पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल दशकों तक सिख और पंजाबी राजनीति के केंद्र रहे थे. बतौर सरपंच 1947 में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले बादल पंजाब के सबसे नौजवान और बाद में सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री भी रहे. वे 1996 से शिरोमणि अकाली दल के सर्वेसर्वा भी थे.
लंबे समय तक राजनीति में उनके प्रासंगिक बने रहने की अकेली वजह उनकी विचारधारा, उसूल और एक पार्टी के साथ ताउम्र उनका जुड़ाव है. आज के दौर में बादल आजादी के पूर्व के समय, स्वतंत्र भारत की शुरुआती राजनीति, हरित क्रांति, आपातकाल, पंजाब में अस्थिरता और सिख विरोधी दंगे आदि के एकमात्र गवाह थे.
प्रकाश सिंह बादल ने 1947 में राजनीति में कदम रखा और अपने गांव के सरपंच बने. पहले प्रयास में ही 1957 में उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता. वे 1970 में पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने. कई वर्षों तक वे नेता विपक्ष और केंद्र में मंत्री भी रहे थे. हर राजनीतिक दल में उनके प्रति गहरे सम्मान की भावना थी. बतौर मुख्यमंत्री उनका पहला कार्यकाल 18 माह का ही रहा, परंतु उस दौरान उन्होंने पंजाब में बढ़ रहे नक्सल आंदोलन को खत्म कर पंजाब के विकास में ठोस योगदान दिया.
दूसरी दफा बादल ने अपनी सरकार बड़े बहुमत के साथ 1977 में पंजाब में इंदिरा गांधी की इमरजेंसी का तीव्र विरोध करने की सहानुभूति के एवज में बनायी, पर वह सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी. उल्लेखनीय है कि इमरजेंसी के दौरान प्रकाश सिंह बादल भी देश के उन नेताओं में शुमार थे, जिन्होंने एक लंबा अरसा सलाखों के पीछे बिताया. बतौर मुख्यमंत्री उनकी दूसरी पारी के दौरान पंजाब में अलगाववाद अपने चरम पर पहुंच गया था.
उनके आलोचक कहते हैं कि अस्सी और नब्बे के दशक की पंजाब की अशांति बहुत हद तक मुख्यमंत्री के रूप में उस दूसरी पारी से भी संबंधित है. बादल ने हमेशा सिख अलगाववाद का पुरजोर विरोध किया तथा इसे सिख धर्म से कभी भी नहीं जुड़ने दिया. इसी छवि के चलते उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सम्मान मिला.
वर्ष 1997 का चुनाव उन्होंने पंजाब में उग्रवाद को खत्म करने के लिए निर्दोष नौजवानों की हत्या की प्रतिक्रिया में जीता, पर सत्ता में आने के बाद इस मसले पर बहुत कुछ नहीं किया गया. उनके समर्थक उनकी प्रशंसा करते रहे कि उन्होंने उस दौरान पंजाब में हिंदू-सिख सौहार्द पर अधिक काम किया ताकि जख्मों को सदा के लिए भरा जा सके. बादल एक ऐसे मुख्यमंत्री के रूप में पहचाने जाते रहे हैं, जिन्होंने किसानी कौम को अपनी प्राथमिकता में रखा. किसानों को मुफ्त बिजली और पानी की सुविधा का प्रचलन भी इनकी ही देन है.
इसी दौरान उन पर वित्तीय भ्रष्टाचार के काफी व्यक्तिगत आरोप भी लगे थे. वर्ष 2007 से 2017 तक मुख्यमंत्री के रूप में बादल ने अपना चौथा व पांचवा कार्यकाल पूरा किया. यह दौर उनकी राजनीति का तथा पंजाब में विकास के लिए बहुत अहम रहा. हालांकि आलोचक यह इंगित करते रहे हैं कि इस दौर में बादल के व्यक्तित्व में उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल का प्रभाव ज्यादा दिखता था.
जब सुखबीर बादल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बहुत बढ़ गयी और एक समय के बाद अकाली दल के पुराने नेताओं ने प्रकाश सिंह बादल का साथ छोड़ना शुरू कर दिया. अगर आज पंजाब की राजनीति में अकाली दल का पतन हुआ है, तो उसका कारण भी यह है कि 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान बादल परिवार ने अपने को सत्ता का केंद्र बना दिया था.
प्रकाश सिंह बादल के राजनीतिक व्यक्तित्व के बारे में यह बात सदैव स्वीकृत रही है कि वे आपसी मेलजोल को प्राथमिकता देते रहे, पर बीते कुछ वर्षों में पंजाब की जनता का अकाली दल से मोहभंग होना तथा विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी के पास जाने के कारणों में जहां व्यक्तिवाद की राजनीति तथा भ्रष्टाचार के आरोप मुख्य रहे, तो दूसरी तरफ पंजाब के कुछ हिस्सों में हुई गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी पर सख्ती ना दिखा पाना तथा राजनीतिक लाभ के चलते गुरमीत राम रहीम के साथ नजदीकी बढ़ाना पंजाब की सिख संगत को उचित नहीं लगा.
प्रकाश सिंह बादल को एक सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि आपसी भाईचारे पर उनके काम को आगे बढ़ाया जाए. उन्होंने पंजाब के किसानी कौम के सर्वांगीण विकास को सदैव प्राथमिकता में रखा तथा भारत के पक्ष को पंजाब में भी सदैव बड़ी प्रमुखता से स्थापित किया. उन्होंने हमेशा हिंदू-सिख भाईचारा के लिए प्रयास किया.