पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के मायने
PM Modi US visit: अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वहां से बड़ी मात्रा में निवेश भी आता रहा है. साथ ही, दोनों देश सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र भी हैं. ऐसे में दोनों देशों में विचारों में बहुत हद तक समानता है.
PM Modi US visit: भारत और अमेरिका के व्यापक रणनीतिक संबंध हैं तथा परस्पर सहयोग बहुआयामी है. आगामी वर्षों में भारत तकनीक के क्षेत्र में एक अग्रणी शक्ति के रूप में उभरने वाला है, वहीं अमेरिका इस क्षेत्र में आज सबसे अधिक क्षमतावान देश है. इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच कई स्तर पर सहकार चल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दौरे में भी ड्रोन आपूर्ति और सेमीकंडक्टर उत्पादन जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर सहमति बनी है. हालांकि अमेरिका से तकनीक हासिल करना आसान नहीं है, पर दोनों देशों के बीच संस्थागत व्यवस्था ऐसी है कि इस मामले में सहयोग लगातार बढ़ा है.
अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और वहां से बड़ी मात्रा में निवेश भी आता रहा है. साथ ही, दोनों देश सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र भी हैं. ऐसे में दोनों देशों में विचारों में बहुत हद तक समानता है. भले ही विदेश नीति से संबंधित कुछ विषयों पर असहमति है, पर अमेरिका और अन्य देश यह समझने लगे हैं कि युद्धों को रोकने में अगर कोई देश प्रभावी भूमिका निभा सकता है, तो वह भारत है. वे यह भी देख रहे हैं कि भारत की नीति सभी देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की है, जिसे बहुपक्षीय संबंध एवं सहयोग की नीति कहा जा सकता है. साथ ही, रणनीतिक स्वायत्तता भी भारतीय नीति का एक महत्वपूर्ण आयाम है.
अमेरिका और अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक आर्थिक अवसर भी है. जैसे-जैसे उनकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन के अलावा अन्यत्र अपना गंतव्य बनाती जायेंगी, तो उनके लिए सबसे सुविधाजनक जगह भारत ही होगा. निरंतर आर्थिक सुधारों और कारोबारी सुगमता में बेहतरी के कारण भारत उनके लिए आकर्षक गंतव्य बन गया है. इस प्रकार, भारत और अमेरिका के संबंध कई मायनों में महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा द्विपक्षीय भी है और बहुपक्षीय भी. क्वाड शिखर बैठक के अलावा उन्होंने इस समूह के तीन देशों के नेताओं से द्विपक्षीय वार्ता भी की है. संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की बैठक है, तो अनेक देशों के प्रमुखों से भी उनकी बातचीत का सिलसिला चल रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए यह अंतिम क्वाड शिखर बैठक है और प्रधानमंत्री मोदी से भी उनकी आखिरी बातचीत है क्योंकि वे चुनाव नहीं लड़ रहे हैं तथा अगले वर्ष जनवरी में उनका कार्यकाल समाप्त हो जायेगा. जापान के प्रधानमंत्री किशिदा भी पद छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं. राष्ट्रपति बाइडेन ने शिखर बैठक का आयोजन अपने गृह शहर में किया, जो आगंतुक नेताओं के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है.
क्वाड शिखर सम्मेलन में हिंद-प्रशांत आर्थिक फोरम से संबंधित व्यापारिक प्रावधानों पर भारत ने अपनी स्वीकृति दे दी है. क्वाड देशों के वाणिज्य मंत्रियों की बैठक भी अब नियमित रूप से होगी. साल 2021 में क्वाड देशों के प्रमुखों का सम्मेलन होना शुरू हुआ था. यह छठा सम्मेलन हुआ है. इनमें से दो बैठकें वर्चुअल फॉर्मेट में हुई थीं और चार बैठकों में नेताओं ने आमने-सामने बैठकर बात की थी. इनमें से दो सम्मेलन अमेरिका में और दो जापान में आयोजित हुए थे.
