रक्षा क्षेत्र में कायापलट की तैयारी

defence sector : भारतीय वायु सेना में लड़ाकू विमानों की संख्या निर्धारित 45 स्क्वाड्रन से बहुत कम हो जाने के बावजूद राफेल जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान जुटाने में सत्रह साल लगे थे.

By अरुणेंद्र नाथ वर्मा | January 13, 2025 12:33 AM

Defence Sector : वर्ष 2024 बीत गया, पर रूस-यूक्रेन युद्ध की विभीषिका शांत नहीं हो सकी. इसी वर्ष फिलिस्तीन-इस्राइल में लगी चिंगारी मध्य-पूर्व के कई देशों में आग बनकर फैल गयी. वर्ष का अंत आते-आते विभिन्न देशों में आंतरिक आतंक और विनाश का तांडव भी होने लगा. अमेरिका सहित अनेक देशों में आतंकियों के विध्वंसक बम और आत्मघाती हमले तबाही मचाने लगे. लेकिन गत वर्ष अपेक्षाकृत सौभाग्यशाली भारत शत्रु देशों के खुले हमलों का शिकार नहीं बना और चीन से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कुछ कम ही हुआ. पाकिस्तान और बांग्लादेश के नये प्रशासन की नजदीकी के बावजूद पूर्वी सीमा पर युद्ध जैसी स्थिति की आशंका नहीं है. पर सकल विश्व में हो रही हलचलों के संदर्भ में भारत यह कभी नहीं भूल सकता कि स्वतंत्रता की कीमत सतत सुरक्षा होती है.


देश के अंदर मणिपुर की आग लगातार सुलग रही है, यद्यपि नक्सली क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की हालिया सफलता संतोषप्रद है. इन सारी स्थितियों के मद्देनजर विकासशील भारत की सीमाओं की सुरक्षा और आंतरिक अमन-चैन का उत्तरदायित्व रक्षा मंत्रालय के सामने बड़ी चुनौती बनी रहेगी. रक्षा मंत्री ने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए इस वर्ष को ‘सुधारों का वर्ष’ घोषित किया है. उन्होंने सेना और उसके सभी सहायक अंगों एवं संस्थानों के सुधार के लिये नये वर्ष में पूरे किये जाने वाले लक्ष्य निर्धारित किये हैं. रक्षा मंत्रालय के सुधारों के व्यापक उद्देश्य दो तरह के हैं. पहली श्रेणी के सुधारों से देश के नागरिक परिचित हैं. ये सुधार और इनके नतीजे देश की आर्थिक तरक्की से स्पष्टतः जुड़े हुए हैं. उदाहरण के लिए, रक्षा तंत्र के लिए साजो-सामान एवं नवीनतम हथियारों के निर्माण, खरीद और अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल, प्रभावशाली एवं गतिशील बनाने वाले सुधार.

भारतीय वायु सेना में लड़ाकू विमानों की संख्या निर्धारित 45 स्क्वाड्रन से बहुत कम हो जाने के बावजूद राफेल जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान जुटाने में सत्रह साल लगे थे. अब तीनों सेनाओं के लिए आधुनिकतम शस्त्रास्त्र जुटाने की प्रक्रिया इतनी लचर नहीं रह गयी है. नयी आणविक पनडुब्बी या आकाशीय सुरक्षा (एयर डिफेंस) के लिए अत्याधुनिक प्रणाली की खरीद जैसी बेहद जटिल और महंगी प्रक्रिया अब जाहिरा तौर पर सरलीकृत बनायी जा चुकी है.


दूसरा क्षेत्र, जिसमें सुधार की आवश्यकता आम नागरिक समझता है, वह युद्ध विज्ञान की नयी तकनीक और तरीकों का है. आज सारे विश्व में तकनीकी एवं वैज्ञानिक प्रगति के कारण युद्ध की पारंपरिक छवि में अभूतपूर्व परिवर्तन हो रहे हैं. पारंपरिक गोला-बारूद से लड़े जाने वाले युद्ध ने साइबर युद्ध और मनोविज्ञानिक युद्ध जैसे नये मुखौटे पहन लिये हैं. एआइ, रोबोटिक्स, मशीन लर्निंग, हाइपरसोनिक जैसी नयी तकनीकें युद्ध कला में अकल्पनीय परिवर्तन ला रही हैं. इन सभी क्षेत्रों में रक्षा मंत्रालय जरूरी कदम उठायेगा. इसी तरह तय है कि भविष्य में युद्ध जमीनी सीमाओं से उठकर अंतरिक्ष तक में लड़े जायेंगे. आशा है कि अंतरिक्ष में उपग्रहों की डॉकिंग (साथ जुड़ने) के प्रयोग के सफल होते ही भारत अमेरिका, रूस एवं चीन के साथ चौथी अंतरिक्ष शक्ति बन जायेगा.

