पक्षियों की मौत की हो पड़ताल

पक्षियों पर मंडरा रहा खतरा शिकार से कहीं ज्यादा विकास की नयी अवधारणा के कारण उत्पन्न हुआ है. कई कारक हैं, जिनके चलते पक्षियों की संख्या कम होती जा रही है और अब पक्षियों में संक्रमण का फैलना चिंताजनक है.

By पंकज चतुर्वेदी | January 19, 2021 6:48 AM

पंकज चतुर्वेदी

वरिष्ठ पत्रकार

pc7001010@gmail.com

दिल्ली की संजय झील में जिन बत्तखों और जल मुर्गियों की चहलकदमी देखने लोग आते थे, उनके संक्रमित होने के शक पर पलक झपकते ही उन्हें मार डाला गया. बीते दस दिनों से, देश में कहीं भी किसी भी पक्षी के संक्रमित होने का शक होने पर आसपास के सभी पक्षी निर्ममता से मार दिये जा रहे हैं. इस बार पक्षियों के मरने की शुरुआत कौओं से हुई है, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता सबसे सशक्त मानी जाती है. मध्य प्रदेश के मालवा के मंदसौर-नीमच व उससे सटे राजस्थान के झालावाड़ जिले में कौव्वे मरे मिले,

जबकि इन क्षेत्रों में प्रवासी पक्षी कम ही आते हैं. उसके बाद हिमाचल प्रदेश के पांग झील में प्रवासी पक्षी मारे गये और फिर केरल में पालतू मुर्गी व बतख. ज्ञात है कि देश में बीते कई वर्षों से इस मौसम में बर्ड फ्लू का शोर मच रहा है, पर अभी तक किसी मनुष्य के इससे मारे जाने का समाचार नहीं मिला है. अलबत्ता, इससे मुर्गी पालन में लगे लोगों का भारी नुकसान अवश्य होता है.

इस मौसम में पक्षियों के मरने का कारण हजारों किलोमीटर दूर से जीवन की उम्मीद के साथ आनेवाले वे पक्षी होते हैं, जिनकी कई पुश्तें सदियों से इस मौसम में यहां आती रही हैं, लेकिन इन नभचरों की मौत का सिलसिला कुछ दशकों पहले ही शुरू हुआ है. ऐसे में मौत का असली कारण उनके प्राकृतिक पर्यावास में लगातार हो रही छेड़छाड़ व जलवायु परिवर्तन भी हो सकता है. आर्कटिक क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान शून्य से चालीस डिग्री तक नीचे चला जाता है, तब ये पक्षी भारत का रुख करते हैं.

ऐसा हजारों वर्षों से होता आ रहा है. इन पक्षियों के यहां आने का मुख्य उद्देश्य भोजन की तलाश तथा गर्मी और सर्दी से बचना होता है. संभव है कि उनके इस लंबे सफर में पंखों के साथ कुछ जीवाणु भी आते हों, पर सच तो यह है कि इन पक्षियों में पाये जाने वाले वायरस के पास अभी केवल दूसरे पक्षियों के डीएनए पर हमला करने की क्षमता है, परंतु इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आनेवाले समय में ये मनुष्य को नुकसान पहुंचाने लायक क्षमता भी विकसित कर लें. ऐसे में सतर्कता बरतनी जरूरी है. कोरोना संकट ने बता दिया है कि जंगली जीवों के इंसानी बस्ती के लगातार करीब आने के चलते उनमें पाये जाने वाले वायरस किस तरह मानव शरीर के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं.

विदित हो कि मरने वाले पक्षियों की पहले गर्दन लटकी और फिर उनके पंख बेदम हो गये. ऐसी स्थिति में पक्षी न तो चल पा रहे थे, न ही उड़ पा रहे थे. शरीर शिथिल हुआ और प्राण निकल गये. फिलहाल इसे बर्ड फ्लू कहा जा रहा है, लेकिन वहां के पानी व मिट्टी के नमूनों की गहन जांच के बाद ही असली बीमारी पता चलेगी. ऐसे लक्षण ‘एवियन बॉटुलिज्म’ नामक बीमारी के भी होते हैं. यह बीमारी क्लोस्ट्रिडियम बॉट्यूलिज्म नामक बैक्टीरिया के कारण फैलती है.

एवियन बॉटुलिज्म को 1900 के दशक के बाद से जंगली पक्षियों की मृत्यु का एक प्रमुख कारण माना गया है. यह बीमारी आमतौर पर मांसाहारी पक्षियों को होती है. इस बैक्टीरिया से ग्रस्त मछली या इस बीमारी से मारे गये पक्षियों का मांस खाने से यह बीमारी फैलती है.

हो सकता है कि तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली बीमारी ‘हाइपर न्यूट्रिनिया’ से कुछ पक्षी, खास कर प्रवासी पक्षी मारे गये हों. यह बीमारी पानी व हवा में क्षार की मात्रा बढ़ने से होती है. इसमें पक्षी को भूख नहीं लगती और कमजोरी से उनके प्राण निकल जाते हैं. पक्षी के मरते ही उसके शरीर में रहने वाले वायरस सक्रिय हो जाते हैं. इससे दूसरे पक्षी भी चपेट में आ जाते हैं. यह भी संभावना है कि दूषित पानी से मरी मछलियों को दूर देश से थके-भूखे आये पक्षियों ने खा लिया हो और उनमें एवियन बॉटुलिज्म के बीज पड़ गये हों. एवियन बॉटुलिज्म का प्रकोप तभी होता है, जब विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक कारक एक साथ उपस्थित हो जाते हैं. इस समय भारत तापमान बढ़ने और जलवायु चक्र में बदलाव से जूझ रहा है.

‘भारत में पक्षियों की स्थिति-2020’ रिपोर्ट के अनुसार, पक्षियों की लगातार घटती संख्या नभचरों के लिए ही नहीं मनुष्यों के लिए भी खतरे की घंटी है. बीते 25 वर्षों में हमारी पक्षी विविधता पर बड़ा हमला हुआ है, कई प्रजाति लुप्त हो गये, तो बहुतों की संख्या नगण्य हो गयी. पक्षियों पर मंडरा रहा खतरा शिकार से कहीं ज्यादा विकास की नयी अवधारणा के कारण उत्पन्न हुआ है. अधिक फसल के लिए खेतों में डाले गये कीटनाशक, विकास के नाम पर पक्षियों के पारंपरिक पर्यावास को उजाड़ना, नैसर्गिक परिवेश की कमी से उनकी प्रजनन क्षमता पर असर, ऐसे कई कारक हैं, जिनके चलते पक्षियों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है और अब पक्षियों में संक्रमण का फैलना बहुत चिंताजनक है.

पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील पक्षी अपने प्राकृतिक पर्यावास में अत्यधिक मानव दखल, प्रदूषण, भोजन के अभाव से भी परेशान हैं. हमारे यहां वर्ष-दर-वर्ष प्रवासी पक्षियों की संख्या घटती जा रही है. प्रकृति संतुलन और जीवन-चक्र में प्रवासी पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इनका इस तरह से मारा जाना अनिष्टकारी है. पक्षियों को बचाने के लिए हमें उनके पर्यावास, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की नैसर्गिकता को बनाये रखने के लिए गंभीर होना होगा.

Posted By : Sameer Oraon

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