हिंदी को प्रोत्साहन
मेडिकल शिक्षा अंग्रेजी में होने के कारण मरीज और उसके परिजन ठीक से समझ नहीं पाते कि डॉक्टर क्या कह रहा है और इलाज को लेकर उसकी सलाह कैसी है.
मध्य प्रदेश में चिकित्सा शास्त्र में स्नातक (एमबीबीएस) के पाठ्यक्रम के लिए हिंदी माध्यम की पुस्तकों का प्रकाशन हिंदी एवं स्थानीय भाषाओं के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. इन पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने उचित ही इस अवसर को एक सुनहरे दिन की संज्ञा देते हुए शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्जागरण और पुनर्संरचना का क्षण कहा है. केंद्र सरकार ने बीते वर्षों में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के उत्थान की दिशा में कई पहलें की है.
इसमें सबसे अहम है नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति. इस नीति में स्कूली शिक्षा को हिंदी और स्थानीय भाषाओं में देने का निर्देश है. यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता के साढ़े सात दशक बाद भी न केवल अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है, बल्कि यह समय के साथ सघन भी हुआ है. यह वर्चस्व शिक्षा के क्षेत्र में तो है ही, न्यायालयों, कार्यालयों, बैंकों आदि में भी है. इस कारण यह निरर्थक मानसिकता भी बन गयी है कि बेहतर शिक्षा अंग्रेजी में ही हो सकती है.
अंग्रेजी के पैरोकार या अंग्रेजीयत के रंग में रंगे लोगों में श्रेष्ठता का छद्म दंभ भी जगजाहिर है. इस कारण बहुत बड़ी आबादी सही ढंग से शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाती है. अंग्रेजी माध्यम से पढ़े लोग अपने पेशेवर जीवन में भी अंग्रेजी को ओढ़े रहते हैं, जिसके कारण आम लोगों से उनका संवाद सहज नहीं हो पाता. मेडिकल शिक्षा अंग्रेजी में होने के कारण मरीज और उसके परिजन ठीक से समझ नहीं पाते कि डॉक्टर क्या कह रहा है और इलाज को लेकर उसकी सलाह कैसी है.
अंग्रेजी माध्यम नहीं होने से गांवों व कस्बों के छात्र मेडिकल कॉलेजों में दाखिला नहीं ले पाते या संकोच के कारण नहीं जाते. कुछ छात्र जो प्रवेश पास जाते हैं, उनके लिए पाठ्यक्रम पूरा करना बहुत मुश्किल हो जाता है. यही स्थिति इंजीनियरिंग और विशेषज्ञता के अन्य पाठ्यक्रमों के साथ है. हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह के अध्यक्षता में राजभाषा के संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी है. उसमें भी उच्च एवं तकनीकी शिक्षा में हिंदी और स्थानीय भाषाओं को वरीयता देने का सुझाव दिया गया है.
लंबे समय से अंग्रेजी में अध्ययन-अध्यापन होते रहने के कारण मेडिकल और अन्य विशेषज्ञता के पाठ्यक्रमों के लिए हिंदी में किताबें लाने का काम आसान नहीं है. यह स्वाभाविक है कि शुरुआती किताबों में कुछ खामियां होंगी, जिन्हें बाद में दुरुस्त किया जा सकता है. प्रक्रिया समय के साथ बेहतर होती जायेगी, इसकी उम्मीद की जा सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशों के बाद आज दर्जन भर भारतीयों भाषाओं में प्रवेश परीक्षाएं हो रही हैं. आशा है कि शिक्षण संस्थाएं उत्साह के साथ इस अहम पहल को आगे ले जायेंगी.