खाद्य सुरक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत

खाद्य सुरक्षा कानून पूरे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लागू किया जाता है. पहले संस्करण में इसे केवल 100 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया जाना था. इसे पूरे देश में बढ़ा दिया गया था. साठ के दशक से चल रही मूल पीडीएस की जगह नब्बे के दशक के मध्य में लक्षित पीडीएस की मांग की गयी थी.

By अजीत रानाडे | November 15, 2023 9:38 AM

हाल में एक चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना नामक मुफ्त खाद्य योजना को पांच साल के लिए बढ़ाया जायेगा. अपने वर्तमान रूप में इस योजना की अवधि पिछले कैबिनेट फैसले के अनुसार दिसंबर 2023 तक है. इसके तहत भारत की 81.4 करोड़ आबादी को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है. इस योजना का जन्म महामारी के दौरान खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे व्यथित परिवारों को आपात राहत प्रदान करने के लिए हुआ था. इसे 2013 में पारित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम से जोड़ा गया था, जिसके अंतर्गत पात्र परिवारों को अत्यधिक अनुदान पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता था.

इसके दायरे में ग्रामीण भारत की दो तिहाई और शहरी भारत की आधी आबादी आती है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को खाद्य सुरक्षा कार्यकर्ताओं के एक दशक से अधिक के लंबे अभियान के बाद पारित किया गया था, जो सरकारी गोदामों में अनाज के बढ़ते भंडार (एकाधिकार खरीद के कारण) और भुखमरी के साथ-साथ चलने से चिंतित थे. कोविड के दौरान सरकार ने अधिनियम के तहत पात्रता को दोगुना कर दिया और इसे पूरी तरह मुफ्त कर दिया. इसलिए ‘अत्यधिक अनुदान वाले’ (यानी चावल, गेहूं और मोटा अनाज क्रमशः तीन, दो और एक रुपये प्रति किलो) अनाज के बजाय लाभार्थियों के लिए अनाज पूरी तरह से मुफ्त हो गया. इसमें सरकार पर वित्तीय बोझ में मामूली वृद्धि ही हुई. मुफ्त खाद्यान्न योजना ने बड़ी संख्या में परिवारों को उच्च खाद्य मुद्रास्फीति से सुरक्षा प्रदान की है. यदि इसके बजाय एक निश्चित राशि को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में दिया जाता, तो इन परिवारों के लिए बढ़ते दाम पर अनाज खरीद पाना मुश्किल होता जाता.

गरीब कल्याण अन्न योजना को चार चरणों में बढ़ाने के बाद सरकार ने अतिरिक्त घटक (जिसमें पात्रता को दोगुना किया गया था) को बंद करने का फैसला किया, और अब केवल खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दी गयी अनाज गारंटी को मुहैया कराया जाता है. अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का नाम बदलकर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना कर दिया गया है. एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री की घोषणा के कारण इस घोषणा की छवि एक चुनावी वादा होने की बनी है, जिसे पूरा किया जाना है. लेकिन अगर कैबिनेट वैसे भी मुफ्त राशन योजना को पांच साल के लिए बढ़ाने जा रही थी, तो आचार संहिता समाप्त होने की प्रतीक्षा क्यों नहीं की गयी? अन्यथा, यह सत्तारूढ़ दल को ऐसी योजना का श्रेय लेने का एक लाभ देने का प्रयास प्रतीत होता है, जिसे कैबिनेट द्वारा जल्द ही पारित किया जाना था.

