खाड़ी के देश कतर की एक अदालत ने पिछले सप्ताह भारतीय नौसेना के आठ पूर्व सदस्यों को मौत की सजा सुना दी. इस फैसले से इन लोगों के परिवारों के साथ सरकार भी हैरान है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इसे ‘बहुत स्तब्ध’ करने वाला फैसला बताया था. लेकिन, परदेस में अपने संबंधियों के अकेले इतने बड़े संकट में फंस जाने से भारत में उनके घरवाले बहुत बड़ी अनिश्चितता में घिर गये हैं. ऐसे में विदेश मंत्री एस जयशंकर नेे इन आठ भारतीयों के परिवारजनों से मुलाकात कर कहा है कि सरकार उनकी रिहाई के लिए सभी प्रयास जारी रखेगी. यह मामला पिछले वर्ष का है, जब अगस्त में आठ पूर्व नौसैनिकों को कतर में गिरफ्तार कर लिया गया.
ये लोग कतर की एक डिफेंस सर्विस कंपनी में काम करते थे. इसके बाद इस साल मार्च में मुकदमा शुरू हुआ, और 26 अक्तूबर को उन्हें दोषी ठहराकर मौत की सजा सुना दी गयी. इस मामले में सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि यह सारी प्रक्रिया गोपनीय और संदिग्ध है. अभी तक यह भी सार्वजनिक नहीं किया गया है कि इन लोगों पर क्या आरोप थे. मुकदमा भी गुप्त तरीके से चला और किसी गवाह या सबूत का कोई ब्यौरा नहीं दिया गया. आठों लोगों के परिवारों और दोहा में भारतीय दूतावास के राजनयिकों के बार-बार अनुरोध के बावजूद कोई जानकारी नहीं दी गयी. विदेश में भारतीय नागरिकों को मौत की सजा सुना दी गयी, लेकिन इन लोगों के वकीलों और भारत सरकार को उस फैसले की कॉपी तक नहीं दी गयी.
गिरफ्तारी के बाद से उनसे किसी को मिलने भी नहीं दिया गया. सूत्रों से मिली जानकारियों के आधार पर बताया जा रहा है कि इन लोगों पर एक पनडुब्बी परियोजना की जानकारी तीसरे देश को देने के आरोप हैं. ये मामला पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले की याद दिलाता है. जाधव को वर्ष 2016 में पाकिस्तान में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन, कतर की स्थिति पाकिस्तान से अलग है क्योंकि उसके साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं. कतर में सात लाख भारतीय प्रवासी हैं, जिनका उसकी अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है. भारत को अपने कूटनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने नागरिकों को रिहा कराना चाहिए. और साथ ही उसे यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि ऐसे संदिग्ध मामलों से वहां काम कर रहे भारतीयों के मन में संदेह उत्पन्न होता है, और दोनों देशों का आपसी विश्वास भी कमजोर होता है.