पाठक शायद समझ रहे होंगे कि यह लेख रूस के सहयोग से लड़ाकू विमान विकसित करने की एक नयी परियोजना के संबंध में कोई प्रस्ताव है, विशेष रूप से तब, जब हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस की यात्रा की है. मिग युद्धकों को हासिल करना भारत-रूस रक्षा संबंध का एक मुख्य आयाम है. साठ के दशक में ही मिग-21 लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना की शक्ति बन गये थे और ये सोवियत संघ द्वारा भेजे गये सबसे विकसित युद्धक थे.
मिग-21 ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उल्लेखनीय भूमिका निभायी थी और 1999 में करगिल में मिग-21 और मिग-27 जहाज बहुत प्रभावी सिद्ध हुए थे. इन जहाजों के संचालन एवं देखरेख के अनुभव ने भारत के स्वदेशी जहाज कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. तेजस इस विकास का एक उल्लेखनीय उदाहरण है. अब मिग-29 का विकास किया जा रहा है. अभी किसी मिग-47 की कोई योजना नहीं है. कुछ लोग सुखोई-47 को मिग-47 समझ बैठते हैं. वैसे भी भारत का झुकाव अब मिग सीरीज से तेजस और रफाल की ओर जाता दिख रहा है. यह लेख एक नये और अधिक महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मिग-47’ (मेक इंडिया ग्रेट-47) के बारे में है, जिसके तहत भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की है.
‘मिग-47’ राष्ट्र के गौरव के लिए कार्य करने से संबंधित है. आगे बढ़ने से पहले हमें एक बुनियादी सवाल पूछना है- क्या राष्ट्रवाद प्रचलन से बाहर हो रहा है, या इसका पुनरुभार हो रहा है? भौगोलिक आधार पर राष्ट्र की अवधारणा केवल तीन सदी पुरानी है, इसलिए राष्ट्र-राज्य एक नयी अवधारणा है. राष्ट्रवाद का प्रभाव कम होने के कारक वैश्वीकरण, तकनीक और यूरोपीय संघ, शुल्क संघ, सैन्य गठबंधन, व्यापार समूह आदि जैसे राष्ट्रोत्तर व्यवस्थाएं हैं.
राष्ट्रवादी भावनाएं अंतरराष्ट्रीय एवं बहु-सांस्कृतिक प्रभावों से प्रभावित हो सकती हैं. यूरोपीय संघ जैसी व्यवस्थाओं में सदस्य देश कुछ हद तक अपनी संप्रभुता का समर्पण कर देते हैं. उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति पर सदस्य देशों का नियंत्रण नहीं होता है तथा उन्हें ऐसे कारोबारी कानूनों का पालन करना पड़ता है, जो दो दर्जन देशों में लागू होते हैं. ब्रिटेन का हालिया चुनावी नतीजा ब्रेक्जिट को खारिज करने का एक जनादेश हो सकता है.
शरणार्थियों की आवाजाही तथा बड़ी तादाद में अप्रवासियों की मौजूदगी भी राष्ट्रवादी भावनाओं को कमजोर करती हैं. इसके साथ ही, आक्रामक राष्ट्रवाद के उभार के भी सबूत हैं, खासकर शरणार्थी एवं अप्रवासी विरोधी मुहिमों में यह साफ दिखता है. बेरोजगारी को लेकर भी चिंताएं हैं, जिसका दोष बाहर के लोगों पर मढ़ा जाता है.
बराक ओबामा के प्रचार को याद करें, जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी रोजगार भारत, चीन जैसे देश छीन रहे हैं. राष्ट्रवादी भावनाएं भू-राजनीति, सीमा विवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा और उन्मादी बयानों से भी बढ़ती हैं. इसमें सोशल मीडिया की भी भूमिका होती है. निर्णायक तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद चलन से बाहर हो गया है या इसकी जड़ें अभी और गहरी होंगी.
‘मिग-47’ के आर्थिक आयाम हैं. इसके तहत भारत की प्रतिव्यक्ति आय को उच्च मध्य आय श्रेणी (आज के हिसाब से 20 हजार डॉलर प्रति व्यक्ति) में लाना है. इसके लिए अगले 25 वर्षों में राष्ट्रीय आय को दस गुना बढ़ाना होगा. इसका अर्थ है कि डॉलर के हिसाब से हर साल 9.6 प्रतिशत वृद्धि दर होनी चाहिए. यह दर असंभव नहीं है, इसे हासिल किया जा सकता है और दो दशकों तक जारी रखने की जरूरत होगी. ‘मिग-47’ में जीवन स्तर में बेहतरी का आयाम भी शामिल है.
