14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बुनियादी आमदनी की ओर बढ़ते कदम

Poverty and income inequality : सीधा खाता हस्तांतरण की वेबसाइट के अनुसार, 53 मंत्रालयों की 315 योजनाएं केवल केंद्र सरकार द्वारा संचालित की जा रही हैं. इन योजनाओं में अब तक 38 ट्रिलियन रुपये वितरित किये जा चुके हैं, जिनमें तीन ट्रिलियन रुपये पिछले वित्त वर्ष में ही बांटे गये हैं. साल 2023-24 में नगदी पाने वाले यूनिक लाभार्थियों की कुल संख्या लगभग 70 करोड़ थी.

Poverty and income inequality : गरीबी और आय विषमता घटाने के संभावित समाधान के रूप में 2016-17 के आर्थिक सर्वे में सार्वभौम बुनियादी आय (यूबीआइ) की अवधारणा पर विचार किया गया था. इसे एक क्रांतिकारी विचार के रूप में आगे किया गया था, जिसका समय आ गया है. सर्वे में अनुमान लगाया गया था कि हर भारतीय को 7,260 रुपये (उस समय की गरीबी रेखा के बराबर) नगद देने का सालाना खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.9 प्रतिशत होगा. सरकार के पास उपलब्ध वित्तीय संसाधनों को देखते हुए ऐसा कर पाना सोच से परे और बेहद मुश्किल था. इसलिए यूबीआइ दूर स्थित एक लक्ष्य था, जिसे हासिल करना लगभग नामुमकिन था. पर सीधे नगद हस्तांतरण की अवधारणा को बहुत लोकप्रियता मिल चुकी है. इस हस्तांतरण की शुरुआत जनवरी 2013 में हुई थी. चूंकि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगती है, इसलिए यह उचित और पारदर्शी है तथा इससे वित्तीय समावेश की प्रक्रिया को मदद मिलती है. जन धन बैंक खाते, आधार संख्या पहचान और मोबाइल (जैम) इस सीधे हस्तांतरण के प्रमुख आधार हैं. इन तीन आधारों से हस्तांतरण का विस्तार आसान हो गया है, जो नगदी या वस्तु के रूप में दिया जा सकता है.


सीधा खाता हस्तांतरण की वेबसाइट के अनुसार, 53 मंत्रालयों की 315 योजनाएं केवल केंद्र सरकार द्वारा संचालित की जा रही हैं. इन योजनाओं में अब तक 38 ट्रिलियन रुपये वितरित किये जा चुके हैं, जिनमें तीन ट्रिलियन रुपये पिछले वित्त वर्ष में ही बांटे गये हैं. साल 2023-24 में नगदी पाने वाले यूनिक लाभार्थियों की कुल संख्या लगभग 70 करोड़ थी. हस्तांतरण की अवधारणा केवल नगदी तक सीमित नहीं है, हर माह प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन को भी एक तरह का लाभ हस्तांतरण माना जाता है. वस्तुओं के रूप में हस्तांतरण हासिल करने वाले लाभार्थियों की संख्या बीते वित्त वर्ष में एक अरब से अधिक रही थी. मुफ्त राशन या रसोई गैस सिलेंडर के हस्तांतरण में वितरण खर्च भी होता है. लेकिन नगदी का हस्तांतरण जन धन खातों में सीधे किया जाता है. इसमें हस्तांतरण का खर्च बहुत कम होता है. यही कारण है कि सीधा लाभ हस्तांतरण की लोकप्रियता अधिक है. यदि राज्यों की योजनाओं को भी जोड़ लिया जाए, तो सीधे हस्तांतरण वाली योजनाओं की संख्या 450 से अधिक हो जायेगी. नगद हस्तांतरण का ताजा उदाहरण महाराष्ट्र की लड़की बहिन योजना है. इसके तहत 21 से 65 साल की सभी महिलाओं को 15 सौ रुपये दिये हैं. इसमें शर्त यह है कि लाभार्थी महिला को राज्य का निवासी होना चाहिए, वह सरकारी कर्मचारी न हो, करदाता न हो और जिसकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये सालाना से कम हो.


