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आत्मनिर्भरता का मंत्र

स्वावलंबन समाज में पैठी आर्थिक विषमता का उपचार भी है तथा आर्थिक विकास में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता को पाटने का कारगर उपाय भी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में राष्ट्र से आह्वान किया है कि आत्मनिर्भर होकर हम इक्कीसवीं सदी को अपना बना सकें. कोरोना वायरस के संक्रमण और इसे रोकने की कोशिश में लागू लॉकडाउन की वजह से भारत एक बड़े संकट के सामने खड़ा है. यह संकट समूची दुनिया के सामने भी है. मध्य मार्च से अधिकतर आर्थिक गतिविधियां ठप हैं और भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए यह कह पाना कठिन है कि अर्थव्यवस्था के साथ रोजमर्रा का जीवन वापस पहले की तरह पटरी पर लौट सकेगा.

ऐसे में मौजूदा चुनौतियों से जूझते हुए देश आगे के लिए नया रास्ता तय कर सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ही अवसर कहा है. आत्मनिर्भरता हमारी संस्कृति का आधारभूत तत्व है और यह आज के संकटग्रस्त वैश्वीकृत दुनिया में गौरवपूर्ण स्थान पाने का सूत्र भी बन सकता है. केंद्र सरकार पहले से ही मेक इन इंडिया जैसी पहलों से स्वावलंबन के लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास में जुटी हुई है. प्राकृतिक संसाधनों, श्रम, कौशल, बड़ा घरेलू बाजार आदि के मामले में भारत साधन-संपन्न देश है.

यदि हम स्थानीय स्तर पर तैयार वस्तुओं का इस्तेमाल करने लगें, तो न केवल आर्थिकी मजबूत होगी, बल्कि उद्योग के विस्तार का मार्ग भी प्रशस्त होगा. कई वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भरता से हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ता गया है तथा उन वस्तुओं को देश में ही उत्पादित करने की संभावनाएं भी कुंद होती गयी हैं. विदेशों में जाते अपने उस धन को हम यहीं निवेशित कर रोजगार के अवसरों का भी सृजन कर सकते हैं तथा तकनीक एवं कौशल के क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया को भी तेज कर सकते हैं. हमारे मानव संसाधन की क्षमता और उत्कृष्ट प्रतिभा के स्तर का लोहा दुनिया मानती है.

यदि चीन, जापान, अमेरिका आदि देशों में बनी चीजों के लिए भारत बड़ा बाजार हो सकता है, तो भारत अपनी ही बनाये उत्पादों की खपत भी कर सकता है. रोजगार. उत्पादन और मांग के सिलसिले को मजबूत कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने का सामर्थ्य रखते हैं. स्थानीय के लिए आग्रह और आदर का भाव भी पैदा करने की आवश्यकता है. लोकल के लिए वोकल होने का प्रधानमंत्री के आग्रह का यही सार है. स्वावलंबन हमारे समाज में गहरे तक पैठ बना चुकी आर्थिक विषमता का उपचार भी हो सकता है. आर्थिक और औद्योगिक विकास में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता को पाटने का भी यह कारगर उपाय है. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि ऐसा कर भारत वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से परे जा रहा है, बल्कि इसके उलट कुछ देशों पर बहुत सारे देशों की निर्भरता और इसके बदले उनके दबाव से निकलने का यह रास्ता है. हम उत्पादन में बढ़ोतरी कर निर्यात के मोर्चे पर अच्छा कर सकते हैं तथा घरेलू उद्योग के लिए बाहर के निवेश को आकर्षित कर सकते हैं. देश को आत्मनिर्भरता के मंत्र को आत्मसात करना चाहिए.

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