लाल किले से प्रधानमंत्री का संदेश

मोदी ने इस छवि को तोड़ने की कोशिश की है. अल्पसंख्यक मंत्रालय के जरिये बड़ी योजनाएं शुरू हुईं. लेकिन कभी भी मुस्लिम समुदाय का ठोस समर्थन भाजपा को नहीं मिला. उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के एक गांव को लेकर खबरें भी आयीं कि इस मुस्लिम बहुल इस गांव में सैकड़ों परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना का फायदा मिला, पर लोकसभा चुनाव में इस गांव में भाजपा को महज चार-पांच वोट ही मिले.

By उमेश चतुर्वेदी | August 20, 2024 7:40 AM

Narendra Modi Speech : स्वाधीनता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में हर प्रधानमंत्री द्वारा भावी योजनाओं का खाका पेश किया जाता है तथा अपनी उपलब्धियों को गिनाया जाता है. इस बार भी ऐसा ही हुआ, लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान खींचा इस भाषण के तीन मुद्दों ने. प्रधानमंत्री मोदी ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा जोर-शोर से लगाते रहे हैं और इस विचार से प्रभावित नीतियां भी लागू करते रहे हैं. बाद में इसमें ‘सबका विश्वास’ और ‘सबका प्रयास’ भी जुड़ गये. वे जिस भाजपा के नुमाइंदे हैं, उसे हिंदू और हिंदुत्ववादी पार्टी का विशेषण उसके विरोधियों द्वारा मिला है. जब तक नरेंद्र मोदी केंद्रीय राजनीति के शीर्ष पर नहीं पहुंचे थे, भाजपा की वैचारिकी के लिहाज से माना जाता रहा कि अगर वे सत्ता में आयेंगे, तो उनकी योजनाओं में मुस्लिम समुदाय के लिए खास नहीं होगा. गुजरात में मुख्यमंत्री रहते मोदी की ऐसी छवि विरोधियों ने सफलतापूर्वक गढ़ी. उन्हें मुस्लिम विरोधी के रूप में ऐसा स्थापित किया गया कि आज भी आम मुस्लिम मतदाता सुरक्षा और सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने के बावजूद मोदी और भाजपा विरोधी है.


मोदी ने इस छवि को तोड़ने की कोशिश की है. अल्पसंख्यक मंत्रालय के जरिये बड़ी योजनाएं शुरू हुईं. लेकिन कभी भी मुस्लिम समुदाय का ठोस समर्थन भाजपा को नहीं मिला. उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के एक गांव को लेकर खबरें भी आयीं कि इस मुस्लिम बहुल इस गांव में सैकड़ों परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना का फायदा मिला, पर लोकसभा चुनाव में इस गांव में भाजपा को महज चार-पांच वोट ही मिले. ऐसे अनुभवों के बाद भाजपा के अंदर ही सवाल उठने लगे कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का क्या फायदा! शायद यह दबाव ही है कि पहली बार लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने इस नारे का उल्लेख नहीं किया. इसे लेकर कथित सेकुलर राजनीति का परेशान होना स्वाभाविक है. उसे पता है कि वह जितना परेशान दिखेगी, उतना ही उसका अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत होगा. प्रधानमंत्री के संबोधन में एक और महत्वपूर्ण बात रही- 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को पूरा करना और इसके लिए निरंतर काम करना. प्रधानमंत्री के इस मंत्र का मकसद साफ है कि आजादी के सौवें साल में देश विकसित देशों की पांत में आ जाए. भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन गया है. विभिन्न क्षेत्रों में देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है. फिर भी प्रधानमंत्री को लगता है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. इसलिए उनके इस संदेश को भी गहराई से देखा जाना चाहिए.