इसका अर्थ है कि स्वच्छ एवं पर्याप्त पेयजल उपलब्ध हो, घर पर्यावरण के अनुकूल संसाधनों से निर्मित हों, शहरों में व्यापक स्तर पर यातायात के सार्वजनिक साधन हों तथा हवा में जहरीले तत्व कम-से-कम हों. चूंकि आय बढ़ाने में ऊर्जा की भारी खपत होगी, इसलिए यह जरूरी है कि स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन में दुगुनी या तिगुनी गति से बढ़ोतरी हो. भारत सौर गठबंधन का वैश्विक नेता है. सौर ऊर्जा के संग्रहण और वितरण की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए और इसके लिए बड़ी संख्या में छोटी रिचार्जेबल बैटरियों की जरूरत होगी. हम कार और स्कूटर की बैटरियों का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं.
रात में घर की बिजली आपूर्ति के लिए उनका इस्तेमाल हो सकता है और दिन में उन्हें सौर ऊर्जा से चार्ज किया जा सकता है. हम सभी को राम कथा की उन गिलहरियों की तरह ऊर्जा संग्रहित करने का माध्यम बनना होगा, जिन्होंने बंदरों के साथ मिलकर राम सेतु के निर्माण में योगदान दिया था. स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने से वायु गुणवत्ता में बहुत अधिक सुधार होगा. घर बनाने में इस्तेमाल होने वाला सीमेंट, जो कैल्शियम कार्बोनेट से बनता है, कार्बन डाइऑक्साइड का बड़ा स्रोत है. इसलिए कंस्ट्रक्शन सेक्टर को अपने कार्बन फुटप्रिंट में बहुत अधिक कमी करनी होगी.
‘मिग-47’ का तीसरा आयाम है शिक्षा, कौशल, प्रशिक्षण और उत्पादकता एवं अन्वेषण क्षमता बढ़ाने के द्वारा मानव पूंजी का निर्माण. यह सबसे कठिन काम है. इसके लिए कई मोर्चों पर सुधार की आवश्यकता होगी. शिक्षा (और कृषि) में सुधार नहीं हुआ है और वह जकड़न की स्थिति में है, हालांकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 सही दिशा में उठाया गया कदम है. क्या हम ऐसा आदेश दे सकते हैं कि वरिष्ठ सिविल सर्वेंट अपने बच्चों को पांचवीं कक्षा तक पंचायत या नगरपालिका के स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ायेंगे?
ऐसा करने से जादुई बदलाव होगा. हर सरकारी विद्यालय में शिक्षकों के कामकाज का सालाना मूल्यांकन अभिभावकों एवं शिक्षकों के संगठन द्वारा हो. इससे अभिभावक विद्यालय शासन में हिस्सा ले सकेंगे. ‘मिग-47’ का चौथा आयाम है शासन के तीसरे स्तर तक सत्ता का आक्रामक और अनवरत विकेंद्रीकरण. शासन का तीसरा स्तर लोगों के सबसे निकट है, पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता, धन की उपलब्धता तथा कामकाज के मामले में इसकी शक्ति सबसे कम है. सत्ता का जितना केंद्रीकरण होगा, हम सत्ता की राजनीति में बहुत गहरे धंसते जायेंगे.
इसलिए हमारे सामने एक ही दीर्घकालिक रास्ता है कि शासन एवं सत्ता के विकेंद्रीकरण के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किये जाएं. ‘मिग-47’ का पांचवां आयाम सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक है. हमारे देश को हर तरह से अकल्पनीय विविधता का वरदान मिला है तथा हम विश्व के समक्ष सद्भाव तथा विविधता में एकता का आदर्श उदाहरण हैं. विश्व को भारत का प्रमुख संदेश है ‘समन्वय’- सहिष्णुता नहीं, बल्कि स्वीकार, केवल सह-अस्तित्व नहीं, बल्कि साथ-साथ फलना-फूलना. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)