देश के अनेक राज्यों से दुधारू पशुओं में लम्पी चर्म रोग का प्रसार चिंताजनक घटनाक्रम है. रिपोर्टों की मानें, तो अब तक लगभग 60 हजार पशुओं की मौत हो चुकी है. ऐसा लग रहा है कि यह एक नये तरह की बीमारी है क्योंकि पहले इसके ऐसा प्रसार होने की जानकारी नहीं है. जिस प्रकार से दुनिया ने कोरोना वायरस को देखा है, उसी तरह से यह पशुओं में किसी नये प्रकार के वायरस का असर हो सकता है. इस रोग पर किसी एंटीबायोटिक का असर नहीं हो रहा है. अभी लक्षणों के अनुसार ही उपचार करने की कोशिश हो रही है. दूसरी चीज यह है कि इसमें गोट पॉक्स की वैक्सीन दी जा रही है. यह चेचक की तरह की बीमारी है, तो वही वैक्सीन दी जा रही है. यह कोशिश की जा रही है कि पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े. चूंकि यह वायरल रोग है, तो इसमें प्रतिरोधक क्षमता की प्रमुख भूमिका हो जाती है. केंद्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान, जो स्वयं एक पशु चिकित्सक हैं, ने एक संबोधन में बताया है कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए एक मिलीलीटर खुराक तथा उपचार के लिए तीन मिलीलीटर खुराक दी जा रही है.
इस तरह की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिए सबसे अधिक जरूरी है कि पशु को रखने की जगह साफ-सफाई अच्छी हो. अक्सर गौशालाओं और पशुपालन केंद्रों में इस पहलू को नजरअंदाज किया जाता है. ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में पशुपालक आम तौर पर गरीब और अशिक्षित होते हैं. उनमें पशुओं के रख-रखाव के बारे में जागरूकता का भी अभाव होता है. यही कारण है कि इस तरह की बीमारी जब फैलती है, तो बहुत तेजी से फैलती है. यह भी आम है कि दूध दूहने का काम करने वाले एक से अधिक जगहों पर दूध दूहने के लिए जाते हैं. यह समझना जरूरी है कि मनुष्य की आवाजाही से इस तरह की बीमारियां फैलती हैं. जैसा कि बताया जा रहा है कि झारखंड में भी लंपी चर्म रोग के कुछ मामले सामने आये हैं, तो यह वायरस मनुष्यों के जरिये ही आया होगा. इसीलिए यह निर्देश अक्सर दिया जाता है कि पशुओं को मनुष्य पर्यावास के एकदम निकट नहीं रखा जाना चाहिए. इसीलिए जो आधुनिक मुर्गीपालन व पशुपालन केंद्र खोले जाते हैं, तो उन्हें मनुष्यों के मोहल्लों से दूर स्थापित किया जाता है. ऐसी व्यवस्था जरूरी है क्योंकि जो संक्रामक रोग होते हैं, उनमें से कुछ मनुष्य से जानवरों में फैलते हैं, तो कुछ जानवरों से मनुष्य में फैलते हैं.
लंपी स्किन बीमारी के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि यह टीक, मच्छर आदि के जरिये भी फैल रहा है. धीरे-धीरे जैसे-जैसे शोध व अनुसंधान होते जायेंगे, हमें इस बीमारी के बारे में अधिक समझ मिलती जायेगी. जैसे कोरोना महामारी जब शुरू हुई थी, तब लक्षणों को देखकर उपचार किया जा रहा था क्योंकि हमारे पास तब वायरस के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान स्वागतयोग्य है कि 2025 तक सभी पशुओं का टीकाकरण किया जायेगा. इस संदर्भ में सबसे पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि टीके का असर क्या है. अभी यह कह पाना मुश्किल है कि टीकाकरण कारगर ही होगा. इस संबंध में हमें ठोस रिपोर्टों का इंतजार करना होगा. अभी हमें सफाई पर ध्यान देने के साथ वायरस से प्रभावित पशुओं को अलग रखने को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसमें भी मुश्किलें हैं. जानवर बहुत अधिक जगह घेरते हैं और लोगों के पास इतनी जगह नहीं होती. बीमार पशु अगर स्वस्थ पशुओं के निकट होगा, तो संक्रमण फैलता जायेगा.
लंपी स्किन बीमारी जैसी संक्रामक बीमारियां पहले भी आयी हैं और आगे भी आयेंगी. इसलिए हमें उस पर ध्यान रखना चाहिए. देश में दुग्ध उत्पादों, मांस आदि की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. हर जगह फार्म खुलते जा रहे हैं. इस संबंध में सबसे जरूरी है कि उत्पादों का मूल्य निर्धारण ठीक से हो तथा वितरण की व्यवस्था बेहतर हो. उदाहरण के लिए, मुर्गी अगर एक निर्धारित वजन की है, तो उसे बेच दिया जाना चाहिए. अगर वह फार्म में ही रहती है, तो उससे कई समस्याएं हो सकती हैं. ऐसा होने से फार्म की कमाई बेहतर होगी तथा वे स्वास्थ्य संबंधी मामलों पर अधिक ध्यान दे सकेंगे. इसी तरह हर जगह, खासकर देहात में दूध का सही दाम नहीं मिल पाता. फार्म मार्केटिंग पर तो ध्यान देते हैं, पर अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. सरकारी नीतियों से ऐसे उद्यमों को अनेक प्रकार की सहायता मिलती है, पर इस क्षेत्र को उद्योग का दर्जा देने पर विचार होना चाहिए. उनके विकास के लिए अगर और रियायत देने की जरूरत हो, तो वह भी किया जाना चाहिए. फार्मों की नियमित जांच और निगरानी करना बहुत आवश्यक है. दुनियाभर के अनुभव बताते हैं कि कई बड़ी बीमारियां फार्मों से ही फैली हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था और स्वच्छता पर निगरानी से गुणवत्ता भी बेहतर होगी. फिलहाल लंपी स्किन बीमारी एक चुनौती के रूप में सामने है तथा हमारी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह अधिक न फैले.
ये लेखक के निजी विचार हैं.