प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में न्यायिक सुधार की भी बात की. सत्ता संभालते ही मोदी सरकार ने जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून संसद से पास करा दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने एकतरफा सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था. पर जिस तरह प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जताया, उससे साफ है कि वे न्यायिक सुधार की दिशा में आगे बढ़ेंगे. उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिये जो कॉलेजियम व्यवस्था है, उस पर खूब सवाल उठ रहे हैं. उन्होंने संकेत दे दिया है कि उसकी जगह वे नयी और ज्यादा तार्किक एवं न्यायोचित व्यवस्था लायेंगे. उन्होंने भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर भी जोर दिया. उन्होंने यहां तक कहा कि वे चाहते हैं कि भ्रष्टाचारियों में भय का माहौल हो, ताकि जनता को लूटने की उनकी परिपाटी पर लगाम लग सके. उन्होंने जता दिया कि तीसरे कार्यकाल में भी भ्रष्टाचार विरोधी उनकी मुहिम जारी रहेगी. हमेशा से ही भाजपा के तीन प्रमुख एजेंडे रहे हैं- अनुच्छेद 370 का खात्मा, अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण और समान नागरिक कानून. इनमें से पहले दो तो मोदी सरकार ने हासिल कर लिया है.


लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने समान नागरिक संहिता की जरूरत पर जोर दिया. इसे उन्होंने धर्मनिरपेक्ष कानून कहा है, यानी ऐसा कानून, जो धर्मों से प्रभावित न होता हो. मोदी सरकार के कदमों का विरोध करने के लिए विपक्षी और विरोधी शक्तियां उसे सबसे पहले सांप्रदायिक बताती हैं, फिर विरोध करती हैं. समान नागरिक संहिता को धर्मनिरपेक्ष संहिता बताकर एक तरह से प्रधानमंत्री ने इस भावी कानून को लेकर उठने वाले सवालों की धार कुंद करने की कोशिश की है. देश के नागरिक समाज का बड़ा हिस्सा भी समान नागरिक कानूनों की मांग अरसे से कर रहा है. लगता है कि अब प्रधानमंत्री मोदी इस दिशा में आगे बढ़ेंगे. प्रधानमंत्री मोदी का तीसरा कार्यकाल पूर्ण बहुमत वाला नहीं है. उनके विरोधियों ने इसे अवसर के रूप में देखा और बार-बार कहते रहे कि अब मोदी को बदलना पड़ेगा. लेकिन लाल किले के भाषण में कोई लाचारी नहीं नजर आती. इसका संदेश साफ है कि मोदी पहले ही की तरह पूरी ठसक के साथ आगे बढ़ेंगे और बहुमत की कमी के असर में नहीं आने वाले. प्राकृतिक खेती पर जोर देने के साथ ही मोटे अनाजों के उत्पादन पर भी उन्होंने अपने संदेश में जोर दिया है. उन्होंने कहा कि जो प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, वे फायदे में हैं और ज्यादा कमा रहे हैं. इसी तरह उन्होंने दुनिया के हर डाइनिंग टेबल पर भारतीय मोटे अनाजों की उपस्थिति बढ़ाने के अपने लक्ष्य को भी दोहराया. जल संरक्षण पर भी उन्होंने जोर दिया. इसी तरह लाल किले से अपने 11वें भाषण में महिलाओं को लेकर भी अपनी संजीदगी दिखायी. कोलकाता के एक मेडिकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या से पूरा देश आक्रोशित है. संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने महिलाओं पर अत्याचार करने वालों को राक्षस कहा और उन्हें भयंकर सजा देने की वकालत की.


प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षा में सुधार, भारत में विश्व स्तरीय विश्वविद्यालयों की स्थापना और मातृभाषा में शिक्षा पर भी बल दिया है. साथ ही, उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा से गरीब बच्चों को भी ताकत मिलती है, यानी उन्होंने साफ कर दिया कि आने वाले दिनों में शिक्षा के भारतीयकरण की दिशा में सरकार लगातार आगे बढ़ेगी. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री का लाल किले की प्राचीर से दिया गया यह संबोधन उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को ही दोहराता है तथा भारतीयकरण की अवधारणा पर आगे बढ़ने का संदेश देता है. यह भाषण नवाचार के साथ कदम बढ़ाते हुए नयी विश्व व्यवस्था में भारत को अग्रणी पंक्ति में बैठाने की दिशा में भी काम करते हुए दिख रहा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में इस दिशा में लगातार आगे बढ़ते रहेगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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