अब पिछले दो बरसों में लगातार दो महिलाओं को फाल्के सम्मान मिलने से एक नया इतिहास बन गया है.
आज दिल्ली में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह का आयोजन होने जा रहा है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भारतीय सिनेमा के उन व्यक्तियों को सम्मानित करेंगी, जिन्होंने 2021 में फिल्मों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. देश में यूं तो साल भर कितने ही फिल्म पुरस्कार समारोह होते रहते हैं. लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार देश का सबसे प्रतिष्ठित फिल्म सम्मान है, जिसे पाने की तमन्ना सिनेमा के सभी व्यक्तियों को होती है. भारत में पहला राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह 10 और 11 अक्तूबर 1954 को दिल्ली में हुआ था. आरंभ में इन पुरस्कारों को राजकीय फिल्म पुरस्कार का नाम दिया गया था. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ योगदान करने वाले सात व्यक्तियों को सम्मानित किया था. बाद में इन पुरस्कारों को जहां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का नाम दिया, वहां इसका दायरा भी बढ़ता गया. प्रथम पुरस्कार के समय मात्र तीन श्रेणियों में पुरस्कार दिये गए थे. लेकिन अब फीचर और गैर-फीचर सिनेमा की लगभग 50 श्रेणियों में पुरस्कार दिये जाते हैं. इसके चलते अब हर बरस करीब 90 से 100 व्यक्तियों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने का गौरव मिल जाता है.
दिलचस्प यह है कि 1954 में ही फिल्मफेयर पुरस्कारों की भी शुरुआत हो गयी थी. लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का कोई सानी नहीं है. एक तो यह सम्मान भारत सरकार के द्वारा और अक्सर राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता है. दूसरा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सम्मान के साथ नगद राशि भी दी जाती है, लेकिन फिल्मफेयर सिर्फ ट्रॉफी देता है. तीसरा फिल्मफेयर मुंबई में सिर्फ हिंदी फिल्मों के लिए यह पुरस्कार देता है. जबकि दक्षिण सिनेमा के लिए अलग पुरस्कार समारोह होता है. लेकिन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में संपूर्ण भारतीय सिनेमा की फिल्मों को पुरस्कृत किया जाता है. बड़ी बात यह भी है कि इन पुरस्कारों में जहां हिंदी, बंगाली, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, असमिया और ओड़िया को ही नहीं छोटे फिल्म क्षेत्रों को भी शामिल किया जाता है. चाहे वह हरियाणवी और राजस्थानी सिनेमा हो या फिर संस्कृत और मैथिली, भोजपुरी सिनेमा. समारोह में कम प्रचलित बोली, भाषाओं की फिल्में भी पुरस्कृत होती रही हैं. जैसे इस बार भी समारोह में मिशिंग फिल्म ‘बूंबा राइड’ के साथ मेइतेलोन फिल्म ‘एखोएगी यम’ और ‘बियोंड ब्लास्ट’ भी पुरस्कृत फिल्मों की सूची में हैं.
आज आयोजित हो रहे 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों पर नजर डालें तो एक बदलती तस्वीर भी दिखाई देती है. सबसे बड़ा बदलाव तो दादा साहब फाल्के सम्मान में ही देखा जा सकता है. सन 1969 में शुरू हुआ फिल्म जगत का सर्वोच्च फाल्के सम्मान इस बार दिग्गज फिल्म अभिनेत्री वहीदा रहमान को दिया जा रहा है. वहीदा फाल्के सम्मान पाने वाली 53वीं हस्ती हैं. वर्ष 1969 से 2019 तक के 50 बरसों में सिर्फ छह महिलाओं को ही फाल्के सम्मान से नवाजा गया. लेकिन पिछले दो बरसों में लगातार दो महिलाओं को फाल्के सम्मान मिलने से एक नया इतिहास बन गया है. गत वर्ष 2020 के लिए आशा पारेख को फाल्के मिला. दूसरा बड़ा बदलाव यह है कि गत वर्ष के पुरस्कारों में हिंदी सिनेमा हाशिये पर चला गया था. 68वें समारोह में हिंदी सिनेमा को चार पुरस्कार मिले थे. लेकिन इस बार हिंदी सिनेमा ने फिर से दिखा दिया कि चुनौतियों से निबटना उसे बखूबी आता है.
इस बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए संयुक्त पुरस्कार हिंदी सिनेमा को ही मिला है. आलिया भट्ट को फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लिए तो कृति सेनन को फिल्म ‘मिमी’ के लिए. उधर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता और अभिनेत्री के दोनों सम्मान हिंदी सिनेमा को मिले हैं. पंकज त्रिपाठी को ‘मिमी’ के लिए और पल्लवी जोशी को ‘द कश्मीर फाइल्स’ के लिए. सहायक अभिनेता का पुरस्कार तो हिंदी सिनेमा को सात साल बाद मिला है. उधर वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का स्वर्ण कमल भी हिंदी फिल्म ‘रॉकेट्री’ की झोली में आया है. साथ ही राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म का नर्गिस दत्त पुरस्कार तो 11 साल बाद ‘द कश्मीर फाइल्स’ से, हिंदी सिनेमा को मिला है.
इन सबके साथ एक बड़ी बात यह है कि इस बार हिंदी की दो फिल्में ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ और ‘सरदार उधम ने पांच-पांच पुरस्कार जीतकर अपनी धूम मचा दी है. अच्छी बात यह भी है कि हिंदी के साथ क्षेत्रीय सिनेमा भी अपनी पताका फहराने में सफल रहा है. सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार तो तेलुगू फिल्म ‘पुष्पा’ के लिए अल्लु अर्जुन को मिला ही है. साथ ही ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाली फिल्म ‘आरआरआर’ इन राष्ट्रीय पुरस्कारों में कुल छह पुरस्कार जीतकर शिखर पर है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)