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शाबाश हेमंत सरकार!

हाल ही में झारखंड सरकार ने लद्दाख जाकर काम करनेवाले झारखंडी मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए सीमा सड़क संगठन के साथ जो ऐतिहासिक समझौता किया है, उसकी जितनी भी तारीफ की जाये वह कम ही होगी. अभी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि अगर सीमा सड़क संगठन को लद्दाख में काम करने के लिए झारखंडी मजदूरों की जरूरत है, तो इसके लिए उसे पहले झारखंड सरकार के साथ बात करनी होगी.

लद्दाख में झारखंडी मजदूरों के हितों की रक्षा

किसी भी राज्य की सरकार ने अपने प्रवासी मजदूरों के हितों की सुरक्षा के लिए वह काम नहीं किया जो झारखंड की वर्तमान सरकार ने किया

वीर भारत तलवार

हाल ही में झारखंड सरकार ने लद्दाख जाकर काम करनेवाले झारखंडी मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए सीमा सड़क संगठन के साथ जो ऐतिहासिक समझौता किया है, उसकी जितनी भी तारीफ की जाये वह कम ही होगी. अभी कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि अगर सीमा सड़क संगठन को लद्दाख में काम करने के लिए झारखंडी मजदूरों की जरूरत है, तो इसके लिए उसे पहले झारखंड सरकार के साथ बात करनी होगी.

इसका कारण यह है कि हाल ही में लद्दाख से लौटे मजदूरों ने लद्दाख में ठेकेदारों के जरिये हुए अपने शोषण की जो कहानियां सुनायीं, वे बहुत शर्मनाक और दर्दनाक हैं. उन्होंने बताया कि वहां उन्हें पूरा वेतन नहीं दिया जाता था, उनके वेतन का एक हिस्सा ‘मेट’ अपने पास रख लेता था, जिसकी निगरानी में वे काम करते थे. मजदूरों ने बताया कि उनके एटीएम कार्ड को ठेकेदारों और मेटों ने अपने पास ही रख लिया और उनके वेतन की बहुत सी बकाया रकम भी उन्हें नहीं दी.

झारखंड की हेमंत सरकार ने सीमा सड़क संगठन को यह साफ-साफ बता दिया है कि अगर उन्हें लद्दाख में काम के लिए झारखंडी मजदूरों की जरूरत है तो बीच में से ठेकेदारों को हटाना होगा और सीमा सड़क संगठन को झारखंड सरकार के साथ सीधे समझौता करना होगा. आखिरकार सीमा सड़क संगठन ने झारखंड सरकार की इन शर्तों को मान लिया और इसी के मुताबिक लद्दाख में मजदूरों के साथ अच्छा बरताव करने, उन्हें पूरा वेतन देने आदि को लेकर एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) किया है. अब 10 जून से वहां झारखंडी मजदूरों को 15,900 से लेकर 29,000 तक वेतन मिलेगा.

हम सभी मानते हैं कि झारखंड की अपनी अर्थव्यवस्था एकांगी, असंतुलित और कमजोर होने के कारण ‘यहां सिर्फ उद्योग खोले गये और खेती तथा वन उपज की उपेक्षा की गयी’, इसलिए यहां की ग्रामीण आबादी को अपनी रोजी-रोटी के लिए हर साल लाखों की संख्या में झारखंड छोड़कर दूसरे राज्यों में जाना पड़ता है, जहां उनके साथ बहुत बुरा बरताव होता है और शोषण भी. आज तक झारखंड की किसी सरकार ने इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया.

पहली बार हेमंत सरकार ने बहुत संवेदनशीलता और गंभीरता के साथ इस मुद्दे पर काम किया है. सच बात तो यह है कि भारत के किसी भी राज्य की सरकार ने अपने प्रवासी मजदूरों के हितों की सुरक्षा के लिए वह काम नहीं किया जो झारखंड की वर्तमान सरकार ने किया है. सरकारों की आलोचना तो होती है और होती रहनी भी चाहिए, लेकिन उसके अच्छे काम की प्रशंसा भी जरूर करनी चाहिए.

लेकिन अपनी प्रशंसा से संतुष्ट होकर हेमंत सरकार को बैठ नहीं जाना चाहिए. झारखंड में अभी कई विकराल समस्याएं हैं, जिनका हल ढूढ़ना बहुत जरूरी है. रोजगार के लिए हर साल इतने बड़े पैमाने पर झारखंडियों का राज्य से पलायन करना एक बड़ी गंभीर समस्या है और एक-दो समझौतों से यह समस्या हल होनेवाली नहीं है. इसके लिए झारखंड की पूरी अर्थव्यवस्था पर, खासकर इसकी खेती और जंगल की अर्थव्यवस्था पर नये सिरे से काम करना होगा. झारखंड से पलायन को रोकने और कुल आबादी में आदिवासियों के घटते प्रतिशत को रोकने के लिए हमें विकास के मॉडल पर पुनर्विचार करना होगा.

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं)

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