अनेक संकटों का सामना कर रही वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने कुछ अमेरिकी और यूरोपीय बैंकों के डूबने या मुश्किल में आने के रूप में नयी चिंता पैदा हो गयी है. सिलिकन वैली बैंक, क्रेडिट सुइस, सिलवरगेट और फर्स्ट रिपब्लिकन बैंक डूब चुके हैं तथा यूरोपीय स्टॉक बाजार में बैंकों के शेयरों के दाम में गिरावट जारी है. एक ओर जहां अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजार में अनिश्चितता है, वहीं हमारे देश में आइटी क्षेत्र के प्रभावित होने की आशंकाएं बढ़ गयी हैं.
भारत की शीर्ष आइटी कंपनियों का 40 प्रतिशत तक राजस्व बैंकिंग, वित्त सेवाओं और बीमा क्षेत्र से आता है. भारतीय आइटी कंपनियों का अमेरिका की तकनीकी कंपनियों से भी जुड़ाव है. उल्लेखनीय है कि तबाह हुए अमेरिकी बैंकों का सबसे अधिक लेन-देन तकनीकी कंपनियों और स्टार्टअप उद्यमों के साथ रहा था. दुनिया की बड़ी तकनीकी कंपनियों में छंटनी का दौर भी लंबे समय से चल रहा है. संतोषजनक है कि भारत में बड़े पैमाने पर लोगों को काम से नहीं हटाया गया है, लेकिन अगर बाहर से होने वाली कमाई घटती है, तो वह स्थिति भी आ सकती है.
निवेश में कमी आने के बावजूद कोरोना काल से लेकर अब तक हमारी तकनीकी कंपनियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. इसी आधार पर केंद्रीय आइटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने उम्मीद जतायी है कि हमारी कंपनियां मौजूदा बैंकिंग संकट के असर का भी सामना कर लेंगी. यदि एक क्षेत्र में नुकसान भी होता है, तो दूसरे क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन से उसकी भरपाई भी की जा सकती है. यह भी संतोष की बात है कि विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि भारतीय पूंजी बाजार और बैंकों पर अमेरिकी और यूरोपीय स्थिति का प्रभाव न के बराबर पड़ेगा.
यदि यह स्थिति बरकरार रहती है, तो आइटी सेक्टर में नये सौदों पर असर पड़ेगा तथा मौजूदा ठेकों की अवधि नहीं बढ़ेगी. हालांकि इन बैंकों के डूबने का मुख्य कारण उनके प्रबंधन की खामियां है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध तथा भू-राजनीतिक तनावों ने भी अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ बैंकों और आइटी सेक्टर पर दबाव बढ़ा दिया है. जानकारों का मानना है कि अर्थव्यवस्थाओं को संभालने की जो कोशिशें विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक कर रहे हैं, उससे स्थिति के जल्दी ही नियंत्रण में आने की आशा है.
मौजूदा संकट 2008 के वित्तीय संकट जितना गंभीर भी नहीं है. भारतीय आइटी कंपनियों ने हाल के वर्षों में अफ्रीका, एशिया और लातिनी अमेरिका में नये बाजार भी खोजे हैं. आने वाले समय में इन क्षेत्रों के साथ कारोबार बढ़ने की संभावना है. घरेलू मांग में भी सुधार की उम्मीद है. ऐसे में आशा है कि वर्तमान झटके से अल्पकालिक प्रभाव ही पड़ेगा.