क्वैड कूटनीति व आत्मनिर्भर भारत

चीन की शक्ति का पतन भी उसके आर्थिक ढांचे को तोड़कर ही सुनिश्चित किया जा सकता है. इसके लिए आत्मनिर्भर भारत से बेहतर विकल्प दुनिया के पास नहीं हो सकता है.

By प्रो सतीश | October 13, 2020 6:20 AM

प्रो सतीश कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

singhsatis@gmail.com

पिछले दिनों टोक्यो में चार देशों- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत- के समूह चतुष्क (क्वैड) की बैठक हुई, जो विदेशमंत्री स्तर की दूसरी मुलाकात थी. इसमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन का नाम लिये बिना एक नियम संगत विश्व व्यवस्था बनाने की बात कह., वहीं अमेरिका के विदेश सचिव माइक पॉम्पियो ने चीन को विश्व शांति का दुश्मन बताते हुए अन्य देशों के साथ मिल कर काम करने की वकालत की. ऑस्ट्रेलिया कोरोना महामारी पर अपनी टिप्पणी की वजह से चीन के तीखे तेवर का सामना कई महीने से कर रहा है. जापान की सीधी मुठभेड़ चीन के साथ साउथ चाइना सी में है. अब मुश्किल यह है कि इस मंच को कारगर कैसे बनाया जाए?

चीन-भारत संबंध तमाम विरोधाभासों के बावजूद व्यापार के क्षेत्र में निरंतर मजबूती से बढ़ रहा था, लेकिन चीन की नीयत में खोट थी. चीन समझता था कि भारत का आर्थिक ढांचा महामारी में बिगड़ चुका है, इसलिए वह चीनी अतिक्रमण को झेल नहीं पायेगा, पर चीन की चाल उलटी पड़ गयी. आत्मनिर्भर भारत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से चीन का आर्थिक अंकुश नाकाम हो चुका है.

यह सच है कि भारत अब भी चीन के व्यापारिक भार से दबा हुआ है, लेकिन अब वैकल्पिक ढांचा तैयार होता दिख रहा है. भारत सौर ऊर्जा के लिए सोलर पैनल और विंड पैनल चीन से आयात करता था, लेकिन अब नहीं. अन्य देशों के पास भी साधन हैं और भारत उनकी मदद से अपने निर्माण ढांचे को मजबूत बनाने में जुटा हुआ है. उम्मीद है कि आगामी दो दशकों में आत्मनिर्भर भारत का संकल्प पूरी तरह से साकार हो चुका होगा. इस मुहिम में क्वैड के देश काफी मददगार हो सकते हैं. जापान के पास ग्रीन टेक्नोलॉजी का भंडार है.

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में जापान कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर काम कर रहा है. क्वैड में परोक्ष रूप से पूर्वी एशिया और यूरोप के तमाम धनी देश अमेरिका के सहयोगी देश हैं तथा उनमें से अधिकतर देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं. क्वैड में अगर ग्रीन एनर्जी को लेकर समझ बनती है, तो चीन की बेल्ट-रोड परियोजना को रोका जा सकता है. तकरीबन 65 देशों में जहां चीन अपने आर्थिक विस्तार का तंबू बांध रहा है, उनमें से 25 देशों में विकास की धारा कोयला और ईंधन से चल रही है. इनमें 20 देश ऐसे हैं, जो गरीबी और मौसम परिवर्तन से परेशान हैं.

वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु सम्मेलन में कहा गया था कि धनी देश, हर साल करीब 100 मिलियन डॉलर की मदद, ग्रीन एनर्जी के लिए गरीब देशों को देंगे. भारत पहले से ही अपनी सार्थक कूटनीति के द्वारा ‘एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड’ की बात कर चुका है. भारत अगर क्वैड की मदद से ग्रीन एनर्जी का केंद्र बनता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को हरित बनाने का उत्तरदायित्व भारत को मिलता है, तो बहुत कुछ बदल जायेगा. ऐसे में, कई देश सस्ता और टिकाऊ विकास के विकल्प को अपनाते हुए चीन का साथ छोड़ कर क्वैड की टोली में शामिल हो जायेंगे.

क्वैड के माध्यम से पड़ोसी देशों में भी भारत की साख मजबूत बनेगी. पड़ोसी देशों में भारत विरोधी लहर पैदा करने की कोशिश चीन द्वारा कई दशकों से की जा रही है. ये देश भारतीय सांस्कृतिक विरासत के साथ जुड़े हुए हैं. सुनील आंबेकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और उत्तर-पूर्वी देशों में भारत की अमिट छाप है. भारत ने सिल्क रूट के द्वारा उनके बीच समानता और मित्रता की छाप छोड़ी है. आज भी भारत की सोच उसी सांस्कृतिक विरासत पर टिकी हुई है.

चीन, अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम की बाट देख रहा है. उसे उम्मीद है कि रिपब्लिकन पार्टी की हार और डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत के साथ चीन-अमेरिका संघर्ष पर विराम लग जायेगा तथा पुनः चीन पर अंतरराष्ट्रीय अंकुश समाप्त हो जायेगा. इसलिए जरूरी है कि क्वैड देश भारत को वे सारे संसाधन मुहैया कराएं, जिससे चीन की विस्तारवादी गति को रोका जा सके और भारत द्वारा संचालित व्यवस्था को व्यापक बनाया जा सके.

चीन की सामरिक शक्ति आर्थिक मजबूती के कारण से ही पैदा हुई है, जिसके कारण वह अपने पड़ोसी देशों को काटने लगा. उसकी शक्ति का पतन भी उसके आर्थिक ढांचे को तोड़कर ही सुनिश्चित किया जा सकता है. इसके लिए आत्मनिर्भर भारत से बेहतर विकल्प दुनिया के पास नहीं हो सकता है. भारत की संस्कृति में विस्तारवाद कभी रहा ही नहीं है, इसलिए क्वैड के देशों को इस पर गंभीरता से सोचना होगा.

कोरोना महामारी ने दुनिया को बहुत कुछ समझाया है. जिस तरीके से आकंठ भौतिकवाद ने दुनिया को विलासिता से तबाह किया है, उससे मुक्ति की प्रेरणा भी इस महामारी ने दी है और यह भी इंगित किया है कि पड़ोसी को भूखा रखकर आप चैन की नींद नहीं सो सकते हैं. पूरा विश्व एक श्रेणी में बंधा हुआ है, चिंगारी कहीं से भी उठे, उससे लगी आग सबको तबाह कर देगी. यह दो टूक शिक्षा भी भारतीय संस्कृति की देन है.

(ये लेखक के निजी िवचार है.)

Posted by : Pritish Sahay

Next Article

Exit mobile version