Presidential elections in America : ट्रंप-हैरिस बहस में छींटाकशी हावी रही, पढ़ें जे सुशील का आलेख

Presidential elections in America : हैरिस की टीम ने कहा है कि वे बहस के लिए तैयार हैं. चूंकि अब चुनाव में डेढ़ महीने का समय रह गया है, तो संभावना है कि कोई और बहस न हो. इस बहस से पहले दोनों उम्मीदवारों का वोट शेयर 48 प्रतिशत था, पर बहस के तुरंत बाद हुए सर्वे में हैरिस तीन अंकों से आगे बतायी जा रही हैं.

By जे सुशील | September 16, 2024 6:45 AM

Presidential elections in America : ऐसा बहुत कम होता है कि राष्ट्रपति पद के लिए हो रही बहस में अमेरिकी नागरिक कुत्ते-बिल्ली और पालतू जानवरों को मार कर खाने की बात करें, लेकिन अब दुनिया ऐसी ही हो चुकी है. एक झूठी खबर, जिसका कई बार खंडन किया जा चुका है, डोनाल्ड ट्रंप के लिए अहम हो जाती है और वे कहते हैं कि दूसरे देशों से आये लोग अमेरिकी नागरिकों के पाले हुए कुत्ते-बिल्लियों को मार कर खा रहे हैं. अमेरिका में डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों- कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप की पहली बहस संभवत: आखिरी बहस थी, क्योंकि ट्रंप अब हैरिस के साथ कोई बहस नहीं चाहते हैं.

हैरिस की टीम ने कहा है कि वे बहस के लिए तैयार हैं. चूंकि अब चुनाव में डेढ़ महीने का समय रह गया है, तो संभावना है कि कोई और बहस न हो. इस बहस से पहले दोनों उम्मीदवारों का वोट शेयर 48 प्रतिशत था, पर बहस के तुरंत बाद हुए सर्वे में हैरिस तीन अंकों से आगे बतायी जा रही हैं. हालांकि यह अंतर बहुत अधिक नहीं है, पर यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि बहस के बाद जिस तरह की फैक्ट चेकिंग हुई है, उससे ट्रंप के प्रति भरोसा थोड़ा कम हुआ है.
इस बहस में सबसे भयावह यह देखना था कि किस तरह ट्रंप ने प्रवासन का मुद्दा उठाया.

कुत्ता-बिल्ली खाने की झूठी घटना का संदर्भ भी प्रवासन से है. ट्रंप ने दावा किया कि अवैध रूप से अमेरिका आ रहे लोग इतने बर्बर हैं कि कुत्ते-बिल्लियों को मार कर खा रहे हैं. ऐसी झूठी खबरों से उन लोगों के लिए स्थिति खराब होती है, जो दूसरे देशों के नागरिक हैं और अमेरिका में रह रहे हैं. अवैध रूप से अमेरिका आकर रहने की समस्या गंभीर है, लेकिन इस पर कैसे रोक लगे या इसे कैसे नियंत्रित किया जाए, फिलहाल दोनों नेताओं के पास इसकी कोई ठोस योजना नहीं है. उपराष्ट्रपति रहते हुए कमला हैरिस को यह जिम्मेदारी दी गयी थी कि वे आप्रवासन पर कोई ठोस योजना बनाएं, पर वे ऐसा न कर सकीं.

नतीजा यह है कि दक्षिण अमेरिका के रास्ते बड़ी संख्या में अवैध रूप से लोग अमेरिका आ रहे हैं. अमेरिका को खेतों, दुकानों और फैक्ट्रियों के लिए सस्ते मजदूरों की जरूरत है. ये लोग उन्हीं क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जिनमें कम पैसा दिया जा रहा है. अवैध आप्रवासन बंद किया जायेगा, तो कारोबार को नुकसान पहुंचेगा तथा अगर इसे वैध कर दिया जाए, तो इन लोगों को नियम के तहत पैसे देने होंगे. उससे मुनाफा घट जायेगा. यह एक दोधारी तलवार है, जिसमें उन लोगों को नुकसान हो रहा है, जो वैध तरीकों से अमेरिका में रह रहे हैं. उनकी छवि भी खराब हो रही है, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग अवैध तरीकों से भी रह रहे हैं. आने वाले समय में चाहे जो जीते, उसके समक्ष प्रवासन को लेकर नयी नीतियां बनाना एक बड़ी चुनौती होगी.


