चीन से साइबर मुकाबले की तैयारी

भारत को ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों को अपनी संप्रभुता, साइबर कारोबार की रक्षा करते हुए साइबर सुरक्षा और स्वात्तता के लिए मिल कर नये कानून बनाने होंगे.

By आलोक मेहता | July 8, 2020 3:32 AM

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार

alokmehta7@hotmail.com

लद्दाख और अन्य सीमाओं पर फिलहाल सीधे युद्ध का खतरा टल गया लगता है. प्रधानमंत्री ने लेह पहुंच कर न केवल भारतीय सेना का हौसला बढ़ाया, वरन चीन और पाकिस्तान को भी सीधा संदेश दे दिया कि शांति-सद्भावना के साथ जरूरत पड़ने पर भारत मुंह तोड़ जवाब देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक तथा सामरिक नीति ने पहले पाकिस्तान और अब चीन को बहुत हद तक अलग-थलग कर दिया है.

अमेरिका, फ्रांस, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय समुदाय, आसियान इस समय चीन को विस्तारवादी और विनाशकारी करार देते हुए भारत के साथ खड़े दिख रहे हैं, लेकिन, ध्यान में रखना होगा कि आर्थिक मोर्चे पर असली चुनौती साइबर हमले हैं. हमारे सुरक्षा तंत्र में ताक-झांक व जासूसी के लिए चीन पिछले वर्षों के दौरान भी हैकिंग करता रहा है. चीन की 50-60 कंपनियों के एप्स पर रोक लगाने की घोषणा से निश्चिंत हो जानेवाले लोग भ्रम में हैं. सामान्यतः हम तात्कालिक संकट से निबटने पर अपनी पीठ थपथपा कर जल्दी खुश हो जाते हैं.

चीन 20-30 वर्षों की दीर्घकालिक रणनीति पर काम करता है. उसने परमाणु और जैविक हथियारों के साथ साइबर हमलों के लिए दस वर्षों से तैयारी की हुई है. उसने अपना जाल उस पर निर्भर पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मलेशिया तथा अमेरिका, अफ्रीकी देशों तक फैला लिया है. हमारे कुछ साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पिछले वर्षों से सरकार का ध्यान इस ओर दिलाने की कोशिश में लगे थे, लेकिन प्रशासनिक तंत्र और कुछ अहंकारी नेता-मंत्री केवल कमेटी रिपोर्ट और फाइलों को घुमाते रहे. यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय तक को आधी-अधूरी जानकारियां पहुंचा कर खानापूर्ति की गयी.

साइबर हमले की चीनी-पाकिस्तानी गतिविधियों के प्रमाण सामने आते रहे हैं. वर्ष 2016 में सेना के संवेदनशील ठिकानों और गोपनीय जानकारी एकत्र करने के लिए पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी ने चीनी एप का उपयोग करके लगभग पांच सौ लोगों को झांसे में फंसाया और उनमें कुछ सेना से जुड़े युवा अधिकारी भी थे. उन्हें इस एप के माध्यम से हनी ट्रैप किया गया.

संयोग था कि एक गैर-सैनिक अधिकारी भी इस जाल में उलझा, लेकिन कुछ आशंका होने पर उसने इस साइबर मामलों में पुलिस अधिकारी से संपर्क कर लिया. अधिकारी ने पहले निजी तौर पर सारे संपर्कों के बारे में पूछताछ की तथा गहरे षड्यंत्र का मामला समझ में आते ही उसने पूरे सुरक्षा तंत्र को सतर्क किया. जांच में सबूत मिले कि इस एप को पाकिस्तान से संचालित कर जानकारी इकट्ठा करने की तैयारी थी. सेना के अधिकारियों को भी आगे सतर्क रहने को कहा गया. वह प्रयास विफल हुआ. इसके बाद हमारे साइबर विशेषज्ञ ऐसे हमलों से निबटने के लिए लगातार काम कर रहे हैं.

