एक किशोर द्वारा पुणे में देर रात कार से दो इंजीनियरों को कुचल कर मार देने की घटना के बारे में रोज चौंकाने वाली नयी नयी बातें सामने आ रही हैं. यह घटना हमारे समाज के बड़े पैमाने के पतन को दर्शाता है, जिसमें हम सभी शामिल हैं. ऐसी घटनाओं पर आंख बंद कर देना या चुप रहना भी एक तरह से इनको बढ़ावा देना है.
इस घटना में हम देखते हैं कि जिनसे हमें सहायता और रक्षा की आशा एवं अपेक्षा होती है, वे पीड़ित का साथ देने के बजाय पीड़ा पहुंचाने वालों के पक्ष में खड़े हो गये. जिन दो युवा इंजीनियरों की मृत्यु हुई है, उनके लिए न्याय की बात कोई नहीं कर रहा है. अब देखिये, एक अवयस्क है, जिसका धनी पिता उसे बेहद महंगी कार दे देता है. वह देर रात तेज गति से गाड़ी चलाता है. उससे पहले वह अपने दोस्तों के साथ शराब पीता है. वह बाइक पर सवार दो लोगों को टक्कर मार देता है. उसे प्रावधानों के अनुसार सजा होनी चाहिए थी. लेकिन हुआ क्या?
अस्पताल में उसके खून का सैंपल बदल दिया गया ताकि यह ना पता चले कि उसने शराब पी हुई थी. जो डॉक्टर इस काम में संलिप्त थे, उनमें से एक के बारे में बताया जा रहा है कि एक मंत्री और विधायक की सिफारिश पर उसकी नियुक्ति हुई थी. मामले को रफा-दफा करने में पुलिसकर्मी भी शामिल थे. ऐसा भी सुनने में आ रहा है कि कुछ नेताओं ने भी पैरवी की थी. रिपोर्टों के अनुसार, ड्राइवर को अपने उपत दोष लेने के लिए परिवार की ओर से दबाव बनाया जा रहा था, जिसमें माता, पिता और दादा शामिल थे.
पुलिस अंततः अपना एक फर्जी रिपोर्ट बनाती है और आनन-फानन में एक मजिस्ट्रेट फैसला दे देता है कि आरोपी किशोर एक निबंध लिखे और ट्रैफिक पुलिस के साथ कुछ दिन बिताये. वह मजिस्ट्रेट मामले की तह में जाने की कोई कोशिश नहीं करता और एक हास्यास्पद निर्णय दे देता है. इस घटनाक्रम और बाद के खुलासों एवं गिरफ्तारियों से यही पता चलता है कि भ्रष्टाचार और आपराधिक गठजोड़ की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं.
कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश से त्रासद खबर आयी कि पुलिस के सामने एक बलात्कार पीड़िता की एंबुलेंस से गिरकर मौत हो गयी. वह अपने चाचा की लाश लेकर गांव लौट रही थी. पिछले साल उसके भाई की भी हत्या हुई थी. हाथरस में दो लड़कियों की कथित आत्महत्या और आधे रात को प्रशासन द्वारा पुलिस के घेरे में चुपके से उनका अंतिम संस्कार करा देने का मामला याद किया जाना चाहिए. ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं.
यह तो हद ही हो गयी है कि लोग बिना किसी भय के अपराध कर रहे हैं, नियमों-कानूनों के साथ मनमर्जी कर रहे हैं और फिर इसे ढंकने के लिए किसी भी सीमा तक जाने के तैयार हैं यानी एक अपराध को छुपाने के लिए कई अपराध किये जा रहे हैं. ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई करने की जगह पुलिस, प्रशासन और न्यायालय परदा डालने में लगे हुए हैं. पुणे के मामला का खुलासा हो गया है, तो न्याय की कुछ उम्मीद बनी है, लेकिन ऐसे मामले हमारी समूची व्यवस्था और समाज के खोखलेपन को जाहिर करते है, जिस पर हमें समुचित ध्यान देना चाहिए.
हमारे समाज के समक्ष सबसे चिंताजनक संकट यह है कि हमारे सामने आदर्श नहीं हैं, जिनका अनुकरण किया जा सके. पुणे का यह किशोर अपने घर में अपने पिता और दादा को देखता होगा और उन्हीं के रास्ते पर चल पड़ा. पहले परिवारों में बच्चों को सिखाया जाता था कि जो अच्छे लोग हैं, उनकी तरह बनना, मेहनत करना. अब यह सब बदल गया है.
डॉक्टरों की गिरफ्तारी, पुलिसकर्मियों का निलंबन संतोषजनक है. आशा है कि उन्हें सजा भी मिलेगी. जिस मजिस्ट्रेट ने बिना सोचे-समझे फैसला दिया है, उच्च न्यायालय को उसका भी संज्ञान लेना चाहिए और उचित कार्रवाई करनी चाहिए. ऐसा लगता है कि उक्त मजिस्ट्रेट ने पहले से छपे फैसले पर बस हस्ताक्षर कर दिया. यदि हमारी शासन व्यवस्था में ठोस सुधार नहीं हुए और आपराधिक लोगों को किनारे नहीं किया गया, तो इसके गंभीर नकारात्मक परिणाम देश को भुगतने होंगे तथा हमारी प्रगति अवरुद्ध हो जायेगी.
हमारे समाज के समक्ष सबसे चिंताजनक संकट यह है कि हमारे सामने आदर्श नहीं हैं, जिनका अनुकरण किया जा सके. पुणे का यह किशोर अपने घर में अपने पिता और दादा को देखता होगा और उन्हीं के रास्ते पर चल पड़ा. पहले परिवारों में बच्चों को सिखाया जाता था कि जो अच्छे लोग हैं, उनकी तरह बनना, मेहनत करना. अब यह सब बदल गया है. घर में जो बड़ा व्यक्ति दबंग है या उल्टे-सीधे तरीके से खूब धन बनाया है, तो बच्चों को उनसे आगे जाने की शिक्षा दी जाती है.
एक समय था, जब कहा जाता था कि साधन से साध्य का अच्छा या बुरा होना तय होता है. अब साधन पर ध्यान नहीं दिया जाता. उद्देश्य पूरा होना चाहिए, रास्ता चाहे जो हो. आज हम शक्ति, सत्ता और धन के पीछे भागने वाले समाज हो गये हैं. ‘समरथ को नहीं दोष गोसाईं’ को हम चरितार्थ होते देख रहे हैं. यदि इस किशोर को उसके पिता और दादा यह सिखाते कि उसे उनकी तरह नहीं बनना है, एक अच्छा व्यक्ति बनना है, तो यह घटना नहीं होती. पर वे ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि वे भी उस पतनशील समाज के हिस्से हैं, जहां धन और ताकत की पूजा होती है. बहरहाल, हमें एक न्यायपूर्ण और संवेदनशील शासन तथा समाज को गढ़ना होगा, तभी त्रासद घटनाओं से मुक्ति मिल सकेगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)