प्रगतिशील और समावेशी शिक्षा प्रणाली जरूरी

जैसे-जैसे हम 2047 की ओर बढ़ते जा रहे हैं, जो भारत के विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, हमें एक ऐसा मजबूत शैक्षणिक ढांचा बनाने की आवश्यकता है, जो रोजगार क्षमता और वास्तविक अनुप्रयोगों के साथ मेल खाता हो.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 7, 2024 10:07 PM

भारतीय शिक्षा प्रणाली पुरातन काल से ही हमेशा परंपरा और नवाचार के संगम पर खड़ी रही है, और यह ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की प्राचीन बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कि ‘संपूर्ण विश्व एक परिवार है.’ यह प्राचीन दर्शन आधुनिक संदर्भ में भी पूरी तरह अनुकूल है. जिस प्रकार हम तेजी से तकनीकी उन्नति और वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहे हैं, उस प्रक्रिया में भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास वैश्विक समुदाय को प्रभावित करने और प्रेरित करने की क्षमता रखता है. यह एक सुस्थापित तथ्य है कि भारत की शैक्षणिक विरासत हजारों वर्ष पुरानी है. प्राचीन दशमलव प्रणाली और पाई की अवधारणा जैसे नवाचार यह दर्शाते हैं कि कैसे भारतीय विद्वानों ने वैश्विक ज्ञान को आकार दिया. ये नवाचार सिर्फ गणितीय जिज्ञासाएं नहीं थे, बल्कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विकास की नींव भी बने. आज की चुनौती यह है कि भारत के ऐतिहासिक और समृद्ध साहित्य को समझा जाए और इसे समकालीन जरूरतों के अनुसार अध्ययन कर विकसित भारत की संकल्पना को साकार किया जाए.
तेजी से बदलती आज की दुनिया में शिक्षा को केवल पाठ याद करने से परे सीखने की कोशिश पर केंद्रित होना चाहिए. इसका ठोस फोकस समझदारी और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा देने पर होना चाहिए. जैसे-जैसे हम 2047 की ओर बढ़ते जा रहे हैं, जो भारत के विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, हमें एक ऐसा मजबूत शैक्षणिक ढांचा बनाने की आवश्यकता है, जो रोजगार क्षमता और वास्तविक अनुप्रयोगों के साथ मेल खाता हो. यह रेखांकित किया जाना आवश्यक है कि भविष्य की शिक्षा विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, नवाचार और अनुसंधान को एकीकृत करने पर निर्भर है. इन स्तंभों को शामिल कर भारतीय शिक्षा प्रणाली एक जिज्ञासा और समस्या-समाधान की संस्कृति को प्रोत्साहित कर सकती है तथा छात्रों को आधुनिक कार्यबल की जटिलताओं के लिए समुचित रूप से तैयार कर सकती है. वर्तमान में उभरती तकनीकें, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रही हैं. ये तकनीकें व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव को संवर्धित करने, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और शैक्षिक परिणामों पर महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करने में सहायक हो सकती हैं.
वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प को साकार करने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में समुचित सुधार पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है. इस प्रक्रिया में लड़कियों की शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान देना होगा. समावेशी शिक्षा केवल सामाजिक न्याय का मामला नहीं है, यह राष्ट्रीय विकास के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता है. वहीं, शिक्षा और रोजगार की संगति एक महत्वपूर्ण पहलू है. जैसे-जैसे उद्योग विकसित होते हैं, वैसे-वैसे आवश्यक कौशल लगातार बदलते रहते हैं. शिक्षा प्रणालियों को ऐसे पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए अनुकूलित करना चाहिए, जो वर्तमान और भविष्य की नौकरी के बाजार से संबंधित हों. इसमें शैक्षिक संस्थानों और उद्योग जगत के बीच करीबी सहयोग की आवश्यकता होती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्नातकों के पास नियोक्ताओं द्वारा मांगे गये कौशल और ज्ञान हों. आने वाले समय में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) तकनीक और अवसंरचना में निवेश, जिसमें बैटरी विकास और चार्जिंग नेटवर्क भी शामिल हैं, परिवहन को क्रांतिकारी बना सकता है. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होगी. साथ ही, उच्च-तकनीकी नौकरियों का सृजन भी होगा. इसी तरह भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने से आयात पर निर्भरता कम हो सकती है और तकनीकी क्षेत्र में विकास को अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है. इसमें डिजाइन, निर्माण और अनुसंधान में नौकरियों का सृजन शामिल है.
आधारभूत संरचना विकास क्षेत्र की बात करें, तो शहरी योजना में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी), बिग डेटा और एआइ को एकीकृत करने से स्मार्ट और अधिक कुशल शहर प्रबंधन संभव हो सकता है. इसमें स्मार्ट ग्रिड, ट्रैफिक प्रबंधन और सार्वजनिक सुरक्षा प्रणालियां शामिल हैं, जो विभिन्न प्रकार के रोजगार के अवसर पैदा करेंगी. अंतरिक्ष अनुसंधान और मिशनों में निवेश से सामग्री विज्ञान और प्रणोदन तकनीक में नवाचार को प्रेरित किया जा सकता है, जिससे नये उद्योगों और रोजगार के अवसरों का सृजन होगा. भारत के संदर्भ में प्रौद्योगिकी-सक्षम शिक्षा राष्ट्रीय विकास के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक का काम कर सकती है. एक उन्नत और समावेशी शिक्षा प्रणाली में पर्याप्त निवेश कर भारत एक ऐसा कार्यबल तैयार कर सकता है, जो न केवल कुशल हो, बल्कि वह नवाचार और अनुकूलनशीलता में भी सक्षम हो. यह दृष्टिकोण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन- 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प- के साथ मेल खाता है. ऐसी पहलें निश्चित ही भारत की आर्थिक वृद्धि, तकनीकी उन्नति और सामाजिक प्रगति को एक नया आयाम प्रदान करेंगी.                        (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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