पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव पैदा कर चीन ने अपने लिए अनेक मुसीबतें मोल ले ली है. एक ओर जहां भारतीय बाजार के दरवाजे चीनी वस्तुओं और तकनीक के लिए बंद होने लगे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन को घेरना शुरू कर दिया है. हांगकांग की स्वायत्तता पर चीन की चोट पर संयुक्त राष्ट्र में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत ने कहा है कि वह इस प्रकरण को गंभीरता से देखा रहा है क्योंकि वहां बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक और भारतीय मूल के लोग रहते हैं.
उल्लेखनीय है कि चीन ने हांगकांग से संबंधित समझौतों और कानूनों का उल्लंघन करते हुए नये सुरक्षा कानूनों को इस स्वायत्त शहर पर थोप दिया है. भारत द्विपक्षीय संबंधों का लिहाज करते हुए पहले सार्वजनिक तौर पर चीन की पहलों पर कुछ कहने से परहेज करता था, किंतु लद्दाख में चीनी आक्रामकता ने अब स्थिति बदल दी है. हालांकि हांगकांग पर भारत का बयान बहुत संयमित और कूटनीतिक मर्यादाओं के तहत है, किंतु इससे चीन को यह साफ संकेत दे दिया गया है कि वह भारतीय संयम व धैर्य की परीक्षा न ले.
चीन या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अचरज नहीं होना चाहिए, अगर भारत ताइवान, साउथ चाइना सी, ईस्ट चाइना सी आदि से जुड़े मसलों पर बोलना शुरू कर दे. हमारे देश की पुरानी नीति रही है कि हम अपने से जुड़े मामलों या अन्य विवादों का निबटारा शांतिपूर्ण बातचीत से करने के पक्षधर हैं तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर हमारी अभिव्यक्ति सधे और सुचिंतित शब्दों में होती है, पर अब समय आ गया है कि आक्रामक सैन्य व कूटनीतिक व्यवहार का उत्तर भी उसी अंदाज में दिया जाए.
आयात को सीमित करने और आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाने, डिजिटल व साइबरस्पेस को सुरक्षित रखने के लिए संदिग्ध एप पर रोक लगाने तथा चीनी कंपनियों के ठेके रद्द करने जैसी पहलकदमी के साथ कूटनीति के मैदान में हांगकांग को लेकर चिंता व्यक्त करने से दुनिया को भी यह संदेश गया है कि बदलती दुनिया में भारत न केवल तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है, बल्कि वह संप्रभु देशों के वैश्विक तंत्र में भी एक महत्वपूर्ण उपस्थिति है. इसका सकारात्मक प्रभाव भी सामने आने लगा है.
अमेरिका ने एक बार फिर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि लद्दाख में चीन का व्यवहार उसकी लगातार आक्रामकता का ही एक हिस्सा है. हांगकांग पर भारत के बयान से इस मुद्दे पर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जापान, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की राय को बल मिलेगा. भारत हमेशा से सतर्क रहा है कि दक्षिण एशिया में अपने वर्चस्व को बढ़ा कर चीन उसे घेरना चाहता है. इसके बावजूद भारत ने चीन से सहयोग बढ़ाने और विवादों को मिल-बैठ कर सुलझाने की कोशिश की है. पर, चीन ने आदतन धोखेबाजी की है और अब उसे इसका खामियाजा भी भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए. भारत ने अभी शुरुआत ही की है.