चूंकि इस योजना में शर्तें हैं, तो इसे सार्वभौमिक नहीं कहा जा सकता है. लेकिन दो करोड़ से अधिक आवेदकों को यह बांटा जा चुका है. इस योजना पर राजकोष का अनुमानित सालाना खर्च 46 हजार करोड़ रुपये है. इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त करना और गरीबी से निकलने में उनकी मदद करना है. इस प्रकार, यह यूबीआइ के उद्देश्य से अलग नहीं है. यह मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना से प्रेरित है, जिसका प्रारंभ जनवरी 2023 में किया गया था. वह योजना बेहद लोकप्रिय हुई है. उसका उद्देश्य भी महिलाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराना, सशक्त बनाना तथा कौशल विकास के लिए संसाधन उपलब्ध कराना है. दिलचस्प है कि उसे केवल शादीशुदा (या तलाकशुदा या विधवा) महिलाओं के लिए लागू किया गया था. साल 2007 में मध्य प्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू की गयी थी, जिसे छह अन्य राज्यों ने भी अपनाया है. यह योजना लड़कियों के लिए थी और इसका उद्देश्य लैंगिक अनुपात को बेहतर करना था. इसमें किसी लड़की के 21 साल की आयु में पहुंचने तक एक लाख रुपये से अधिक का कुल लाभ भुगतान हुआ है. यदि आप विभिन्न राज्यों में लड़कियों और महिलाओं को हस्तांतरित नगद लाभ को जोड़ेंगे, तो बड़ी धनराशि सामने आती है. इस राशि के साथ आप मुफ्त ट्यूशन, मुफ्त साइकिल या मुफ्त बस टिकट आदि जैसे गैर-नगदी लाभों को भी जोड़ सकते हैं, जो कुछ राज्यों में मुहैया करायी जा रही हैं. महिलाओं पर केंद्रित ऐसी योजनाएं सार्वभौम बुनियादी आय के नजदीक पहुंचती दिखती हैं.


अब हमें आठ साल पहले आर्थिक सर्वे में उल्लिखित यूबीआइ से संबंधित बहसों को देखना चाहिए और यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि वर्तमान संदर्भ में इसे लागू कर पाना कहां तक संभव है. वित्तीय रूप से यूबीआइ को संभव करने के लिए कई चालू योजनाओं को सीमित या स्थानापन्न करना पड़ेगा. मसलन, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को यूबीआइ में समाहित करना होगा. जितनी कम शर्तें होंगी, खर्च उतना कम होगा तथा योजना के प्रभावी होने की संभावना अधिक होगी. ऐसी पहल में लोगों को इससे बाहर होने का विकल्प दिया जाना चाहिए. धनी लोग अपनी इच्छा से यूबीआइ से अलग हो सकते हैं, अन्यथा इसके लिए सभी योग्य होंगे. सार्वभौम आवरण में प्रशासन सरल होता है और लोगों के इससे बाहर रह जाने की गलती भी कम हो जाती है. इसमें वैसे लोगों को भी लाभ मिलता है, जिन्हें ऐसी सहायता की आवश्यकता नहीं होती. आर्थिक सर्वे ने यह भी रेखांकित किया था कि नगदी आधारित यूबीआइ से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है तथा मुद्रास्फीति बढ़ने के हिसाब से हर वर्ष आय की राशि को भी बढ़ाना पड़ सकता है. यह पहलू यूबीआइ को कम आकर्षक बनाता है क्योंकि यदि कर वृद्धि की तुलना में मुद्रास्फीति का बोझ तेजी से बढ़ेगा, तो एक समय ऐसा आयेगा, जब इसे जारी रख पाना असंभव हो जायेगा.


यूबीआइ लागू करने का एक व्यावहारिक तरीका सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसा हो सकता है, जो पिछड़े इलाकों और जिलों को लक्षित करता है. परीक्षण के तौर पर इस योजना को कुछ वर्गों के लिए लागू किया जा सकता है. इस परीक्षण के आधार पर एक प्रभावी योजना की रूप-रेखा बनायी जा सकती है. इस संबंध में एक दार्शनिक प्रश्न भी है कि क्या बुनियादी आय एक अधिकार है. चूंकि हमारे ऐसे अधिकारों का प्रावधान है, जिनमें खाद्य, शिक्षा, ग्रामीण रोजगार आदि की गारंटी है, तो बुनियादी आय का विचार, खासकर सर्वाधिक वंचितों के लिए, एक स्वाभाविक विस्तार है. विभिन्न राज्यों में नगद हस्तांतरण और मुफ्त लाभ की अनेक योजनाओं का विस्तार हो रहा है, तो हम पहले से ही बुनियादी आय के परिवर्तित रूप की ओर आगे बढ़ रहे हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें