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चीन में जनसंख्या गिरावट का संकट

अगले 20 वर्षों में चीन में कामगारों और सेवानिवृत्त लोगों का अनुपात आज के लगभग 5:1 से घट कर मात्र 2:1 रह जायेगा. ऐसे बड़े बदलाव का मतलब है कि यदि सरकार कर राजस्व के मौजूदा स्तर को कायम रखेगी

साठ वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब चीन की जनसंख्या में गिरावट आयी है. वर्ष 2022 में वहां की आबादी 1.4118 अरब आंकी गयी है, जो 2021 की तुलना में 8,50,000 कम है. चीन की राष्ट्रीय जन्म दर घटकर प्रति एक हजार लोगों पर 6.77 जन्म रह गयी है. इसी के साथ पिछले साल चीन में मौतों ने भी जन्म को पीछे छोड़ दिया. वहां यह भी दशकों में पहली बार ही हुआ है.

पिछले साल मृत्यु दर प्रति एक हजार लोगों पर 7.37 मौत रही, जो 1976 से सबसे अधिक दर है. साल 2021 में यह दर 7.18 रही थी. चीन एक ऐसे आर्थिक दीवार से टकरा चुका है, जिसे भेद पाना संभव नहीं है. चीन का जनवादी गणराज्य एक जन संकट का सामना कर रहा है. उसकी जनसंख्या वृद्धि थम गयी है और आबादी की आयु बढ़ रही है. इस स्थिति का कारण विरोधाभासी है. चीन की एक-संतान नीति अतीत में उसके लिए बहुत लाभप्रद साबित हुई थी.

वर्ष 1979 से लगभग 40 करोड़ जन्म को रोक कर चीन ने अपनी आबादी को बड़ी समृद्धि दी. आकलनों के अनुसार, 1980 से 2010 की अवधि में सकारात्मक जनसंख्या आयु संरचना ने प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) वृद्धि में 15 से 25 प्रतिशत के बीच योगदान दिया था.

जनसांख्यिक लाभांश के साथ सकारात्मक आयु संरचना का लाभ भी अब समाप्त हो गया है. पहले यह अनुमान लगाया गया था कि चीन की आबादी 2030 में 1.391 अरब के स्तर पर पहुंच कर स्थिर हो जायेगी, जो 2010 में 1.330 अरब थी और बेहद धीमी गति से बढ़ रही थी. लेकिन वह स्थिति सात साल पहले ही आ गयी. वर्ष 2050 में चीन की आबादी घटकर 1.203 अरब हो जाने का अनुमान है.

आबादी बढ़ने में कमी और इसकी संरचना में निर्भर लोगों की संख्या बढ़ते जाने पर कुछ वर्षों से चीन में चिंता जतायी जा रही है. वर्ष 2013 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमिटी ने ऐसे दंपत्तियों को दूसरी संतान पैदा करने की अनुमति दे दी, जिनमें से कोई एक (माता या पिता) यदि अपने माता-पिता का एक ही संतान हो. लेकिन चीनी परिवारों को एक बच्चे के अस्तित्व की आदत सी हो गयी है.

ऐसे में जनसंख्या की दीवार को लांघा नहीं जा सकता है और चीन के कार्यबल में अब बढ़ोतरी नहीं हो रही है. वर्ष 2005 और 2015 की अवधि में चीन ने कोई नौ करोड़ लोगों को अपने कार्यबल में जोड़ा था, लेकिन 2015 के बाद के दशक में, वर्तमान रुझानों के अनुसार, वह केवल 50 लाख लोग ही जोड़ सकेगा. वर्ष 2010 में वहां 20-24 साल आयु के 11.6 करोड़ लोग थे.

यह संख्या 2020 तक 20 प्रतिशत घटकर 9.4 करोड़ के आसपास हो गयी. वर्ष 2030 में इस आयु वर्ग के 6.7 करोड़ लोग ही होंगे, जो 2010 की संख्या का 60 प्रतिशत से भी कम है. इस गिरावट का एक त्वरित परिणाम यह है कि 60 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या वर्तमान के 18 करोड़ से बढ़कर 2030 में 36 करोड़ हो जायेगी. एक तुरंत आर्थिक नतीजा बचत दरों में कमी के रूप में सामने आयेगा.

जब किसी राष्ट्र की आर्थिक उन्नति होती है, स्वाभाविक रूप से लोगों की आयु बढ़ने लगती है. लेकिन अधिक आयु का खर्च भी अधिक होता है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में बुजुर्ग लोग मेडिकल खर्च के कारण शेष लोगों से अधिक उपभोग करते हैं. या तो उन्हें अपना खर्च खुद उठाना होता है या उनका परिवार देखभाल करता है. जीवन के पहले कुछ वर्षों में कम उपभोग को छोड़ दें, तो शेष जीवन में उसका स्तर कमोबेश स्थिर बना रहता है.

लेकिन आमदनी और उत्पादन 20 से 65 साल की कामकाजी अवधि में होता है, पहले और बाद में नहीं. कामकाजी और गैर-कामकाजी आबादी के अनुपात को निर्भरता अनुपात कहा जाता है. भारतीय, अफ्रीकी और आश्चर्यजनक रूप से अमेरिकी निर्भरता अनुपातों में आगामी दशकों में सकारात्मक वृद्धि होगी, जबकि चीन गिरावट के साथ यूरोप और जापान जैसे बूढ़े समाजों की सूची में शामिल हो जायेगा.

वर्ष 2021 में अमेरिका की जन्म दर 11.06 और ब्रिटेन की 10.08 रही थी. भारत में यह आंकड़ा 16.42 रहा था. चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत जल्दी ही सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जायेगा. चीन की कुल प्रजनन दर (प्रति महिला पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या) मात्र 1.4 है और सबसे कम प्रजनन दर वाले देशों की श्रेणी में है. विकसित देशों में इसका औसत 1.7 है.

चीन का प्रतिस्थापन दर (जन्म और मृत्यु के संख्या के संतुलन की दर) 2.1 है, जबकि भारत में यह आंकड़ा 2.5 है. क्रय शक्ति समता के हिसाब से, अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की प्रति व्यक्ति आय चीन से पांच गुना या उससे अधिक है. साथ ही, चीन का प्रजनन स्तर अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस (लगभग 2.0) से बहुत कम तथा रूस, जापान, जर्मनी और इटली (इन देशों में तेजी से आबादी कम हो रही है) के बराबर है.

आबादी घटना ही एक बड़ी वजह थी कि सीरिया और लीबिया के दस लाख शरणार्थियों को स्वीकार करने को जर्मनी तुरंत तैयार हो गया. बढ़ते खर्च चीन को मुश्किल में डाल देंगे. अगर सरकार करों में वृद्धि करेगी, तो जनता भी राजस्व एवं खर्च को लेकर बेहतर जवाबदेही की मांग करेगी. ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी के लिए चुनौती के बाढ़ आने की बड़ी संभावना है.

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