अनेक संबंधित मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा करने की आवश्यकता है. सबसे पहले, इस निर्णय के तहत देश के भविष्य के राजस्व के कम से कम 11 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की आवश्यकता होगी. क्या वित्तीय रूप से ऐसा किया जा सकता है? मुफ्त के बजाय, क्या अनाज की कीमतों को थोड़ा बढ़ाया नहीं जा सकता? यहां तक कि खाद्य सुरक्षा कानून में कीमतों में बढ़ोतरी की परिकल्पना की गयी थी. वर्ष 2015 से 2022 के दौरान खाद्य मूल्य सूचकांक औसतन 45 प्रतिशत बढ़ा है, और गेहूं की कीमतों में यह उछाल अधिक हो सकता है. सरकार को विभिन्न प्रतिबद्धताओं की पूर्ति के लिए लगभग 100 मिलियन टन की वार्षिक खरीद का प्रबंधन करना होगा. अनाज बाजार में खरीद पर इतना बड़ा एकाधिकारपूर्ण हस्तक्षेप चिंताजनक है. भंडारण और वितरण का बोझ भी होगा. गेहूं और चावल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का बोझ भी बढ़ता जायेगा. क्या खरीद को विकेंद्रीकृत कर राज्यों को सौंपा जा सकता है?

क्या कुछ योजनाओं को नकदी के सीधे हस्तांतरण में बदला जा सकता है? दूसरा मुद्दा भूख और कुपोषण का हैं. भारतीय अधिकारी वैश्विक भूख सूचकांक रैंकिंग में भारत के स्थान को लेकर नाराज हैं. उनका कहना है कि भारत में कुपोषण की समस्या है, भूख की नहीं. तब केवल अनाज पर ही नीतिगत ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, दूध, अंडे या मांस के माध्यम से पोषक तत्व और प्रोटीन उपलब्ध कराने के लिए मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को मजबूत बनाना चाहिए. नीति आयोग का आकलन है कि गरीबी में 15 प्रतिशत की कमी आयी है. फिर 58 प्रतिशत भारतीयों को मुफ्त भोजन क्यों मिल रहा है? अगर उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी है, तो क्या इसके लिए सीधा लाभ हस्तांतरण करना बेहतर होगा?

तीसरा मुद्दा है कि क्या हमें खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए लक्षित दृष्टिकोण को फिर से अपनाने की आवश्यकता है. खाद्य सुरक्षा कानून पूरे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लागू किया जाता है. पहले संस्करण में इसे केवल 100 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया जाना था. इसे पूरे देश में बढ़ा दिया गया था. साठ के दशक से चल रही मूल पीडीएस की जगह नब्बे के दशक के मध्य में लक्षित पीडीएस की मांग की गयी थी. लेकिन इसके लिए कठिन राजनीतिक निर्णय लेने की आवश्यकता है. चूंकि पिछड़ापन उत्तरी राज्यों और हिंदी भाषी क्षेत्रों में अधिक है, इसलिए ऐसे लक्षित दृष्टिकोण से राज्यों के बीच निष्पक्षता बरतने तथा सहकारी और निष्पक्ष तरीके से संघवाद अपनाने के मुद्दे उठते हैं. पर सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा कानून में सुधार की आवश्यकता तो है. चौथा मुद्दा है कि क्या खाद्य सुरक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव करने का समय आ गया है.

एकाधिकार खरीद प्रणाली तीन उद्देश्यों को पूरा करने पर केंद्रित है- किसान को समुचित मूल्य भुगतान (समय-समय पर संशोधित न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से), गरीब परिवारों को खाद्य सुरक्षा (उनके राशन अधिकार के माध्यम से) और खाद्य मूल्य स्थिरता (समय-समय पर बाजार में बड़ी मात्रा में अनाज आपूर्ति करना ताकि कीमतें नियंत्रित रहें). साधन एक है, पर इसके उद्देश्य तीन हैं. इससे कई विकृतियां उत्पन्न होती हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. जैसे, पंजाब में बड़े पैमाने पर होने वाली रासायनिक खेती, जो पराली जलाने से परोक्ष रूप से जुड़ी हुई है. इसके अलावा, उच्च भंडारण लागत और अनाज की बरबादी एवं अवैध रूप से बाजार में बिक्री जैसे मामले भी हैं. इससे उन व्यापारियों को प्रोत्साहन मिलता है, जो सस्ते दाम पर किसानों से खरीद करते हैं और उसे सरकार को अधिक दाम पर बेच देते हैं. नब्बे के दशक से तकनीक और बेहतर निगरानी से कुछ समस्याओं का समाधान हुआ है, अभी भी व्यापक बदलाव की आवश्यकता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version