चुनावी रिश्वत की समस्या
शराब और नशीली चीजों को इतने बड़े पैमाने पर बांटा जाना एक बड़े सामाजिक संकट की ओर भी इशारा करता है.
एक मार्च और 13 अप्रैल के बीच पकड़ी गयी नगदी, नशीली वस्तुएं, शराब, कीमती चीजें और अन्य चीजों का मूल्य 4,650 करोड़ रुपये आंका गया है. निश्चित रूप से इसका श्रेय चुनाव आयोग की सक्रियता तथा प्रशासन की तत्परता को जाता है, लेकिन बड़ी चिंता की बात यह है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनाये जा रहे अवैध तौर-तरीकों में कोई कमी नहीं आ रही है. इस बार लोकसभा के चुनाव में पहला मतदान होने से एक सप्ताह पहले जो बरामदगी हुई है, वह 2019 के पूरे चुनाव के दौरान पकड़ी गयी राशि और चीजों के दाम (3,475 करोड़ रुपये) से लगभग 34 प्रतिशत अधिक है. उल्लेखनीय है कि नशीले पदार्थों की अब तक की बरामदगी 2019 की तुलना में 62 प्रतिशत अधिक है. शराब के मामले में यह आंकड़ा 61 प्रतिशत अधिक है. वोटरों को रिझाने के लिए इस तरह की हरकतें आपराधिक भी हैं और अनैतिक भी, लेकिन शराब और नशीली चीजों को इतने बड़े पैमाने पर बांटा जाना एक बड़े सामाजिक संकट की ओर भी इशारा करता है. यह नहीं भूला जाना चाहिए कि नशे की लत हमारे देश में एक अत्यंत गंभीर समस्या बन चुकी है. उसके समाधान के लिए प्रयास करने की जगह अगर राजनीतिक दल और उम्मीदवार ही शराब और नशीले पदार्थ बांटने लगें, तो ऐसे जन प्रतिनिधियों से क्या उम्मीद रह जाती है. यह बात चुनाव आयोग भी स्वीकार करता है और पर्यवेक्षक भी कि चुनाव के दौरान जो ऐसी बरामदगी होती है, वह बांटी गयी नगदी, शराब, नशीली चीजें, गहने, कपड़े आदि की वास्तविक मात्रा का बहुत छोटा हिस्सा होती है.
इस बार चुनाव आयोग और संबंधित एजेंसियों द्वारा उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है तथा केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर विभिन्न विभागों द्वारा बेहतर तालमेल की कोशिश हो रही है. पूर्ववर्ती अनुभवों और आकलनों के आधार पर संवेदनशील लोकसभा क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध कर निगरानी एवं जांच को अंजाम दिया जा रहा है. यह काम चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से बहुत पहले से शुरू किया जा चुका है. जनवरी और फरवरी महीने में 7,502 करोड़ रुपये मूल्य की नगदी और अन्य चीजों को जब्त किया गया था. इस बार जनवरी से ही नशीले पदार्थों की बरामदगी पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. निगरानी और जांच के दायरे में हेलीकॉप्टरों और निजी वायुयानों को भी लाया गया है. अब तक के आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि आयोग और एजेंसियों के प्रयासों को उत्साहजनक सफलता मिल रही है. ढाई महीने की चुनावी प्रक्रिया में इस सक्रियता और तत्परता को बनाये रखना जरूरी है क्योंकि अभी तो समूचा मतदान बाकी है. पर हमारे लोकतंत्र को लगी इस बीमारी को दूर करने में राजनीतिक दलों और जनता को भी बड़ा योगदान देना होगा तथा रिश्वत लेने एवं देने से परहेज करना होगा.