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समृद्धि और समानता

पिछले वर्ष 5.83 करोड़ लोगों ने आयकर भरा था. इस साल संख्या बढ़ कर 6.77 करोड़ हो गयी. जाहिर है, आय बढ़ी है, तभी टैक्स देने वालों की भी संख्या में वृद्धि हुई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस चुनौतीपूर्ण समय में रोशनी की एक किरण जैसी चमक रही है तथा इसका भविष्य आशाजनक लग रहा है. प्रधानमंत्री ने एक न्यूज पोर्टल के एक कार्यक्रम के ट्वीट पर प्रतिक्रिया कर यह टिप्पणी की है. बाजार और वित्तीय क्षेत्र के बारे में खबरें देने वाले इस पोर्टल ने इस पोस्ट में लिखा था कि देश की अर्थव्यवस्था ने न केवल चुनौतियों का सामना किया है, बल्कि वह मजबूती से विकास भी कर रही है, जिससे आशावाद की परिस्थिति तैयार हुई है.

प्रधानमंत्री ने इससे एक दिन पहले एक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लिंक्डइन पर ‘भारत की बढ़ती समृद्धि’ के नाम से एक संक्षिप्त लेख लिखा था. इसमें उन्होंने दो रिपोर्टों का हवाला देकर लिखा था, कि दोनों विश्लेषणों से यह बात प्रकट होती है कि भारत ने समान और सामूहिक समृद्धि की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है. इनमें एक रिपोर्ट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की थी, जिसमें वित्तीय वर्ष 2011 से लेकर 2022 तक के आयकर रिटर्न्स का सांख्यिकीय विश्लेषण कर बताया गया था, कि पिछले नौ वर्षों मेंं औसत आय में ‘सराहनीय वृद्धि’ हुई है.

प्रधानमंत्री ने साथ ही एक वरिष्ठ पत्रकार के अध्ययन का हवाला दिया जिसमें बताया गया है कि पिछले नौ सालों में विभिन्न आय वर्गों में आयकर दाताओं की संख्या बढ़ी है. यानी प्रधानमंत्री ने जिन दो रिपोर्टों का हवाला दिया है, उनका आधार आयकर देने वालों की संख्या है. इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में इनकम टैक्स भरनेवालों की संख्या बढ़ रही है. पिछले वर्ष 5.83 करोड़ लोगों ने आयकर भरा था.

इस साल संख्या बढ़कर 6.77 करोड़ हो गयी. जाहिर है आय बढ़ी है, तभी टैक्स देने वालों की भी संख्या में वृद्धि हुई है. पिछले दिनों यूएनडीपी समेत कुछ और संगठनों की रिपोर्टों में बताया गया था कि भारत में लोग गरीबी से बाहर आ रहे हैं और मध्यवर्ग का हिस्सा बन रहे हैं. हालांकि, मध्यवर्ग के भीतर भी आर्थिक असमानता बहुत बड़ी है, लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनकी तस्वीरें आंकड़ों में अलग और अपनी आंखों से अलग दिखती हैं.

आंकड़े यदि आर्थिक समृद्धि की तस्वीरें पेश करते हैं, तो हमारी अपनी आंखें हमें आर्थिक असमानता की भयावह तस्वीरों से दो-चार करवाती हैं. भारत का कोई भी कोना ऐसा नहीं है, जहां असमानता की तस्वीरें न दिखाई देती हों. भारत के आर्थिक विकास का पहिया ऐसे दौर में भी तेजी से घूम रहा है जब पड़ोसी चीन से लेकर जर्मनी जैसे बड़े देश आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहे हैं. इसकी सराहना होनी चाहिए, लेकिन समृद्धि के साथ-साथ समानता हासिल करने की दिशा में भी प्रयास किए जाने चाहिए.

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