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लोकसभा चुनाव में केंद्र की लोक कल्याणकारी नीतियों पर जनता ने जताया भरोसा

दस वर्षों के बाद भी एनडीए अलायंस अपनी सत्ता को बरकरार रखने में सफल रही है, वह अपने आप में एक इतिहास है.

डॉ अश्वनी महाजन, राष्ट्रीय सह-संयोजक स्वदेशी जागरण मंच

केंद्र सरकार की जो लोक कल्याणकारी नीतियां रहीं, उन्हें संदर्भ में लेते हुए यदि लोकसभा चुनाव परिणाम की बात करें तो उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा को छोड़कर शेष भारत में ये नीतियां- विशेषकर घरों का निर्माण, शौचालय का निर्माण, नल से जल, उज्ज्वला योजना आदि- कहीं न कहीं वोटों में तब्दील हुई हैं. उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है, इसमें हम देख पा रहे हैं कि राजनीतिक समीकरणों के चलते, वोटबैंक की राजनीति के चलते, जितनी सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिलनी चाहिए थीं, उतनी नहीं मिलीं. बावजूद इसके कि वहां लाभार्थी बड़ी संख्या में थे.

इस राज्य में सभी जात-बिरादरी और सभी धर्म के लोगों को सरकार की योजनाओं का लाभ मिला था. परंतु हम समझते हैं कि जो समाज है वह जात-बिरादरी, पूजा-पद्धति को लेकर बंटा हुआ है. वोट बैंक के द्वारा जो एकजुट होकर वोटिंग होती है, उसका असर उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है. इसे ऐसे कह सकते हैं कि कोई अपने आपको एक जाति का कहता है, कोई दूसरी जाति का, तो कोई अपने आपको विशेष पूजा-पद्धति का मानता है. इसके चलते वोटों का जो ध्रुवीकरण हुआ है, उसके कारण भी कुछ हद तक ऐसे नतीजे दिखाई दे रहे हैं. विशेषकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में. परंतु हमें यह भी समझना होगा कि भले ही यह सच है कि कांग्रेस और इंडी अलायंस के बाकी जो पार्टनर हैं, उनको सीटों का लाभ हुआ है. पर यह भी उतना ही सच है कि 10 वर्ष तक सरकार चलाने के बाद भी लगभग 300 सीटें लेकर एनडीए सरकार बनाने जा रही है. तो इसका अर्थ यह भी माना जा सकता है कि 10 वर्षों के बाद भी जो एनडीए अलायंस अपनी सत्ता को बरकरार रखने में सफल रही है, वह अपने आप में एक इतिहास है.

दस वर्षों के बाद भी एनडीए अलायंस अपनी सत्ता को बरकरार रखने में सफल रही है, वह अपने आप में एक इतिहास है.

इसका कारण है नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, एनडीए सरकार की लोक कल्याणकारी नीतियां और उन नीतियों पर लाभार्थियों का विश्वास. जो चार करोड़ घर लोगों को मिले हैं, पांच लोगों का एक परिवार माना जाए, तो 20 करोड़ लोगों को घर का सुख मिला है, 10 करोड़ लोगों को उज्ज्वला कनेक्शन मिला है- ऐसी तमाम योजनाएं, जिनसे लोग लाभान्वित हुए हैं, उसने लाभार्थियों की मानसिकता पर असर डाला है. इसी कारण भाजपा के नेतृत्व में जो एनडीए है, उसकी सरकार में फिर से वापसी हुई है.

इसके बावजूद कि कांग्रेस ने एक लाख रुपये सभी परिवारों को देने का वादा किया था, फिर भी बड़ी संख्या में जनता ने अपने लोभ का संवरण करते हुए, दोबारा से एनडीए को सत्ता सौंपी है. यह भी सच है कि सरकार के दस वर्ष तक सत्ता में रहने और इंडी अलायंस द्वारा तमाम तरह के फ्रीबिज के वादों के बावजूद लोगों ने इंडी अलायंस को नकारते हुए एनडीए को सरकार बनाने का अवसर दिया है.

यह इस बात की ओर संकेत करता है कि सरकार की जो कल्याणकारी नीतियां रहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भारत की छवि बनी, साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था में जो उछाल आया, हम दसवीं से पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गये और जनता में इस भरोसे का संचार हुआ कि 2047 तक हम विकसित राष्ट्र बनेंगे, उन सबका लाभ एनडीए को मिला है. हर क्षेत्र में, चाहे वह नवाचार का हो- जिसमें एक लाख, तीन हजार पेटेंट ग्रांट किये गये, चाहे वह ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का विषय हो, मैन्युफैक्चरिंग में आगे बढ़ने की बात हो, उन सबका लाभ भी वर्तमान सरकार को मिला है और पुन: जनादेश भी मिला है कि वह सरकार चलाये.

इसका अर्थ यह भी है कि अब उन नीतियों को और बेहतर तरीके से और ज्यादा पूर्णता से अपनाने की आवश्यकता होगी, ताकि देश मुफ्तखोरी के लालच से बाहर निकलकर आगे बढ़े. यहां भारतीय जनता ने परिपक्वता दिखाई है, वह इस बात को समझती है कि मुफ्तखोरी की नीतियां क्षणिक लाभ जरूर देती हैं, पर ये खतरे की घंटी हैं.

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