इस बार बैठक भारत में होनी थी, पर राष्ट्रपति बाइडेन के अनुरोध पर इसे अमेरिका में आयोजित किया गया. अगले साल भारत में क्वाड नेताओं की बैठक होगी. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में जो सबसे महत्वपूर्ण बात रेखांकित की, वह यह है कि क्वाड किसी देश के विरुद्ध समूह नहीं है. यह एक समावेशी समूह है और इसका उद्देश्य वैश्विक भलाई है. इस समूह में चार सामुद्रिक लोकतंत्र- भारत, अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया- सदस्य हैं. इन देशों में यह समन्वय है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र और सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित की जानी चाहिए. इस क्षेत्र में कई विकासशील देश हैं और उनकी क्षेत्रीय समस्याएं हैं. ऐसे देशों को क्वाड किस प्रकार सहयोग और सहायता कर सकता है, यह एक प्रमुख उद्देश्य है.
आज स्वास्थ्य सुरक्षा एक बड़ी चिंता है. पहले हमने देखा कि कोरोना वैक्सीन को लेकर परस्पर सहयोग हुआ और अब विभिन्न प्रकार के टीकों की आपूर्ति को लेकर चर्चा हो रही है. कैंसर मूनशॉट की बात हुई है, जिसके तहत एक भारतीय कंपनी कैंसर के टीके बनायेगी और क्वाड के देश तकनीक, निवेश और अन्य तरह से सहायता करेंगे. सामुद्रिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस बार गंभीर चर्चा हुई है. मैत्री जैसी पहलों को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत की छाप बहुत अहम रही है. क्वाड घोषणा में चीन या रूस का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन संदेश स्पष्ट है कि रूस-यूक्रेन युद्ध रुकना चाहिए तथा चीन को अपने वर्चस्ववाद से परहेज करना चाहिए. कनेक्टिविटी की बड़ी अहमियत है. इसे बेहतर करने के लिए चारों देशों के तटरक्षक साझा अभ्यास और प्रशिक्षण करेंगे. यह कहा जा सकता है कि इस क्वाड सम्मेलन में एक्शन प्लान घोषित किये गये हैं, जिनसे आपसी सहयोग का और विस्तार होगा. अगले साल जब भारत मेजबान होगा, तो नयी चीजें जोड़ने का मौका भी होगा.
प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में भी शामिल होंगे. इस तरह के बहुपक्षीय सम्मेलनों, चाहे संयुक्त राष्ट्र हो, शंघाई सहयोग संगठन हो, ब्रिक्स हो, में बहुत से देशों के नेता आते हैं. जिन नेताओं से बहुत समय से भेंट न हुई हो या कोई जरूरी बात करनी हो, जिन देशों में दौरा करना मुश्किल हो या यात्राओं के बीच अंतराल आ गया हो, तो बहुपक्षीय सम्मेलनों के दौरान द्विपक्षीय बातचीत के कार्यक्रम बनाये जाते हैं. इस क्रम में प्रधानमंत्री मोदी फिलिस्तीनी नेता महमूद अब्बास से मिले हैं और गाजा की स्थिति पर गंभीर चिंता जतायी है.
वे नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली तथा कुवैत के क्राउन प्रिंस शेख सबा खालिद से भी मिले हैं. इस तरह की कुछ और मुलाकातें होंगी. ऐसी बैठकों का बड़ा महत्व है और मेरी नजर में ये पूरी यात्रा के बराबर ही होती हैं. भारत वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करने के लिए प्रयासरत है और उसकी इच्छा है कि संवाद एवं कूटनीति से विवादों का समाधान हो तथा संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का सम्मान हो. इसलिए आवश्यक है कि भारतीय नेता की भेंट विभिन्न देशों के नेताओं से हो. संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित कर सकते हैं, ताकि इस विश्व संस्था की प्रासंगिकता बनी रहे. सतत विकास लक्ष्यों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वे इस ओर भी दुनिया का ध्यान खींचने का प्रयास करेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)