अंतरिक्ष की उपलब्धियों से देश के रक्षा तंत्र को और सुदृढ़ करने की दिशा में भी नये कदम उठाने का रक्षा मंत्री का आह्वान प्रशंसनीय है. इसी तरह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान के बेहद महत्वपूर्ण योगदान को और सुदृढ़ करने के लिए रक्षा निर्माण में सरकारी तंत्र को निजी क्षेत्र के उपक्रमों और संगठनों के साथ जोड़ने वाले सुधारों की आवश्यकता सब समझते हैं. पर रक्षा मंत्री की घोषणा में सबसे महत्वपूर्ण सुधार से देश का आम आदमी अपरिचित है. यह सुधार देश की सशस्त्र सेनाओं में एकीकृत सैन्य कमान प्रणाली स्थापित करने की दिशा में है. फिलहाल तीनों सेनाओं का वर्तमान संगठन देश को भौगोलिक इकाइयों में बांट कर किया गया है. उदाहरण के लिए, थल सेना और वायु सेना की पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और केंद्रीय कमानें देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अपने-अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं.


इनके अतिरिक्त, वायु सेना में मेंटेनेंस कमान और स्थल तथा वायु सेना में प्रशिक्षण कमान भी हैं. लेकिन नयी घोषणा के अनुसार देश की बहुविध सुरक्षा के लिए दो या तीन थियेटर कमान बना कर जल, थल और नभ (आगे चलकर अंतरिक्ष में भी) में सारे संसाधन एक कमांडर या थियेटर सेनापति को सौंप देने की योजना है. इस नयी नीति की घोषणा प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2019 को की थी. अगले वर्ष चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद पर जनरल बीपी रावत की नियुक्ति भी कर दी गयी. लेकिन उनकी अकाल मृत्यु के बाद से इस योजना के कार्यान्वयन की कोई खबर नहीं आयी.

सैन्य विशेषज्ञों में इस विषय पर आम सहमति नहीं है. कुछ का मानना है कि इससे सीमित संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सकेगा और युद्ध काल में तुरंत निर्णय और तुरंत कार्यान्वयन में मदद मिलेगी. वहीं विरोधी स्वर कहते हैं कि जब संसाधन बहुत सीमित हों तो सेनाध्यक्ष जिस भौगोलिक क्षेत्र में जरूरत पड़े उन्हें वहां भेजकर उनका बेहतर उपयोग कर सकेगा. किस थियेटर में कौन सेनापति स्थानीय थियेटर कमान की अध्यक्षता संभाले, यह भी उलझन पैदा करेगा. जुदा-जुदा सेनाध्यक्षों का काम तब शायद रेज-ट्रेन-सस्टेन तक ही सीमित रह जायेगा. संसाधनों का वितरण भी उलझन भरा प्रश्न है. मसलन अंतरिक्ष में संसाधनों पर कौन नियंत्रण रखेगा. थियेटर कमांडर किसके प्रति जवाबदेह होगा- रक्षा मंत्री के प्रति या चीफ ऑफ स्टाफ्स समिति के प्रति. एकीकृत ऑपरेशंस कक्ष का संचालन किसके हाथ में होगा.


अमेरिका में संयुक्त कमान की अनुशंसा गोल्ड वाटर निकोस समिति ने 1986 में की, लेकिन उसका पूरा कार्यान्वयन होते-होते कई दशक निकल गये थे. चीन ने भी एकीकृत कमान की नीति अपनाने का निर्णय 2015 में लिया, लेकिन क्रियान्वयन में कई वर्ष लग गये. इन देशों के सामने एकीकृत कमान पद्धति के नीतिगत निर्णय को व्यावहारिक जामा पहनाने में बहुत सी दिक्कतें आयीं. इसके मद्देनजर भारत में एकीकृत कमान का दूरगामी निर्णय इसी वर्ष के अंदर संपन्न करने की घोषणा सैन्य विशेषज्ञों के लिए कौतूहल का विषय है. बेहतर होगा कि पहले अंडमान व निकोबार से कच्छ तक सारी चुनौतियां और सैन्य संसाधन मेरी टाइम कमान को सौपने के या सारे देश की आकाशीय सुरक्षा एयर डिफेंस कमान को सौंपने के पायलट प्रोजेक्ट को आजमा लिया जाए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version