गाजा में जारी युद्ध को लेकर दोनों नेताओं की नीतियां लगभग समान रहीं और बहस में भले ही बड़ी-बड़ी बातें कही गयी हों, इस्राइल-फिलिस्तीन पर अमेरिकी नीति में शायद ही कोई बदलाव आयेगा. चाहे ट्रंप हों या हैरिस, अमेरिकी नीति फिलिस्तीन विरोधी और इस्राइल समर्थक रहेगी, इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए. यही कारण है कि इस बहस को नीतिगत मामलों में एक स्वस्थ बहस के बजाय ऐसी बहस के रूप में याद किया जा रहा है, जिसमें दोनों उम्मीदवारों ने एक-दूसरे को शर्मिंदा करने की कोशिश की और एक-दूसरे पर छींटाकशी की. हैरिस ने एक समय में यहां तक कहा कि ट्रंप की लड़ाई बाइडेन से नहीं है, बल्कि कमला हैरिस से है. यह कहते हुए वे भूल गयीं कि वे बाइडेन प्रशासन में उपराष्ट्रपति हैं और बाइडेन की आलोचना उनकी आलोचना भी है.

हैरिस ने ट्रंप की रैलियों पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी रैलियों में लोग नहीं आते हैं, जबकि इसका नीतियों से कोई लेना देना नहीं था. गर्भपात की नीतियों पर कमला हैरिस ने अपनी बात मजबूती से रखी, जबकि ट्रंप इस मामले में बैकफुट पर रहे. फिलहाल दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार एक्स (ट्विटर) के मालिक एलन मस्क के समर्थन के बावजूद ट्रंप पिछड़ रहे हैं. बहस के बाद मस्क थोड़े निराश दिखे, लेकिन वे ट्रंप का खुल कर समर्थन कर रहे हैं, जो एक तरह से अमेरिकी पूंजीपतियों का समर्थन भी है, लेकिन क्या सिर्फ मस्क के समर्थन के कारण अमेरिका की पूरी बिजनेस लॉबी ट्रंप के समर्थन में आयेगी? यह एक बेहद कठिन सवाल है.


अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों को समझने के लिए एक तरीका यह देखना भी है कि किस उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा फंडिंग आती है. इस मामले में हैरिस आगे निकल चुकी हैं. फंडिंग का मसला सिर्फ पैसों का नहीं होता, बल्कि व्यवस्था से भी जुड़ा होता है. अमेरिका में कंपनियों द्वारा लॉबिंग मान्य है और राजनीतिक चंदा इसी के तहत दिया जाता है. कहने का अर्थ यह है कि अगर कोई चंदा देता है, तो यह मान कर कि समर्थित उम्मीदवार जीतेगा, तो उसे किसी काम या नीति में फायदा मिलेगा. यह व्यवस्था लंबे समय से चली आ रही है और कारोबार की एक व्यवस्था बन चुकी है. ट्रंप इसे उलट कर नयी व्यवस्था लाना चाहते हैं. अपने चार साल के पिछले शासन में उन्होंने ऐसा किया भी. बाइडेन जब मैदान में आये थे, तो उनके कैंपेन की पृष्ठभूमि थी- हीलिंग. यह हीलिंग अमेरिकी मानस की कम और अमेरिकी बिजनेस हितों की अधिक थी. जाहिर है कि बिजनेस समुदाय उनके पक्ष में आया. कारोबारी वर्ग चाहेगा कि यह व्यवस्था बनी रहे, न कि कोई ऐसा राष्ट्रपति आये, जो फिर से चीजों को पुनर्भाषित करे.


यह बहस 6.70 करोड़ लोगों ने देखी, जिनमें 40 प्रतिशत लोग 40 से 55 साल की उम्र के थे यानी वह वर्ग, जो नौकरी या पेशे में व्यवस्थित है और चुनाव में गहरी रुचि रखता है. यह वर्ग चाहता है कि चीजें वैसे ही चलती रहें, जैसे चलती रही हैं. जब ओबामा जीते थे, तब बहस देखने वालों में अधिक युवा थे. इस हिसाब से भी हैरिस के लिए सकारात्मक संकेत हैं. इस चुनाव से किसी बड़े बदलाव की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि लोग मान चुके हैं कि उनके सामने दो खराब उम्मीदवार हैं, जिनमें से उन्हें एक को चुनना है. वे ट्रंप को एक बार देख चुके हैं और किसी महिला को चुन कर कम-से-कम वे अपना यह पाप धो लेना चाहेंगे कि आज तक अमेरिका में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है. बहरहाल, राजनीतिक पर्यवेक्षकों की नजर उन आधा दर्जन राज्यों पर टिकी हुई है, जहां कभी रिपब्लिकन और कमी डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जीते थे. इन राज्यों के नतीजे ही यह तय करेंगे कि अगला अमेरिकी राष्ट्रपति कौन होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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