रूस में मोदी
भारत और रूस के संबंधों को केवल व्यापारिक आंकड़ों तथा लेन-देन के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है. यह एक भावनात्मक संबंध है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब दोनों देशों के संबंध बहुत अच्छी स्थिति में हैं तथा विश्व बड़ी भू-राजनीतिक हलचलों का सामना कर रहा है. द्विपक्षीय संबंधों के गहरे होने का अनुमान इस घोषणा से लगाया जा सकता है कि भारत वहां दो नये वाणिज्य दूतावासों को स्थापित करने जा रहा है. रूस में बसे और कार्यरत भारतीयों की एक सभा में इसकी सूचना देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारतीय समुदाय दोनों देशों के परस्पर संबंधों की महत्वपूर्ण धुरी है.
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार 65.70 अरब डॉलर हो गया, जो एक रिकॉर्ड है. भारत तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों, फर्टिलाइजर, खनिज, कीमती पत्थर, वनस्पति तेल आदि का रूस से आयात करता है तथा उसे दवाएं, रसायन, इलेक्ट्रिक मशीनरी, लोहा एवं इस्पात आदि का निर्यात करता है. रक्षा क्षेत्र में तो दोनों देशों का सहयोग दशकों से चल रहा है. भारत को एक सैन्य शक्ति बनाने में और अब रक्षा उत्पादन बढ़ाने में रूस का बड़ा योगदान रहा है. दोनों देशों ने 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 अरब डॉलर करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
भारत और रूस के बीच अक्तूबर 2000 में रणनीतिक सहयोग समझौता हुआ था, जिसे दिसंबर 2010 में विशेष एवं विशेषाधिकार युक्त रणनीतिक सहयोग समझौता बना दिया गया. शीर्ष नेताओं की वार्षिक बैठक के साथ रक्षा एवं विदेश मंत्रियों की साझा बैठक की व्यवस्था भी है. दोनों देश ब्रिक्स समूह एवं शंघाई सहयोग संगठन के भी सदस्य हैं. मगर, भारत और रूस के संबंधों को केवल व्यापारिक आंकड़ों तथा लेन-देन के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही रेखांकित किया है कि हर भारतीय अपने हृदय में यह महसूस करता है तथा जब भी रूस का नाम आता है, तो हमारे मन-मस्तिष्क में यही भाव आता है कि रूस हमारा ‘सुख-दुख का साथी’ है. बीते एक दशक में परस्पर संबंधों को नयी गति एवं त्वरा मिली है. प्रधानमंत्री छह बार रूस जा चुके हैं तथा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से 17 बार उनकी भेंट हो चुकी है.
दोनों नेताओं के व्यक्तिगत समीकरण से द्विपक्षीय संबंधों को ठोस आधार मिला है तथा दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं. दोनों को एक-दूसरे पर कितना भरोसा है, उसका अंदाजा इससे लग सकता है कि 2022 में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन में राष्ट्रपति पुतिन के सामने प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं है तथा विवादों का निपटारा संवाद से होना चाहिए. रूस-यूक्रेन युद्ध और अन्य मामलों पर भारत के सकारात्मक रवैये की प्रशंसा रूस के साथ-साथ पश्चिम ने भी की है.