हां, वे यह अवश्य स्वीकारते हैं कि इंटरनेट, मोबाइल से हैकिंग के अलावा चीन कई वर्षों से एप एवं अन्य संचार साधनों से अधिकाधिक जानकारियां जमा करने के लिए सैकड़ों लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित कर रहा है. हमारे इंडस्ट्रियल एरिया की तरह कुछ बस्तियों में दिन-रात यह काम होता है. युवक साल-साल भर थोड़ी-सी छात्रवृत्ति पर यहां जोड़ दिये जाते हैं. मतलब वायरस की तरह हजारों तरह के गेम्स इस ढंग से तैयार हो सकते हैं, जिससे दुनिया के चुनिंदा देशों की अच्छी-बुरी सामाजिक, आर्थिक, सामरिक सूचनाओं का भंडार-कोष बनता रहे.

संयुक्त राष्ट्र के संगठन अंकटाड ने 2018 की रिपोर्ट में बताया था कि आज पूरी दुनिया की डिजिटल संपत्ति कुछ गिनी-चुनी अमेरिकी तथा चीनी कंपनियों के हाथों में सीमित होकर रह गयी है. यूं तो अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में बने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने साइबर समस्याओं और खतरों पर 2004 से काम शुरू कर दिया था, लेकिन भारत सहित कई देशों ने इस मुद्दे पर प्रारंभिक वर्षों में विशेष ध्यान ही नहीं दिया. नतीजा यह है कि साइबर धंधे, षड्यंत्र, आक्रमण के लिए सक्रिय चीन तेजी से घुसपैठ करता गया है. इस खतरे को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन की फरवरी, 2020 में हुई एक बैठक में डिजिटल दुनिया और साइबर चोरी तथा हमलों से बचने के लिए कई देशों ने नये मजबूत नियम-कानून बनाने की सिफारिश की है. भारत ने इसी दृष्टि से अपने संचार माध्यमों और डिजिटल कामकाज के लिए नियम-कानून की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

अमेरिका तो चीन से मुकाबला कर रहा है. फिलहाल वह भारत से निकट संबंधों का दावा कर रहा है, लेकिन पिछले अनुभव बताते हैं कि सुरक्षा मामलों में उस पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहा जा सकता है. वह भी गिरगिट की तरह अपने स्वार्थों के आधार पर दोस्ती-दूरी या दुश्मनी तक कर दिखाता है. केवल इस्राइल इस मामले में सर्वाधिक सहयोग कर सकता है. आतंकवाद से निबटने में उसने बहुत सावधानी तथा गोपनीयता से सहायता की है और आगे भी कर सकता है. युद्ध के लिए हथियार बेचनेवाले देश हमें अत्याधुनिक हथियार देने की पेशकश कर रहे हैं, लेकिन संचार और साइबर की सर्वाधिक श्रेष्ठ टेक्नोलॉजी के बिना कोई लड़ाई नहीं जीती जा सकती है.

प्रधानमंत्री ने लद्दाख में भारतीय सेना को संबोधित करते हुए चीन का नाम लिये बिना सीधे चेतावनी दे दी कि अब विस्तारवादी नीतियों को विकासवाद की नीतियों पर चलना होगा. विस्तारवाद, उपनिवेशवाद के साथ डिजिटल एकाधिकार तथा हमलों से निबटने के लिए भी उन्होंने संबंधित मंत्रालयों को निर्देश दे दिये हैं. चीन ने अपने आर्थिक साम्राज्य के लिए दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीकी देशों, भारत, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम जैसे देशों के इंटरनेट आधारित एप्लीकेशंस को बड़े बाजार की तरह इस्तेमाल किया है.

अपनी कंपनियों और उन देशों की कंपनियों के साथ साझेदारी करके उसने बहुत अंदर तक घुसपैठ कर ली है. यह सीमा पर घुसपैठ से अधिक गंभीर एवं खतरनाक है. इस दृष्टि से भारत को ही नहीं, दुनिया के अधिकांश देशों को अपनी संप्रभुता, साइबर कारोबार की रक्षा करते हुए साइबर सुरक्षा और स्वात्तता के लिए मिलकर नये कानून बनाने होंगे.

(ये लेखक के निजी िवचार हैं़)

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